Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 384
________________ ३२६ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे- शतक ३४.-एकेन्द्रिय शतक १.-उ०१. ७. [प्र.] अपजंत्तबायरतेउकाइए णं भंते ! मणुस्सखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीएं पचच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविक्काइयत्ताए उववजित्तर से गं भंते! कासमहएणं विग्गहेणं उववजेजा [उ.] सेसं तहेव जाव-से तेण?णं । एवं पुढविक्काइएसु चउविहेसु वि उववाएयचो, एवं आउकाइएसु चउविहेसु वि, तेउकाइएसु सुहुमेसु अपजत्तपसु पजत्तपसु य एवं चेव उववाएयष्यो। ८.[प्र०] अपजत्तबायरतेउक्काइए णं भंते ! मणुस्सखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपजत्तबायरतेउक्काइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कतिसमएणं०१ [उ०] सेसं तं चेव । एवं पजत्तयायरतेउक्काइयत्ताए वि उववाएयवो। वाउकाइयत्ताए य वणस्सइकाइयत्ताए य जहा पुढविकाइएसु तहेव चउक्कएणं भेदेणं उववाएयो । एवं पजत्तवायरतेउकाइ वि समयखेत्ते समोहणावेत्ता एएसु चेव वीसाए ठाणेसु उववाएयच्चो। जहेव अपजत्तओ उववाइओ, एवं सम्वत्थ वि बायरतेउकाइया अपजत्तगा य पजत्तगा य समयखेत्ते उववाएयच्चा समोहणावेयवा वि २४०। वाउकाइया वणस्सकाइया य जहा पुढविकाइया तहेव चउक्कएणं भेदेणं उववाएयवा । जाव ९. [प्र०] पजत्ताबायरवणस्सइकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते पजत्तबायरवणस्सइकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं० [उ०] सेसं तहेव जाव-से तेण?णं० । १०. [प्र०] अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं० १ [उ०] सेसं तहेव निरवसेसं । एवं जहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते सच्चपदेसु वि समोहया पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाइया, जे य समयखेत्ते समोहया पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाइया, एवं एएणं चेव कमेणं पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयचा तेणेव गमएणं । एवं एएणं गमएणं दाहिणिल्ले चरिमंते समोहयाणं उत्तरिले चरिमंते समयखेत्ते य उववाओ, एवं चेव उत्तरिले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाएयवा तेणेव गमएणं । अपर्याप्त बादरतेज ७. प्र हे भगवन! अपर्याप्त बादर तेजस्काय, जे मनुष्यक्षेत्रमा मरणसमदघात करी रत्नप्रभा पृथ्वीना पश्चिम चरमांतमां स्कायनो उत्पाद. अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन् ! केटला समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय ! [उ०] बाकीर्नु पूर्वनी पेठे यावत्-ते कारणथी एम कहेवाय छे-त्यां सुधी जाणवू. ए रीते (अपर्याप्त बादर तेजस्कायने) चारे प्रकारना पृथिवीकायिकोमां, चारे प्रकारना अप्कयिकोमां तथा अपर्याप्त अने पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकोमां पण उपजाववो. ८. [प्र०] हे भगवन् ! जे अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक, जे मनुष्यक्षेत्रमा मरणसमुद्घात करी मनुष्य क्षेत्रमा अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य होय ते हे भगवन् ! केटला समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय! (उ०] बाकी बधु पूर्वनी पेठे जाणवु. अने ए जरीते तेने पर्याप्त बादर तेजस्कायपणे पण उत्पन्न कराववो. जेम पृथिवीकायिकोमा कयुं छे तेम चारे भेदथी वायुकायिकपणे अने वनस्पतिकायिकपणे पण उपजाववो. ए रीते पर्याप्त बादर तेजस्कायिकने पण समयक्षेत्रमा समुद्घात करावी ए ज वीशस्थानकोमा उत्पन्न कराववो. जेम अपर्याप्तनो उपपात कह्यो तेम सर्वत्र पण पर्याप्त अने अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकोने समयक्षेत्रमा उत्पन्न कराववा अने समुद्घात कराववी. (२४०) जेम पृथिवीकायिकोनो उपपात कह्यो तेम चार भेदथी वायुकायिको (३२०) अने वनस्पतिकायिकोने पण उपजाववा. (४००) यावत्पर्याप्त बादर वनस्प ९. [प्र०] हे भगवन् ! जे पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक आ रत्नप्रभा पृथिवीना पूर्व चरमांतमा मरणसमुद्घात करी आ रत्नप्रभा तिकायिकनो उत्पादः पृथिवीना पश्चिम चरमांतमा बादर वनस्पतिकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते, हे भगवन् ! केटला समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय ! [उ०] बाकी बधुं तेमज जाणवू. यावत्-ते कारणथी एम कहेवाय छे-त्यांसुधी समजq. अपर्याप्त सूक्ष्म पृथि- १०. [प्र०] हे भगवन् ! जे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक आ रत्नप्रभा पृथिवीना पश्चिम चरमांतमां समुद्घात करी आ रन प्रभा पृथिवीना पूर्व चरमांतमां अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन् ! केटला समयनी विग्रहगतिथी उत्पाद. उत्पन्न थाय ? [उ०] बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे जेम पूर्व चरमांतमा सर्वपदोमां समुद्घात करी पश्चिम चरमांतमा अने समय क्षेत्रमा उपपात कह्यो तथा जेनो समयक्षेत्रमा समुद्घातपूर्वक पश्चिम चरमांतमां अने समयक्षेत्रमा उपपात कह्यो तेम एज क्रमवडे पश्चिम चरमांतमा अने समयक्षेत्रमा समुद्घातपूर्वक पूर्व चरमांतमां अने समयक्षेत्रमा तेज गमवडे उपपात कहेवो अने बधुं ते ज गमवडे कहेवू. ए प्रमाणे ए गमवडे दक्षिणना चरमांतमा समुद्घातपूर्वक उत्तरना चरमांतमा अने समयक्षेत्रमा उपपात कहेवो, अने ए ज रीते उत्तर चरमांतमा अने समयक्षेत्रमा समुद्घात करावी दक्षिण चरातमा अने समयक्षेत्रमा तेज गमवडे उपपात कहेवो. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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