Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
View full book text ________________
३२० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ३३.-एकेन्द्रिय शतक २.
बीअं सयं । १. [प्र०] कइविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा पगिदिया पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया, जाप-वणस्सइकाइया। ___२. [प्र०] कण्हलेस्सा णं भंते ! पुढविकाइया कइविहा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-मुहुमपुढविकाइया य बादरपुढविकाइया य।
____३. [प्र०] कण्हलेस्सा णं भंते ! सुहुमपुढविकाइया कइविहा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा! एवं पएणं अमिलावेणं चउक्कभेदो जहेव ओहिउद्देसए, जाव-वणस्सइकाइय त्ति ।
४. [सं०] कण्हलेस्सअपजत्तसुहुमपुढविक्काइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? [उ०] एवं चेव एएणं अभिलावणं जहब ओहिउद्देसए तहेव पन्नत्ताओ, तहेव बंधंति, तहेव वेदेति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ति।
५.प्र० काविहा णं भंते ! अणंतरोववधगकण्हलेस्सएगिदिया पन्नत्ता? [उ० गोयमा! पंचविहा अणंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा पगिदिया-एवं एएणं अभिलावेणं तहेव दुयओ भेदो जाव-वणस्सइकाइय त्ति।
६. [प्र०] अणंतरोववन्नगकण्हलेस्ससुहुमपुढविक्काइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? [उ०] एवं एएणं अमिलावणं जहा ओहिओ अणंतरोववनगाणं उद्देसओ तहेव जाव-वेदेति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते । ति ।
७. [प्र०] कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्नगा कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्नगा कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया-एवं एएणं अभिलावेणं तहेव चउकओ भेदो जाव-वणस्सइकाइय ति।
८. [प्र०] परंपरोववन्नगकण्हलेस्सअपजत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? [उ०] एवं एएणं अभिलावणं जहेव ओहिओ परंपरोववन्नगउद्देसओ तहेव जाव-वेदेति । एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिएगिदियसए पकारस उद्देसगा भणिया तहेव कण्हलेस्ससते वि भाणियचा जाव-अचरिमचरिमकण्हलेस्सा एगिदिया।
बितियं एगिदियसयं समत्तं ।
द्वितीय एकेन्द्रिय शतक. कृष्णलेश्यावाळा १. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णलेश्यावाळा एकेन्द्रिय जीवो केटला प्रकारना कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! कृष्णलेश्यावाळा एकेन्द्रियो एकेन्द्रियोना प्रकार.
का पांच प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ पृथिवीकायिक अने यावत्-५ वनस्पतिकायिक. पृथिवीकायिकोना २. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णलेश्यावाळा पृथिवीकायिको केटला प्रकारना कह्या छे! [उ.] हे गौतम ! बे प्रकारना छे, ते आ प्रकार.
प्रमाणे-१ सूक्ष्म पृथिवीकायिक अने २ बादर पृथिवीकायिक. कृष्णलेश्यावाळा
३. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णलेश्यावाळा सूक्ष्म पृथिवीकायिको केटला प्रकारना कह्या छे ! [उ०] हे गौतम! जेम औधिक सूक्ष्म पृथिवीकायिकोना प्रकार. उद्देशकमां कयुं छे तेम ए अभिलाप वडे चार भेदो यावत्-वनस्पतिकायिको सुधी जाणवा.
४. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णलेश्यावाळा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकोने केटली कर्मप्रकृतिओ होय ! [उ०] *उपर प्रमाणे जेम औधिक उद्देशकमां कहुं छे तेम ए अभिलाप वडे ते रीते ते कर्मप्रकृतिओ कहेवी. ते कर्मप्रकृतिओ तेवी रीते बांधे छे अने तेवी रीते
तेनुं वेदन पण करे छे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे.' ३३. २. अनन्तन्तरोपपन्न ५. [प्र०] हे भगवन् ! अनंतरोपपन्न कृष्णलेश्यावाळा एकेन्द्रियो केटला प्रकारना छे ? (उ०] हे गौतम ! अनन्तरोपपन्न कृष्णकृष्णलेश्यावाव्य एकेन्द्रियोना
लेश्यावाळा एकेन्द्रियो पांच प्रकारना कह्या छे. ए रीते ए अभिलापवडे पूर्वनी प्रमाणे तेना बे मेद यावत्-वनस्पतिकाय सुधी जाणवा. प्रकार.
६. [प्र०] हे भगवन् ! अनन्तरोपपन्न कृष्णलेश्यावाळा सूक्ष्म पृथिवीकायिकोने केटली कर्मप्रकृतिओ कही छे ? [उ०] ए प्रमाणे पूर्वे कहेला अमिलाप वडे औधिक अनन्तरोपपन्नना उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावत्-'वेदे छे' त्यासुधी जाणवू. 'हे भगवन् ! ते एमज छे,
हे भगवन् ! ते एमज छे'. ३३. ३. परंपरोपपन्न कृष्ण- ७. [प्र०] हे भगवन्! परंपरोपपन्न कृष्णलेश्यावाळा एकेन्द्रियो केटला प्रकारना कह्या छ ? उ०] हे गौतम! परंपरोपपन्न एकेन्द्रियो केश्यावाग एके न्द्रियना प्रकार पांच प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-पृथिवीकायिको वगेरे. एम ए अमिलापवडे तेज प्रकारे चार मेद यावत्-वनस्पतिकाय सुघी कहेवा.
८. [प्र०] हे भगवन् ! परंपरोपपन्न कृष्णलेश्यावाळा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकोने केटली कर्मप्रकृतिओ होय छे ! [उ०] ए प्रमाणे ए अभिलापवडे औधिक उद्देशकमां कहेल परंपरोपपन्न संबंधी बधी हकीकत अहीं जाणवी. तेज प्रमाणे यावत्-वेदे छेए प्रकारे ए अभिलापवडे जेम औधिक एकेन्द्रियशतकमा अगियार उदेशको कह्या छे तेम कृष्णलेश्या शतकमां पण कहेवा, यावत्-अचरम अने चरम कृष्णलेश्यावाळा एकेन्द्रियो सुधी कहे.
तेत्रीशमा शतकमां बीजु एकैद्रिय शतक समाप्त.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education international
Loading... Page Navigation 1 ... 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442