Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक २५.-उद्देशक ६. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२४७ ५४. [प्र०] जइ णोओसप्पिणि-नोउस्ससप्पिणिकाले होजा किं सुसमसुसमापलिभागे होजा, सुसमापलिभागे होजा, सुसमदूसमापलिभागे होजा, दूसमसुसमापलिभागे होजा? [उ०] गोयमा ! जंमण-संतिभावं पडुच णो सुसमसुसमापलिभागे होजा, णो सुसमापलिभागे०, णो सुसमदूसमापलिभागे होजा, दूसमसुसमापलिभागे होजा।
५५. [प्र०] बउसे णं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! ओसप्पिणिकाले वा होजा, उस्सप्पिणिकाले पा होजा, नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणिकाले वा होजा।
५६. [प्र०] जइ ओसप्पिणिकाले होजा किं सुसमसुसमाकाले होजा-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! जमण-संतिभावं पडुश्च णो सुसमसुसमाकाले होजा, णो सुसमाकाले होजा, सुसमदूसमाकाले वा होजा, दूसमसुसमाकाले वा होज्जा, दूसमाकाले वा होजा, णो दूसमदूसमाकाले होजा; साहरणं पडुच्च अन्नयरे समाकाले होजा ।
५७. [प्र०] जइ उस्सप्पिणिकाले होजा किं दूसमदूसमाकाले होजा ६-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! जम्मणं पडुश्च णो दूसमदूसमाकाले होजा जहेव पुलाए । संतिभावं पडुच्च णो दूसमदूसमाकाले होजा, णो दूसमाकाले होजा, एवं संति. भावेण वि जहा पुलाए जाव-णो सुसमसुसमाकाले होजा । साहरणं पडुच्च अन्नयरे समाकाले होजा।
५८. [प्र०] जइ नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणिकाले होजा-पुच्छा। [उ०] गोयमा! जम्मण-संतिभावं पडुच्च णो सुसमसुसमापलिभागे होजा जहेब पुलाए जाव-दूसमसुसमापलिभागे होजा । साहरणं पडच अन्नयरे पलिभागे होजा। जहा बउसे । एवं पडिसेवणाकुसीले वि; एवं कसायकुसीले वि । नियंठो सिणाओ य जहा पुलाओ । नवरं पतेसिं अभहियं साहरणं भाणियचं, सेसं तं चेव १२।।
५९. [प्र०] पुलाए णं भंते ! कालगए समाणे किं (क) गतिं गच्छति ? [उ०] गोयमा ! देवगति गच्छति । [प्र०] देवगति गच्छमाणे किं भवणवासीसु उववजेजा, वाणमंतरेसु उववजेजा, जोइसि०, वेमाणिएसु उववजेजा ? [उ.] गोयमा! णो
५४. [प्र०] जो ते (पुलाको) नोउत्सर्पिणी-नोअवसर्पिणी काळे होय तो शुं सुषमसुषमा समान काळे होय, सुषमासमान काळे होय, सुषमदुःषमासमान काळे होय के दुःषमसुपमासमान काळे होय! [उ०] हे गौतम! जन्म अने सद्भावने आ समान काळने विषे न होय, सुपमासमान काळे न होय, सुषमदुःषमासमान काळे न होय, पण दुःषमसुषमासमान काळे होय. __ ५५. [प्र०] हे भगवन् ! बकुश कये काळे होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! अवसर्पिणी काळे होय, उत्सर्पिणी काळे बकुशनो काळ. होय, पण नोउत्सर्पिणी-नोअवसर्पिणी काळे न होय.
५६. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते बकुश अवसर्पिणी काळे होय, तो शुं सुपमसुपमा काळे होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! जन्म अने सद्भावने अपेक्षी सुषमसुपमा काळे न होय, सुषमा काळे न होय, सुषमदुःषमा काळे होय, दुःपमसुषमा काळे होय के दुःषमाकाळे होय, पण दुःषमदुःषमा काळे न होय. संहरणने अपेक्षी कोइ पण काळे होय.
५७. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते बकुश उत्सर्पिणी काळे होय, तो शुं दुःषमदुःपमा काळे होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! जन्मने आश्रयी दुःषमदुःपमा काळे न होय-इत्यादि बधुं पुलाकनी पेठे जाणवू. सद्भावने आश्रयी दुःपमदुःपमा काळे न होय, दुःषमा काळे न होय, ए प्रमाणे बधुं सद्भावने आश्रयी पण पुलाकनी पेठे जाणवू. यावत्-सुषमसुषमा काळे न होय. संहरणने अपेक्षी कोइ पण काळे होय.
५८. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते बकुश नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणी काळे होय तो-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! जन्म अने सद्भावने आश्रयी सुषमसुषमासमान काळे न होय--इत्यादि बधु पुलाकनी पेठे जाणवं, यावत्-दुःषमसुपमासमान काळे होय. संहरणने अपेक्षी कोइ पण काळे होय. जेम बकुश संबन्धे कर्तुं तेम प्रतिसेवनाकुशील संबन्धे पण कहेवू. एम कपायकुशील पण जाणवो. निग्रंथ अने स्नातक पण पुलाकनी पेठे समजवा. विशेष ए के निग्रंथ अने स्नातकने संहरण अधिक कहे. एटले संहरणने आश्रयी सर्व काळे होय-एम कहे. बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. ५९. [प्र०] हे भगवन् ! पुलाक मरण पामीने कइ गतिमां जाय ! [उ०] हे गौतम | देवगतिमा जाय. [प्र०] देवगतिमा जतो १४ गतिद्वार
पुलाकनी गति. शुं भवनवासिमा, वानव्यंतरमा, ज्योतिष्कमां के वैमानिकोमा उपजे ! [उ०] भवनवासीमा न उपजे, वानव्यंतरमा न उपजे, ज्योतिषिकमा न
५४ * सुषमसुषमानो समान काळ देवकुरु अने उत्तरकुरुमां होय छे. सुषमासमान काळ हरिवर्ष भने रम्यक क्षेत्रमा होय छे, सुषमदुःषमासमान काळ हिमवत अने ऐरण्यवत क्षेत्रमा अने दुःषमसुषमा समान काळ महाविदेहमां होय छे.-टीका.
५८ 1 निम्रन्थ अने स्नातकनो संहरण भाश्रयी सर्व काळे सद्भाव कह्यो ते पूर्व संहरेलाने निग्रन्थपणा भने स्नातकपणानी प्राप्ति थाय ते अपेक्षाए समजवू, कारण के वेदरहित मुनिओर्नु संहरण थतुं नथी. कहुं छे के "श्रमणी-साध्वी, वेदरहित, परिहारविशुद्धि, पुलाकलब्धिवाळा, अप्रमत्त, चौद पूर्वधर अने आहारक'लब्धिवाळानं संढरण थतं नथी.-टीका.
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