Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
View full book text ________________
३६२
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ४१.-उद्देशक २.
१६. [प्र०] जई आयजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा ? [उ.] गोयमा! सलेस्सा वि अलेस्सा वि। १७. [प्र०] जइ अलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया ? [उ०] गोयमा ! नो सकिरिया, अकिरिया। १८. प्र०] जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति, जाप-अंतं करेंति ? [उ०] हंता सिझति, जाव-अंतं फरेन्ति । १९. [प्र०] जइ सलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? [उ०] गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया।
२०. प्र० जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणणं सिझंति, जाव-अंतं करेन्ति ? [उ.] गोयमा! अत्येगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति, जाव-अंतं करेन्ति, अत्थेगइया नो तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति, जाव-अंतं करेन्ति ।
२१. [प्र०] जइ आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा ? [उ०] गोयमा ! सलेस्सा नो अलेस्सा। २२. [प्र०] जह सलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? [उ०] गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया ।
२३. [प्र०] जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति, जाव-अंतं करेंति ? [उ०] नो इणढे समढे । वाणमंतरजोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया। 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति।
इकचत्तालीसइमे रासीजुम्मसए पढमो उद्देसओ समत्तो ।
मात्मसंयमी मनुष्यो १६. [प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ आत्मसंयमनो आश्रय करे छे तो शुं तेओ लेश्यासहित छे के लेश्यारहित छे! उ० हे सलेश्य ले के अलेश्या गौतम! तेओ लेश्यासहित छे अने लेश्यारहित पण छे. श्यारहित मनुष्यो १७. [प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ लेश्यारहित छे तो शुं तेओ क्रियावाळा छे के क्रियारहित छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ
मा क्रियासहित नथी, पण क्रियारहित छे. क्रियारहितनी सिद्धि. १८. [प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ क्रियारहित छे तो शुं तेओ तेज भवमा सिद्ध थाय छे, यावत्-सर्व दुःखनो अंत करे छे ? [उ०]
हे गौतम ! हा, तेओ सिद्ध थाय छे यावत्-सर्व दुःखनो अंत करे छे. श्यावाळा मनुष्यो- १९. [प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ लेश्यावाळा छे तो शुं तेओ सक्रिय छे के अक्रिय छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ सक्रिय छे
नी सक्रियता. पण अक्रिय नथी. . सक्रिय ते भवा २०. [प्र०न हे भगवन् ! जो तेओ सक्रिय छे तो शुं तेज भवमा सिद्ध थाय छे, यावत्-सर्व दुःखनो अंत करे छे ! उ०] हे
गौतम ! केटलाक तेज भवमा सिद्ध थाय छे, यावतू-सर्व दुःखनो अंत करे छे भने केटलाक ते भवमा सिद्ध थता नथी अने यावत्-सर्व
दुःखनो अंत करता नथी. आत्मसंयमी सके- २१. प्रि०] जो तेओ आत्माना असंयमनो आश्रय करे छे तो शुं तेओ लेश्यासहित छे के लेश्यारहित छे! [उ०] हे गौतम ! तेओ श्थ छे के अलेश्य छे! लेझ्यासहित छे, पण लेश्यारहित नथी. सृलेश्य मनुष्यनी २२. [प्र०] जो तेओ लेश्यासहित छे तो शुं तेओ सक्रिय छे के अक्रिय छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ सक्रिय छे, पण अक्रिय नथी.
सक्रियता. सक्रिय मनुष्य ते २३. [प्र०] जो तेओ सक्रिय छे तो शुं तेज भवमा सिद्ध थाय छे, यावतू-सर्व दुःखनो अंत करे छे। उ०] हे गौतम 1 ते अर्थ भवमा सिद्ध थाय के १२ समर्थ नथी. वानव्यंतरो, ज्योतिषिको अने वैमानिको-ए बधा नैरयिकोनी पेठे जाणवा. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् । ते एमज छे'.
एकताळीशमा राशियुग्मशतकमा प्रथम उद्देशक समाप्त.
नहि ।
बीओ उद्देसो। १. [प्र०] रासीजुम्मतेओयनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ? [1०1 एवं चेव उद्देसओ भाणियो । नवरं परिमाणं तिन्नि वा सत्त वा एक्कारस वा पन्नरस वा संखेजा वा असंखेजा वा उववजंति । संतरं तहेव ।
योजराशिप्रमाण रयिकोनो उत्पाद.
द्वितीय उद्देशक. १.प्र०] हे भगवन् ! राशियुग्ममा योजराशिप्रमाण नैरयिको क्याथी आवी उत्पन्न थाय छे ? [उ०] हे गौतम! पूर्वनी पेठे आ संबंधे उद्देशक कहेवो. विशेष ए के परिमाण-त्रण, सात, अगियार, पंदर, संख्याता के असंख्याता उत्पन्न थाय छे. सांतर संबंधे तेमज जाणवू.
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442