Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 363
________________ शतक ३०.-उद्देशक १. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ३०५ १५. [प्र०] तेउलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी कि नेरइयाउयं पकरेइ ?-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ, मणुस्साउयं पकरेइ, देवाउयं पि पकरेद । जइ देवाउयं पकरेइ-तहेव । १६. [प्र० तेउलेस्सा णं भंते ! जीवा अकिरियावादी कि नेरइयाउयं-पुच्छा। [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ, मणुस्साउयं पि पकरेइ, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेइ, देवाउयं पि पकरेइ । एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। जहा तेउलेस्सा एवं पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सा वि नायवा।। १७. [प्र०] अलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी किं णेरइयाउयं-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ, नो तिरिक्ख०, नो मणु०, नो देवाउयं पकरेइ। १८. [प्र०] कण्हपक्खिया णं भंते ! जीवा अकिरियावादी किं नेरइआउयं-पुच्छा। [उ०] गोयमा! नेरइयाउयं पि पकरेइ-एवं चउविहं पि । एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि । सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा। १९. [प्र० सम्मदिट्टी णं भंते जीवा किरियावादी किं नेरइयाउयं-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ, मणुस्साउयं पकरेइ, देवाउयं पि पकरेइ । मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपक्खिया। २०. [प्र०] सम्मामिच्छादिट्ठी णं भंते ! जीवा अन्नाणियवादी किं नेरइयाउयं-१ [उ०] जहा अलेस्सा । एवं वेणइयवादी वि। णाणी आभिणियोहियनाणी य सुयनाणी य ओहिनाणी य जहा सम्महिट्ठी। २१. [प्र०] मणपजवणाणी णं भंते !-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ, नो तिरिक्ख०, नो मणुस्स०, देवाउयं पकरेइ । २२. [३०] जइ देवाउयं पकरेद किं भवणवासि०-पुच्छा । [उ.] गोयमा! नो भवणवासिदेवाउयं पकरेइ. नो वाणमंतर०, नो जोइसिय०, वेमाणियदेवाउयं पकरेइ । केवलनाणी जहा अलेस्सा । अन्नाणी जाव-विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। सन्नासु चउसु वि जहा सलेस्सा। नोसन्नोवउत्ता जहा मणपजवनाणी । सवेदगा जाव-नपुंसगवेदगा जहा सलेस्सा । अवे १५. प्र०] हे भगवन् । तेजोलेश्यावाळा क्रियावादी जीवो शुं नैरयिकर्नु आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम | तेओ तेजोलेश्यावाळा नरयिकनुं अने तिर्यंचनुं आयुष बांधता नथी, पण मनुष्य अने देवर्नु आयुष बांधे छे. जो तेओ देवोनुं आयुष बांधे तो ते पूर्ववत् आयु न क्रियावादीने आयु. पनो बन्ध. पनो बन्ध करे छे. १६. [प्र०] हे भगवन् ! तेजोलेश्यावाळा अक्रियावादी जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ नैरयिक- आयुष बांधता नथी, पण तिर्यच, मनुष्य अने देव- आयुष बांधे छे. ए ज रीते अज्ञानवादी अने विनयवादी जीवो संबंधे पण समजबु. जेम तेजोलेश्यावाळा संबंधे जणाव्युं तेम पद्मलेश्यावाळा अने शुक्ललेश्यावाळा जीवो संबंधे पण समजq. १७. [प्र०] हे भगवन् | लेश्यारहित क्रियावादी जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ० हे गौतम! तेओ लेश्यारहित क्रियानैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य के देवतुं पण आयुष बांधता नथी. वादीने आयुषनो बन्ध. १८. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णपाक्षिक अक्रियावादी जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ कृष्णपाक्षिक प्रक्रिनैरयिक अने तिथंच वगेरे-चारे प्रकारनां आयुषो बांधे छे. ए रीते कृष्णपाक्षिक अज्ञानवादी अने विनयवादी विषे पण जाणवं. जेम यावादीन आयुषनो बन्ध. लेश्यावाळा जीवो संबंधे कयुं छे तेम शुक्लपाक्षिक संबंधे पण जाणवू. १९. [प्र०] हे भगवन् ! सम्यग्दृष्टि क्रियावादी जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष्य बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ सम्यग्दृष्टि क्रियावानैरयिक अने तिर्यंचनुं आयुष बांधता नथी, पण मनुष्य अने देव- आयुष बांधे छे. मिथ्यादृष्टिने कृष्णपाक्षिकोनी जेम जाणवू. दीने आयुषनो बन्ध. २०. [प्र०] हे भगवन् ! सम्यग्मिथ्यादृष्टि अज्ञानवादी जीवो शु नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम! लेश्यारहित सम्यग्मिथ्याजीवोनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे विनयवादी संबंधे पण समजवू. ज्ञानी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी अने अवधिज्ञानीने सम्यग्दृष्टिनी पेठे समजवू. पृष्ट दृष्टि अशानवादीने आयुषनो बन्ध. २१. [प्र०] हे भगवन् ! मनःपर्यवज्ञानी (क्रियावादी) जीवो शुं नैरयिकर्नु आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! मनःपर्यवशानीने तेओ नैरयिक, तिर्यंच के मनुष्यनुं आयुष बांधता नथी, पण देवनुं आयुष बांधे छे. आयुषनो बन्ध. २२. [प्र०] हे भगवन् । जो तेओ देवनुं आयुष बांधे तो शुं भवनवासी देवतुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ भवनवासी देवन, वानव्यंतर देवर्नु के ज्योतिषिक देवनुं आयुष वांधता नथी, पण वैमानिक देवनुं आयुष बांधे छे. केवलज्ञानीने लेझ्यारहित जीवोनी पेठे जाणवू. अज्ञानी, यावत्-विभंगज्ञानीने कृष्णपाक्षिकोनी जेम समजवू. चारे संज्ञामां उपयोगवाळा जीवोने लेश्यावाळा जीवोनी जेम समजवू. नोसंज्ञामां उपयोगवाळा जीवोने मनःपर्यवज्ञानीनी जेम जाणवू. वेदवाळा अने यावत्-नपुंसकवेदवाळाने लेश्यावाळानी जेम अने वेद विनाना जीवोने लेश्यारहित जीवोनी पेठे समजबु, कषायवाळा अने यावत्-लोभकषायवाळा जीवोने लेश्याJain Education international ३९ भ. सू. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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