Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 402
________________ • श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे शतक ३५. उद्देश २ ६. [ प्र० ] पढमचरमसमयकडजुम्मकडजुम्मगंदिया णं भंते! को उचचजंति [४०] जहा चरमुद्देसमो तब निरवसेसं 'सेवं भंते । सेवं मंते' । ति । ३५-८ । 1 ३४४ ७. [०] पढमअचरमसमयकडजुम्मकडजुम्मएर्गिदिया णं भंते! कओ उवषजंति ? [उ०] जहा बीमो उद्देसमो तव निरवसेसं । 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! त्ति जाव- विहरइ । ३५-९ । ८. [प्र०] चरमचरमसमयकडजुम्मकडजुम्मएर्गिदिया णं भंते ! कओ उबवजंति ? [30] जहा त्यो उद्दे तद्वेष 'सेयं भंते । सेयं भंते' ति । ३५-१० । ' ९. [ प्र० ] चरम अचरमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगि दिया णं भंते! कओ उववजंति ? [ ७०] जहा पढमसमयउद्देसओ तदेव निरवसेसं । 'सेयं मंते सेवं मंते' ! त्ति जाव विहरति । ३५-११ । I एवं एए एक्कारस उद्देसगा । पढमो ततिओ पंचमओ य सरिसगमा, सेसा अट्ठ सरिसगमगा । नवरं चउत्थे छ अट्टमे दसमे य देवा न उववज्रंति । तेउलेस्सा नत्थि । पणतीसइमे सए पढमं एगिंदियमहाजुम्मसयं समत्तं । ६. [अ०] हे भगवन् ! प्रथम- चरमसमयप कृतयुग्मकृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रियो स्यांची आयी उत्पन्न चाय छे ! [उ०] हे गौतम | म चरमउद्देशक को तेमज बाकी वधुं जाण. 'हे भगवन्! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'. ३५-८. ७. [प्र०] हे भगवन् ! प्रथम- अचरमसमयवर्ती कृतयुग्मकृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रियो क्यांची आवी उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम! फ्रेम बीजो उदेशक को तेमज बधुं समज. 'हे भगवन् ! से एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'- एम कहीं यावत् विहरे छे. ३५-९ [उ०] जेम चोपो ८. [प्र० ] हे भगवन् ! चरम - चरमसमयवर्ती कृतयुग्मकृतयुग्मरूप एकेन्द्रियो क्यांची आवी उत्पन थाय छे ! उद्देशक कह्यो तेमज बधुं जाणवुं. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. ३५-१०. ९. [प्र०] हे भगवन् ! चरम - अचरमसमयवर्ती कृतयुग्मकृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रियो क्यांथी आवी उत्पन्न थाय छे ? [उ०] हे गौतम ! जैम प्रथम समय संबंधे उद्देशक को तेमज वधुं जाणवुं. 'हे भगवन् ! ते एमन छे, हे भगवन् से एमज छे'-एम कही यावत्हिरे. ३५-११ 1 ए रीते ए अगियार उदेशको कहेना. पहेलो, श्रीजो अने पांचमो सरला पाठवाळा छे, अने माकीना आठ उद्देशको सरखा पाठवाव्य छे, परन्तु चोथा, छट्ठा, आठमा भने दसमा उदेशकमा देयो उपजता नयी अने तेओने तेजोलेश्या नथी. पांत्रीशमा शतकर्मा प्रथम एकेन्द्रिय महायुग्मशतक समाप्त. वितियं एगिदियं महाजुम्मसयं १. [०] कण्लेसकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कभी उपजंति [30] गोयमा उपचाओ तहेब, एवं जहा ओहिउद्देसर | नवरं इमं नाणत्तं ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ? [उ०] हंता कण्हलेस्सा । द्वितीय एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. १. [प्र० ] हे भगवन् ! कृष्णलेश्यावाळा कृतयुग्मकृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रियो क्यांची आवी उत्पन्न थाय छे ! [उ०] हे गौतम! औधिक उद्देशकमां का प्रमाणे उपपात जाणवो. पण तेमां आ विशेषता छे * ६ आठमा उद्देशकमा विवक्षित संख्याना अनुभवना प्रथम समयवर्ती होवाथी प्रथम अने चरम समय - मरणसमयवर्ती एवा कृतयुग्म कृतयुग्मराशि रूप एकेन्द्रियो ते प्रथमचरमसमयकृतयुग्मकृतयुग्मरूप एकेन्द्रियो कहेवाय छे. उद्देशकमा प्रथम विवक्षिताना अनुभवना प्रथम समये वर्तमान तथा अचरम समय- (एकेन्द्रियोत्पादन अपेक्षाए) प्रथम समवर्ती विपक्षित से डेमके तेलोमा विषेय है जो एम न होय तो गीगा उद्देशांक वाहनादिनी माटे तेज प्रथमअचरमसमय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रियो कहेवाय. छे. + दशमा उद्देशकमा चरम विवक्षित संख्यानी राशिना अनुभवना छल्ला समये वर्तमान, अने चरमसमय-मरणसमयवर्ती एवा कृतयुग्म २ एकेन्द्रियो से चरम परमसमयकृतयुग्म १ एकेन्द्रियो का . अगियारमा उद्देशकमा चरम विवक्षित संख्यामी राशिना अनुभवने - समये वर्तमान अचरमसमय एकेोत्पादन अपेक्षा प्रथमसमययत एवा कृतयुग्म २ एकेन्द्रियो ते चरम - अचरम कृतयुग्म २ एकेन्द्रियो कहेवाय छे. " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:

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