Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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जे अप० सू० पृथिवी कायिकनी बा० तेज
कायिका केटा समयनी गति होय !
अपर्याप्त बादर तेज गति.
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श्रीरामचन्द्र-जिनागमसंमद्दे
शतक ३४ - एकेन्द्रिय शतक १.३० १. दीप उववजित्तए से णं तिसमइपणं विग्गहेणं उववजेजा, जे भविष विसेढीप उववजित्तर से णं चउसमइरणं विग्गणं उपयजेज्ञा से तेपणं जाय-उपवखेखा । एवं पञ्जतसुमपुडविकाइयत्ताय वि एवं आय पक्षसमतेडकाइयतार ।
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१५. [०] अपपुढचिकाइए णं भंते! अहेलोग जाय समोहणित्ता जे भविष्य समयमेते अपक्षत्तवावरतेउकाइयत्ताए उववजित्तप से णं भंते ! कइसमइरणं विग्गहेणं उववजेजा ? [30] गोयमा ! दुसमइरण वा तिसमइपण वा पिग्गणं उचचलेखा [०] से केणद्वेगं० १ [४०] एवं खलु गोपमा ! मए सत्त सेडीयो पन्नताओ, संजदा-१ उखुभाषता, जाव-७ अद्धचक्कवाला । एगओवंकाए सेढीए उववजमाणे दुसमइरणं विग्गहेणं उववज्जेजा, दुहओवंकाए सेढी उववजमाणे तिसमइणं विग्गणं उववजेजा, से तेणट्टेणं० । एवं पजत्तपसु वि बायर उकाइपसु वि उववारयो । वाउक्कादयचणस्सइकाइयचाप चढकरणं भेदेणं जहा भाउफाहयत्तार तहेव उववापयचो २० एवं जदा अपनतम विकाइपरस गमओ भणिओ एवं पत्तमपुचिकायरस वि भागियो, तदेव बीसाए ठाणेसु उपपायो ४० ।
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१६. [प्र०]० अहोलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहर, समोहणित्ता ० १ [उ०] एवं बायरपुढविकाइयस्स वि अपजत्तगस्स पजत्तगस्स य भाणियनं ८० । एवं आउक्काइयस्स चउविहस्स वि भाणियवं १६० । सुदुमतेडक्काइस दुबिस्स वि एवं चैव २०० ।
१७. [प्र०] अपात्तवावरतेडकाइए नं भंते! समयसेत्ते समोहर, समोहणित्ता जे भविष उडलोगलेत्तनालीए वाहिरिले अपक्षान्तमदविकाइयत्तार उपवजित्तर से णं भंते! कइसमइरणं विग्गणं उपयजेला १ [30] गोयमा ! दुसमहपण या तिसमइण वा चउसमहरण या विग्गणं उपयखेखा [प्र०] से केणद्वेणं १ [४०] भट्ठो जब रयणप्पभाए सहेब सत्त सेडीओ एवं जाव
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१८. [२०] अपजतचायतेडकाइए णं भंते । समयसेत्ते समोहर, समोहणित्ता जे भविए उद्धलोग लेत्तनाली बाहि रिले खेत्ते पञ्चत्तमते काहयत्ताय उपपत्ति से नं भंते [of [४०] सेसं तं चैव ।
यिकपणे एक प्रतरमां अनुश्रेणी - समश्रेणिमां उत्पन्न थवाने योग्य छे ते त्रण समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय, जे विश्रेणीमा उत्पन्न थवाने योग्य छे ते चार समयनी निमगतिषी उत्पन्न थाय. माटे ते कारणयी यावत् [त्रण समय के चार समपनी विग्रहगतिथी ] उत्पन्न थाप छे. ए रीते पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकपणे अने यावत्-पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकपणे जे उपजे ते माटे पण एमज जाग.
१५. [प्र० ] हे भगवन् ! जे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अधोलोक क्षेत्रनी त्रसनाडीनी बहारना क्षेत्रमां मरणसमुदूघात करी समय क्षेत्रमां अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकपणे उत्पन्न धवाने योग्य हे ते, हे भगवन्! केटला समवनी विग्रहगतिथी उत्पन्न चाय [४०] है गौतम ! ते बे समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न याय के त्रण समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय. [प्र० ] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो ? [उ०] हे गौतम! में सात श्रेणिओ कही छे, ते आ प्रमाणे- १ ऋजु आयत- सीधी लांबी श्रेणि अने यावत्-७ अर्धचक्रवाल जो ते जीब एक तरफ वक्र श्रेणीथी उत्पन्न धाय तो वे समपनी विग्रहगतिथी उत्पन्न घाय अने जो उभयतः वक्र श्रेणीची उत्पन्न थाय तो त्रण समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय, ते कारणथी एम कयुं छे. एम पर्याप्त बादर तेजस्कायिकोमां पण उपपात कराववो. अकायिकनी पेठे वायुफायिक अने वनस्पतिकाविकपणे चारे मेदवडे उपपात कराववो (२०) ९ प्रमाणे जेम अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक संबंचे गमक कह्यो ते पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक संबंधे पण गमक कहेवो अने तेज प्रकारे तेने वीशे स्थानकमां उपजाववो (४०).
१६. अधोलोकक्षेत्रनी त्रसनाडीना बहारना क्षेत्रमां मरणसमुद्घात करी - इत्यादि पर्याप्त अने अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक संबंधे पण एमज कहेवुं. अने ए रीते चारे प्रकारना अष्कायिक संबंधे पण कहेतुं १६० बन्ने प्रकारना सूक्ष्म तेजस्कायने पण एमज जानुं २००.
१७. [प्र०] हे भगवन् ! जे अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक समयक्षेत्रमां मरणसमुद्घात करी ऊर्ध्वलोक क्षेत्रनी त्रसनाडीना बहाना क्षेत्रमा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपणे उत्पन्न दयाने योग्य छे ते, हे भगवन् । केटला समपनी विग्रहगतिथी उत्पन्न याय [अ०] हे गौतम ! बे समयनी, त्रण समयनी के चार समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय. [ प्र० ] हे भगवन् ! शा हेतुथी एम कहेवाय छे ? [उ०] हे गौतम ! खाप्रभा संबंधे पूर्वीक सात श्रेणीओना कयनरूप जे हेतु कह्यो के बाद से हेतु जाणो.
अप०या० तेजस्का
१८. [प्र०] हे भगवन् ! जे पर्यास बादर तेजस्कायिक समयक्षेत्रमां मरणसमुद्घात करीने उठोक क्षेत्रनी प्रसनादीनी बहारना विकनी प०सु० तेज- क्षेत्रमां पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन् ! केटला समयना विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम!
स्कायिकरूपे विग्रह
मृति.
बाकी वधुं तेमज जाण
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