Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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ततीसइमं सयं - १. [प्र०] कडजुम्मकडजुम्मतेंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? [उ०] एवं तेइंदिएसु वि वारस सया कायद्या बेइंदियसयसरिसा । नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उकोसेणं तिनि गाउयाई। ठिती जहणं एवं समयं, उकोसेणं एकूणवनं राईदियाई, सेसं तहेव । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ति।
तेंदियमहाजुम्मसया समत्ता सत्ततीसइमं सयं समत्तं ।
कृतयुग्म २ रूप तेह- न्द्रियोनो उत्पाद
साडनीशमुं शतक १. [प्र०] हे भगवन् | कृतयुग्मकृतयुग्मप्रमाण तेइन्द्रिय जीवो क्याथी आवी उत्पन्न थाय छे ! [उ.] एम बेइन्द्रियशतकोनी पेठे तेइंद्रियसंबंधे पण बार शतको करवा. परन्तु अवगाहना-शरीरनुं प्रमाण जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो भाग अने होय छे. स्थिति जघन्य एक समयनी अने उत्कृष्ट ओगणपचास रात्री-दिवसनी जाणवी. बाकी बधुं तेमज जाणवू. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'.
तेइन्द्रियमहायुग्मशतको समाप्त.
साडत्रीशमुं शतक समाप्त.
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