Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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I
경기
अर्थ
43 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
लिक्खोदणं अवसेसं पाणिविहिं पञ्च्चक्खाति ॥ ४१ ॥ तदाणं तरंचणं मुहवासविहिं परिमाणं करेति नन्नत्थ पंचसेोगंधितॆणं तंबोलेणं अवसेसं मुहवासविहिं पच्चक्खाति । ४२ । तदाणं तरंचणं चउविहं अणट्ठादंड पच्चक्खाति तं जहा -अवज्झाणचरियं, पमायच - रित्तं, हिंसप्पयाणे, पावकम्नोवदेसं ॥ ४३ ॥ आनंदाति समणे भगवं महावीरे आणंद समणोवासर्ग, एवं वयासी एवं खलु आणंदा ! समणोवासतेणं अभिगय जीवाजीवेणं उवलद्ध पुण्णपाचेहिं आसव-संवर- निजरा - किरिया अहिगरण-यध मोक्ख-कुस लेणं संचकर रखा हुवा ) पानी उपरान्त अपर शेष पानी पीनेका प्रत्याख्यान ॥ ४१ ॥ तदनन्तर मुखवास का परिमान किया—फक्त पांच सौगन्धिक द्रव्य -१ इलायची, २ लवंग, ३ कर्पूर, ४ कंकोल और ५ जाय फल, इन उपरान्त मुखवास ( सम्बूल) के प्रत्याख्यान ( यहां तक सब उपभोग परिभोग परिमाण व्रत जानना ) ॥ ४२ ॥ तदनन्तर चार प्रकार का अनर्थ दंडके प्रत्याख्यान किया उनके नाम- १ अपंध्यान का आचरन अर्थात् आर्तव्य ध्यान व्याना किसी का बूराचितवना, २ प्रमाद चरित - अर्थात् घृतादि ( प्रवाही (पतले पदार्थों के बड़े रखना आदि, २ हिंशाकारी उपकरन जैसे तलवार चक्कू विष वगैरे किसी को देना, और ४ पापकर्म का उपदेश अर्थात् कृषी कर्मादि का उपदेश करना | इसप्रकार आठवत जावज्जीवके धारनकिये ||४३|| फिर आनंद से श्रमण भगवंत श्रीमहावीर स्वामी कहने लगे कि हे आनन्द !
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुर्खदेवसहायजी ज्वाप्रिलदजासी
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