Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 388
________________ ३३० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रहे- शतक ३४. एकेन्द्रियशतक १.-उदेशक १. सुहुमवणस्सहकाइएसु, अपजत्तएसु पजत्तपसु य बारससु वि ठाणेसु एएणं चेव कमेणं भाणियथो। सुदुमपुढविकाइमओ पजतमो-एवं चेव निरवसेसो बारससु वि ठाणेसु उववाएयचो. २४ । एवं पएणं गमएणं जाव-सुएमवणस्सइकाइयो पजसो सुठुमवणस्सइकाइएसु पज्जत्तएसु चेव भाणियचो । २३. [प्र०] अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइएसु उववजित्तए से णं भंते ! कासमइएणं विग्गहेणं उववजेजा। [उ.] गोयमा! दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववजह । [प्र०] से केण?णं भंते ! एवं वुवा [30] एवं खा गोयमा! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ता, तंजहा-१ उजुआयता, जाव-७ अद्धचकवाला। एगओवंकाए सेढीए उववजमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववजा, दुहओवंकाए सेढीए उववजमाणे जे भविए एगपयरंमि अणुसेढीओ उववजित्तए से णं तिसमइपणं विग्गहेणं उववजेजा, जे भविए विसेदि उववजित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा से तेणटेणं गोयमा । एवं एएणं गमएणं पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए दाहिणिल्ले चरिमंते उववाएयचो, जाव-सुहुमवणस्सइकाइओ पजत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु पजत्तएसु चेव । सधेसि दुसमइओ तिसमइओ चउसमइओ विग्गहो भाणियो। २४. [प्र०] अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा! [उ.] गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा। [प्र०] से केणटेणं०१ [उ०] एवं । जहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहया पुरच्छिमिल्ले चेव चरिमंते उववाइया तहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहया पचच्छिमिल्ले चरिमंते उववाएयचा सके। २५. [प्र०] अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स उत्तरिले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते. १ [उ०] एवं जहा पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिणिल्ले चरिमंते उववाइओ तहा पुरच्छिमिल्ले समोहओ उत्तरिले चरिमंते उववाएयधो। .. तेम थवाचं कारण. भने पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकोमां, ८ अपर्याप्त अने पर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिकोमां, १० अपर्याप्त अने पर्याप्त बादर वायुकायिकोमां, तथा १२ अपर्याप्त भने पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकोमां, एम अपर्याप्त अने पर्याप्त मळी ए बारे स्थानकोमां क्रमपूर्वक कहेवो. सूक्ष्म पृथिवीकायिकपर्याप्तानो एज प्रमाणे बारे स्थानकोमा समग्र उपपात कहेवो. ए रीते ए गमवडे यावत्-पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकनो पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकोमाज उपपात कहेवो. अप० सू० पृथिवीकायिकनो उपपात. २३. [प्र०] हे भगवन् ! जे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक, लोकना पूर्व चरमांतमा समुद्घात करी लोकना दक्षिण चरमांतर्मा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन् ! केटला समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय. [उ०] हे गौतम । ते बे समयनी, त्रण समयनी के चार समयनी विप्रहगतिथी उत्पन्न थाय. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहेवाय छे । उ०] हे गौतम ! मे खरेखर सात श्रेणीओ कही छे. ते आ प्रमाणे-१ ऋज्वायता अने यावत्-७ अर्धचक्रवाला. जो ते जीव एक तरफनी वक्र श्रेणीथी उत्पन्न थाय तो ते बे समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय, उभयतः वक्र श्रेणीथी उत्पन्न थाय तो जे एक प्रतरमां अनुश्रेणि-समश्रेणिए उत्पन्न थवानो छे ते त्रण समयनी विग्रहगतिथी उपजे अने जे विश्रेणीमा उत्पन्न थवानो छे ते चार समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय. हे गौतम | ते कारणथी ए प्रमाणे कयुं छे. ए रीते ए गमवडे पूर्व चरातमा समुद्घातपूर्वक दक्षिण चरमांतमा उपजाववो. यावत्-पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकनो पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकोमा उपपात कहेवो अने बधाने बे समयनी, त्रण समयनी अने चार समयनी विग्रह गति कहेवी. २४. [प्र०] हे भगवन् । जे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक लोकना पूर्व चरमांतमा समुद्घात करी लोकना पश्चिम चरमतिमा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन् ! केटला समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! ते एक समयनी, बे समयनी, प्रण समयनी के चार समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो! [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे जाणवू. जेम पूर्व चरमांतमा समुद्घात करी पूर्व चरमांतमांज उपपात कह्यो तेमज पूर्व चरमांतमा समुद्घात करवा पूर्वक पश्चिम चरमतिमा बधाना उपपात कहेवा. कोकना पूर्वचरमा- २५. [प्र०] हे भगवन् ! जे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक लोकना पूर्व चरमांतमां मरणसमुद्घात करी लोकना उत्तर चरमतिमा न्तमा विग्रहगति. - अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते केटला समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय ! [उ०] जेम पूर्व चरमांतमा समुद् घातपूर्वक दक्षिण चरमतिमा उपपात कह्यो तेम पूर्व चरमातमा समुद्घातपूर्वक उत्तर चरमांतमा उपपात कहेवो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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