Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

View full book text
Previous | Next

Page 411
________________ चत्तालीसतिमं सयं पढमं सन्निपंचिदियमहाजुम्मसयं । १. [प्र०] कडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! कओ उववजन्ति ? [उ०] उववाओ चउसु वि गईसु । संखेजवासाउयअसंखेजवासाउयपजत्तअपजत्तएसु य न कओ वि पडिसेहो जाव-'अणुत्तरविमाण' त्ति । परिमाणं. अवहारो भोगाहणा य जहा असन्निपंचिदियाणं । २. वेयणिजवजाणं सत्तण्हं पगडीणं बंधगा वा अबंधगा वा, बेयणिजस्स बंधगा, नो अबंधगा । मोहणिजस्स वेदगा वा अवेदगा वा, सेसाणं सत्तण्ह वि वेदगा, नो अवेयगा । सायावेयगा वा असायावेयगा वा । मोहणिजस्स उई वा अणुदई वा, सेसाणं सत्तण्ह वि उदयी, नो अणुदई । नामस्स गोयस्स य उदीरगा, नो अणुदीरगा, सेसाणं छह वि चालीशमुं शतक प्रथम संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक. १. [प्र०] हे भगवन् ! कृतयुग्मकृतयुग्मराशिरूप संज्ञी पंचेंद्रियो क्याथी आवी उत्पन्न थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! चारे गतिमाथी कृतयुग्म २ रूप संशी र पंचेन्द्रिवोनो आवी उत्पन्न थाय छे. संख्याता वर्षना आयुषवाळा, असंख्याता वर्षना आयुषवाळा पर्याप्त तथा अपर्याप्त जीवोथी आवी उत्पन्न थाय छे, १ उत्पादक्यांइथी पण निषेध नथी, यावत्-अनुत्तर विमान सुधी जाणवू. परिमाण, अपहार अने अवगाहना संबन्धे जेम असंज्ञिपंचेंद्रियो संबंधे कह्यु छे तेम जाणवू. २. वेदनीय सिवाय सात कर्मप्रकृतिना तेओ बंधक छे अने अबंधक पण छे. अने *वेदनीयना तो बंधक ज छे पण अबंधक नथी. कर्मना बन्धक मोहनीयना वेदक छे अने अवेदक पण छे. अने बाकीनी साते कर्मप्रकृतिना वेदक छे पण अवेदक नथी. साताना वेदक छे अने असाताना वेदक छे. मिोहनीयना उदयवाळा छे अने अवेदक-अनुदयवाळा पण छे, अने ते सिवाय बाकीनी साते कर्मप्रकृतिना उदयवाळा छे, पण अनुदयी नथी. 'नाम अने गोत्रना उदीरक छे पण अनुदीरक नथी. बाकीनी छए कर्मप्रकृतिओना उदीरक पण छे अने अनुदीरक पण छे. तेओ २ * अहीं वेदनीय कर्मनो विशेषतः बन्ध कहे छे-उपशान्तमोहादि वेदनीय सिवाय सात कर्मना अबन्धक छे, वाकीना यथासंभव बन्धक छे. केवलीपणा सुधी बधा संज्ञी पंचेन्द्रिय कहेवाय छे, अने त्या सुधी तेओ अवश्य वेदनीय कर्मना बन्धक ज होय छे, अबन्धक होता नथी. तेमा सूक्ष्मसंपराय सुधीना संज्ञी पंचेन्द्रिय मोहनीयना वेदक होय छे, अने उपशान्तमोहादि अवेदक होय छै. उपशान्तमोहादि जे संज्ञी पंचेन्द्रिय होय छे ते मोहनीय सिवाय साते प्रकृतिओना वेदक छे, पण अवेदक नथी. यद्यपि केवलज्ञानी चार अघाती कर्म प्रकृतिओना वेदक छे, पण ते इन्द्रियना उपयोगरहित होवाथी पंचेन्द्रिय नथी. ___ + सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानक सुधी मोहनीय कर्मना उदयवाळा होय छे अने उपशान्तमोहादि अनुदयवाळा होय छे. घेदकपणुं अने उदय ए बेमां एटली विशेषता छे के अनुक्रमे अने उदीरणाकरणथी उदय आवेला-फलोन्मुख थयेला कर्मनो अनुभव करवो ते वेदकत्व, अने अनुक्रमे उदय आवेला कर्मनी अनुभव करवो ते उदय. नाम अने गोत्र कर्मना अकषाय (क्षीणमोह गुणस्थान ) पर्यन्त बधा संज्ञी पंचेन्द्रिय उदीरक छे. बाकीनी छ प्रकृतिओना यथासंभव उदीरक पण छे अने अनुदीरक पण छे. उदीरणानो क्रम आ प्रमाणे छे-प्रमत्त पर्यन्त सामान्य रीते बधा आठ कर्मना उदीरक छे, अने ज्यारे आयुष आवलिका मात्र बाकी रहे सारे तेओ आयुष सिवाय सात कर्मना उदीरक छे. अप्रमत्तादि चार वेदनीय अने आयुष सिवाय छ कर्मना उदीरक छे, अने सूक्ष्मसंपराय आवलिका मात्र बाकी होय त्यारे मोहनीय, वेदनीय अने आयुष सिवाय पांच कर्मना उदीरक छे. उपशान्तमोह एज पांच कर्मना उदीरक छे. क्षीणकषाय पोतानो काळ आवलिका बाकी होय त्यारे नाम अने गोत्रकर्मना उदीरक छे. सयोगी पण तेवी जरीते उदीरक छे अने अयोगी अनुदीरक छे. . ४ ५ भ० सू० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442