Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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३१८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रहे
शतक ३३.-एकान्द्रय शतक १. ७. [प्र०] अपजत्तबायरपुढविक्काइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ ? [उ०] गोयमा ! एवं चेव ।
८. [प्र०] पजत्ताबायरपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ-१ [उ०] एवं चेव ८ । एवं एएणं कमेणं जावबायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ति।
९. [प्र०] अपजत्तहुमपुढविक्काइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ बंधति ? [उ०] गोयमा! सत्तविहबंधगा वि, अट्टविहबंधगा वि । सत्त बंधमाणा आउयवजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधंति, अट्ठ बंधमाणा पडिपुन्नाओ अट्ठ कम्मप्पगडीमो बंधति ।
१०. [प्र०] पजत्तसुहुमपुढविकाइया णं भंते ! कति कम्म०१ [उ०] एवं चेव, एवं सो; जाप११. [प्र०] पजत्तबायरवणस्सइकाइया णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ बंधंति ? [उ०] एवं चेव ।
१२. [प्र०] अपजत्तसुहुमपुढविकाइया णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति [उ.] गोयमा! चोद्दस कम्मपगडीयो वेदेति, तंजहा-नाणावरणिजं, जाव-अंतराइयं, सोइंदियवझं, चक्खिदियवझं, घाणिदियवझं, जिभिदियवसं, इत्यिवेदवज्झ, पुरिसवेदवझं । एवं चउकएणं भेदेणं जाव
१३. [प्र०] पजत्तवायरवणस्सइकाइया णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ? [उ०] गोयमा! एवं चेव चोइस कम्मप्पगडीओ वेदेति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते'! ति । ३३-१।
१४. [प्र०] कइविहा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा एगिदिया पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! पंचविहा अणंतरोववागा एगिदिया पन्नत्ता, तंजहा-पुढविक्काइया, जाव-वणस्सइकाइया ।
१५. [प्र०] अणंतरोववन्नगा णं भंते ! पुढविक्काइया कतिविहा पश्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! दुविहा पनत्ता, तंजहासुहुमपुढविकाइया य बायरपुढविकाइया य, एवं दुपएणं भेदेणं जाव-वणस्सइकाइया।
१६. [प्र०] अणंतरोववन्नगसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ ? [उ०] गोयमा ! अट्ठ कम्म. प्पगडीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-नाणावरणिजं, जाव-अंतराइयं ।
७. [प्र०] हे भगवन् ! अपर्याप्त बादर पृथिवीकायिकोने केटली कर्मप्रकृतिओ होय ! [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे जाणवू.
८. [प्र०] हे भगवन् ! पर्याप्त बादर पृथिवीकायिकोने केटली कर्म प्रकृतिओ होय ! [उ०] हे गौतम ! पूर्वनी प्रमाणे ज जाणवू.ए
रीते ए क्रमथी यावत्-पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिको सुधी समजq. कर्मप्रकृतिओनो
९. [प्र०] हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिको केटली कर्मप्रकृतिओ बांधे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ सात कर्मप्रकृतिओ बन्ध,
भने आठ कर्मप्रकृतिओ बांधे छे. ज्यारे सात कर्मप्रकृतिओ बांधे त्यारे आयुष सिवायनी सात कर्मप्रकृतिओ बांधे अने ज्यारे आठ कर्मप्रकृतिओने बांधे त्यारे परिपूर्ण आठे कर्म प्रकृतिओ बांधे..
१०. [प्र०] हे भगवन् ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिको केटली कर्मप्रकृतिओ बांधे ? [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे जाणवू. तथा ए रीते सर्व एकेन्द्रिय संबंधे दंडको कहेवा. यावत्- .
___११. [प्र०] हे भगवन् ! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिको केटली कर्मप्रकृतिओ बांधे ! [उ०] हे गौतम ! एज प्रमाणे जाणवू. कर्मप्रकृतिओर्नु १२. [प्र०] हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिको केटली कर्मप्रकृतिओने वेदे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ चौद कर्मप्रकृतिओ वेदन
वेदे. ते आ प्रमाणे-१ ज्ञानावरणीय अने यावत्-८ अंतराय, तथा ९ श्रोत्रेन्द्रियवध्य (श्रोत्रेन्द्रियावरण), १० चक्षुरिंद्रियावरण, ११ घ्राणेंद्रियावरण, १२ जिह्वेन्द्रियावरण, १३ स्त्रीवेदावरण अने १४ पुरुषवेदावरण. ए रीते, सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त अने अपर्याप्सना चार मेदपूर्वक यावत्-पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक सुधी समजवू. यावत्
१३. [प्र०] हे भगवन् ! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिको केटली कर्मप्रकृतिओने वेदे ! [उ०] हे गौतम ! उपर प्रमाणे चौद कर्म
प्रकृतिओने वेदे छे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'. ३३-१. अनन्तरोपपन्न एक १४. प्र०] हे भगवन् ! अनंतरोपपन्न (तुरत उत्पन्न थयेला) एकेंद्रिय जीवो केटला प्रकारना कह्या छे! [उ०] हे गौतम ! न्द्रियना प्रकार. अनंतरोपपन्न एकेंद्रियो पांच प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-१ पृथिवीकायिक, यावत्-५ वनस्पतिकायिक.
१५. [प्र०] हे भगवन् ! अनंतरोपपन्न पृथ्वीकायिको केटला प्रकारना कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ बे प्रकारना कह्या छे.
ते आ प्रमाणे-सूक्ष्म पृथ्वीकायिको अने बादर पृथ्वीकायिको. ए प्रमाणे वे भेद वडे यावत्-वनस्पतिकायिक सुधी समजवु. . अनन्तरोपपन्न एके
१६. [प्र०] हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्न सूक्ष्मपृथिवीकायिकोने केटली कर्मप्रकृतिओ कही छे! उ०] हे गौतम! तेओने आठ न्द्रियने कर्म
कर्मप्रकृतिओ कही छे. ते आ प्रमाणे-१ ज्ञानावरणीय अने यावत्-८ अंतराय.
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