Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १६.-उद्देशक ७ एवं सोहम्मस्स वि जावा, अघुयस्स । गेविजविमाणाणं एवं चेव, नवरं उवरिम-हेहिलेसु चरमंतेसु देसेसु पंचिंदियाण पि मझिल्लविरहिओ चेव, सेसं तहेव । एवं जहा गेवेजविमाणा तहा अणुत्तरविमाणा वि, ईसिपमारा वि ।
*विमला दिशानी वक्तव्यता प्रमाणे आ रत्नप्रभाना उपरना चरमांतनी पण वक्तव्यता जाणवी. तथा रत्नप्रभा पृथ्वीनो नीचलो चरमांत पण लोकनी नीचेना चरमांतनी पेठे जाणवो. परन्तु विशेष ए के जीवदेशोना संबंधे पंचेंद्रियोमा त्रण भांगा कहेवा. बाकीचें बधुं तेज प्रमाणे कहे, रत्नप्रभा पृथ्वीना चार चरमांतनी पेठे शर्कराप्रभा पृथिवीना पण चार चरमौत कहेवा. अने रत्नप्रभा पृथिवीना नीचेना चरमांतनी पेठे शिर्कराप्रभामो उपलो तथा नीचलो चरमांत समजवो. ए प्रमाणे यावत्-सातमी पृथिवी सुधी जाणवु. तथा सौधर्म [ देवलोक ] यावत्अध्युत [ देवलोक ] संबंधे पण एज प्रमाणे समजवू. अवेयक विमानो संबंधे पण तेज प्रमाणे जाणवू. पण तेमां विशेष ए छे के उपला अने हेठला चरमांत विषे देशो संबंधे पंचेंद्रियोमा पण वचलो भांगो न कहेवो. बाकीचें बधुं पूर्व प्रमाणे ज कहे. तथा ग्रैवेयक विमाननी पेठे अनुत्तर विमाननी अने ईषयाग्भारा पृथिवीनी पण वक्तव्यता कहेवी..
* दशमा शतकना प्रथम उद्देशकमा जेम विमला दिशा संबन्धे कयुं छे तेम रत्नप्रभाना उपरना चरमान्त संबन्धे पण कहे. जेमके-त्या जीवो नथी, कारण के ते एक प्रदेशना प्रतररूप होवाथी तेटलामा जीवो समाइ शकता नथी; पण जीवदेश भने जीवप्रदेश रही शके छे. तेमा जे.जीमा देशो होय छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो होय छे. १अथवा एकेन्द्रिय देशो भने बेइन्द्रियनो देश; २ अथवा एकेन्द्रियदेशो भने बेइन्द्रियना देशो, ३ अथवा एकेन्द्रियदेशों अने बेइन्द्रियोना देशो. उपरना त्रण भागा थाय छे, कारण के रमप्रभामा बेइन्द्रियो रहे छे, अने तेओ एकेन्द्रियनी अपेक्षाए योडा होय छे, तेथी तेना उपरना चरमान्तमा बेइन्द्रियनो एक देश अथवा अनेक देशो संभवित छे. ए प्रमाणे त्रीन्द्रियथी मांडी भनिन्द्रिय सुधी प्रत्येकना त्रण प्रण भांगा जीवदेशने आश्रयी कहेवा. हवे जे जीवमा प्रदेशो छे ते अवश्य एकेन्द्रियना प्रदेशो छे. १ अथवा एकेन्द्रियप्रदेशो अने बेइद्रियना प्रदेशो; २ अथवा एकेन्द्रिय जीवप्रदेशो भने वेइन्द्रियोना प्रदेशो. ए प्रमाणे त्रीन्द्रियथी आरंभी अनिन्द्रिय सुधी बब्बे भांगा जाणवा. तथा त्यो रूपी अजीवना चार प्रकार भने अरूपी अजीवना सात प्रकार छ. कारण के ते समयक्षेत्रनी अंदर होवाथी त्या अद्धासमय पण होय छे.-टीका. रसप्रभाना उपरना चरमान्तने आश्रयी जीवदेश अने जीवप्रदेशोना भांगाओनुं यत्र
एक के अनेक जीवोना देशादि. एकेन्द्रिय. बेइन्द्रिय. तेइन्द्रिय, चरिन्द्रिय. पश्चेन्द्रिय. अनिन्द्रिय.
फुलभांगा. १-१ १-२
१-२.
२-२
प्रदेश. { २-३ १-२
३-२ अहिं देशने आश्रयी भागाभोमा असंयोगी. एक अने उपर प्रमाणे विकसंयोगी पंदर तथा प्रदेशने माश्रयी भागाओमा असंयोगी एक भने द्विकर्मयोगी दश भांगा जाणवा
जेम लोकनी नीचेनो चरमान्त को तेम रमप्रभानी नीचेनो चरमान्त पण कहेवो. मात्र विशेष एके के लोकनी नीचेना चरमान्तमा जीवदेश संबन्धे बेइन्द्रियादिना मध्यम भांगारहित बब्बे भांगा कह्या छे, पण अहीं पंचेन्द्रियना प्रणे भांगा कहेवा भने पंचेन्द्रिय सिवायना जीवोमा पब्बे मांगा कहेवा, कारण के रमप्रभानी नीचेना चरमान्तमा देवरूप पंचेन्द्रियोना गमनागमनद्वारा पंचेन्द्रियनो देश अने सेना देशो संभवे छे, माटे पंचेन्द्रियना प्रणे भांगा अहिं लेवा. अने बेइन्द्रियादि तो रमप्रभानी नीचेना चरमान्तमा मरणसमुद्घातथी जाय त्यारेज तेनो संभव होवाथी या तेमनो देशज संभावित थे, परन्तु देशो संभवता नथी, केमके रसप्रभानी नीचेनो चरमान्त एक प्रतररूप होवाथी अनेक देशनो हेतु यतो नधी.-टीका.
रसप्रभाना नीचेना चरमान्त तथा शर्कराप्रभा आदि बाकीनी नरको भने सौधर्मथी अच्युत सुधीना देवलोकना उपर बने नीचेना चरमान्तने बाधयी जीवदेश भने जीवप्रदेशोना भांगाभोनुं यत्र
एक के अनेक जीवोना एक के अनेक देशादि. एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय. . तेइन्द्रिय. चउरिन्द्रिय. पझेन्द्रिय, अनिन्निय. फुलभांगा.
१-१ देश. २१- १ ३
१-२
२
-
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प्रदेश. { २-२ . ३-
३
२
अहिं देशने आश्रयी भागामा असंयोगी एक भने द्विकर्मयोगी अगीयार, तथा प्रदेशने आश्रयी भागामा असंयोगी एक अने द्विकसयोगी दश मांगा जाणवा.
शर्कराप्रभानी उपरनो तथा नीचेनो चरमान्त रमप्रभानी नीचेना चरमान्तनी पेठे जाणवो. त्यां बेहन्द्रियादिना जीवदेशने माधयी मध्यम भंग रहित बब्बे भागा अने पंचेन्द्रियना प्रण भांगा कहेवा. जीवप्रदेशने आश्रयी बधा बेइन्द्रियादिने विषे प्रथम भंगरहित पाकीना बच्चे भांगा जाणवा. अजीवने भाश्रयी रूपी अजीवना चार भने अरूपी भजीवना छ मेद जाणवा. शर्कराप्रभानी पेठे बाकीनी नरकपृथिवीओ: अने सौधर्मवी भारंभी प्रैवेयक सुधीना विमानोनी च.व्यता जाणवी. परन्तु एटलो विशेष छे के जीवदेशने आश्रयी अच्युत देवलोक सुधी देवोना गमनागमननो संभव होवाथी पंचेन्द्रियना प्रण
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