Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 418
________________ एगचत्तालीसतिमं सयं पंढमो उद्देसो। १. [4] काणे भंते ! रासीजुम्मा पनत्ता ? [उ०] गोयमा ! चत्तारि रासीजुम्मा पन्नत्ता, तंजहा-कडजुम्मे, जा कलियोगे ।प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चह-'चत्तारि रासीज़म्मा पन्नत्ता..तंजहां-जाव-कलियोगे' [उ.] गोयमा! जे णं रासी चंउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे' चउपजवसिए सेत्त रासीजुम्मकडजुम्मे । एवं जाव-जे णं रासी चउकएणं अवहारेणं एगपजबसिए सेत्तं रासीज़म्मकलियोगे, से तेणटेणं जाव-कलियोगे । २.प्र०] रासीजुम्मकडजुम्मनेरहया,ण भंते! कओ उववजन्ति ? [उ.1 उववाओ जहा वकंतीए । ३. प्रि० ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजन्ति ? [उ०] गोयमा ! चत्तारि वा अट्ठवा. बारस वा सोलस वा संखेजा वा असंखेजा वा उववजंति । ४.प्रा'ते'ण भत जीवा किं संतरं उववजन्ति, निरंतर उर्वजन्ति ? [उ.] गोयमा!.संतरं पिउववजन्ति. निरंतरं पि उववजंनि । संतरं उववज़माणा जहन्नेणं पक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेजा समया अंतरं कट्टु उववजन्ति । निरंतरं उववजमाणा जहन्नेणं. दो समया, उक्कोसेणं असखज्जा समया अणुसमयं अविरहियं निरंतरं उववजन्ति । . ५. [प्र०] ते. णं भंते ! जीवा जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेयोगा, जं समयं तेयोगा तं. समयं कडजम्मा ? [उ०] णो तिणटे समढे। एकताळीशमुं शतक प्रथम उद्देशक. राशियुग्मना प्रकार. १.प्र०] हे भगवन् ! केटलां राशियुग्मो कह्यां छे ! [उ०] हे गौतम ! चार राशियुग्मो कह्यां छे, ते आ प्रमाणे-यावत्-१ कृतयुग्म अने यावत्-४ कल्योज. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी कृतयुग्म अने यावत्-कल्योज-ए चार राशियुग्मो कहेला छे ! चार राशियुग्म कहेवार्नु कारण. (उ०].हे गौतम! जे राशिमाथी चार चार संख्यानो अपहार करता छेवटें चार बाकी रहे ते राशियुग्म. कृतयुग्म कहेवाय छे, अने यावत्-जे राशिमाथीं चार चार संख्यानो अपहार करतां छेवटे एक बाकी रहे ते राशियुग्म कल्योज कहेवाय छे. हे गौतम ! ते कारणथी यावत्-कल्योज कहेवाय छे. कृतयुग्मरूप नैर- २. [प्र०] हे भगवन् ! कृतयुग्मराशिप्रमाण नैरयिको क्याथी आवी. उत्पन्न थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! जेम *व्युत्क्रांतिपदमा उपपात कह्यो छे तेम अहीं पण कहेवो. ___३. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो एक समये केटला उत्पन्न थाय छे ? [उ०] हे गौतम ! चार, आठ, बार, सोळ, संख्याता के असंख्याता उत्पन्न थाय छे. मान्तर के निरन्तर ४. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते जीवो. सांतर-अन्तरसहित उत्पन्न थाय छे के निरंतर-अंतरराहेत उत्पन्न थाय छे ! [उ०] हे गौतम! तेओ सांतर उत्पन्न थाय छे अने निरंतर पण उत्पन्न थाय छे. सांतर उत्पन्न थता तेओ जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट असंख्य समयनुं अंतर करीने उत्पन्न.थाय छे, अने निरंतर उत्पन्न थता जघन्य बे समय सुधी अने उत्कृष्ट संख्याता समय सधी निरंतर-प्रतिसमय अविरहितपणे उत्पन्न थाय छे. कृतयुग्म अने योज ५. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो जे समये कृतयुग्मराशिरूप होय ते समये त्र्योजराशिरूप होय अने जे समये त्र्योजराशिरूप होय राशिनो परस्पर "HT ते समये कृतयुग्मराशिरूप होय ! [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ-यथार्थ नथी. २* प्रज्ञा० पद६५०२०९-१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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