Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक ३०.-उदेशक १.
भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र
बीओ उद्देसो। १. [प्र०] अणंतरोषवनगा गं भंते ! नेराया कि किरियावादी-पुच्छा [उ०] गोयमा! किरियावादी वि, जाव-वेण. 'इयवादी वि।
२. [३०] सलेस्सा णं मंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं किरियावादी ? [उ०] एवं चेव, एवं जहेव पढमुद्देसे नेपयाणं वत्तचया तहेव इह वि भाणियथा । नवरं जं जस्स अस्थि अणंतरोववनगाणं नेरायाणं तं तस्स भाणियवं । एवं सञ्चजीवाणं जाव-वेमाणियाणं । नवरं अणंतरोषवनगाणं जं जाहिं अत्थि तं तर्हि भाणियछ ।
३.प्र० किरियावाई णं मंते ! अणंतरोववनगा नेदया किं नेरइयाउयं पकरेइ-पुच्छा। [उ०] गोयमा! नो नेण्याउयं पकरेंति, नो तिरि०, नो मणु०, नो देवाउयं पकए । एवं अकिरियावादी वि अन्नाणियवादी वि वेणइयवादी वि ।
४. [प्र०] सलेस्सा णं भंते ! किरियावादी अणंतरोववनगा नेरइया कि नेरइयाउयं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेइ, जाव-नो देवाउयं पकरे । एवं जाव-वेमाणिया । एवं सघटाणेसु वि अणंतरोववनगा नेराया न किंचि वि आउयं पकरेति जाव-अणागारोवउत्तत्ति । एवं जाव-वेमाणिया, नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियवं ।
५. [प्र०] किरियावादी णं भंते ! अणंतरोववनगा नेराया किं भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया ? [उ०] गोयमा ! भवसिखिया, नो अभवसिद्धिया।
६. [H०] अकिरियावादी णं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! भवसिद्धिया वि, अभयसिद्धिया वि । एवं अन्नाणियवादी वि घेणइयवादी वि।
७. [म.] सलेस्सा णं भंते ! किरियावादी अणंतरोववनगा नेल्या किं भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया? [उ.] गोयमा! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया। एवं एएणं अभिलावणं जहेष ओहिए उहेसए नेरायाणं वत्तधया भणिया तहेव इह वि माणियहा जाव-अणागारोवउत्तत्ति । एवं जाव-वेमाणियाणं । नवरं जं जस्स अत्थितं तस्स माणियचं । इमं से लक्षणं-जे किरि
द्वितीय उद्देशक. १. [प्र०] हे भगवन् ! अनंतरोपपन्नक (तुरत उत्पन्न ययेला) नैरयिको शुं क्रियावादी छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! अनन्तरोपपन्न नैर
विकोने क्रियावातेओ क्रियावादी पण छे अने यावत्-विनयवादी पण छे.
दित्वादि. २. [प्र०] हे भगवन् ! लेश्यावाळा अनंतरोपपन्नक नैरयिको शुक्रियावादी छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम | जेम प्रथम उद्देशकमां वक्तव्यता कही छे तेम अहीं पण कहेवी. विशेष ए के, अनंतरोपपन्नक नैरयिकोमा जेने जे संभवे तेने ते कहे. ए प्रमाणे सर्व जीवो यावत्-वैमानिकोने पण समजवू. विशेष ए के, अनन्तरोपपन्न जीवोने जे संभवे ते तेने कहे. ३. [प्र०] हे भगवन् ! क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिको शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! क्रियावादी अनन्त
रोपपन्न नैरपिकोने तेओ नैरयिक, तिथंच, मनुष्य के देवनुं आयुष बांधता नथी. एज रीते अक्रियावादी, अज्ञानघादी अने विनयवादी संबन्धे पण जाणq.
भायुषबन्ध ४. [प्र०] हे भगवन् ! लेश्यावाळा अनन्तरोपपन्नक क्रियावादी नैरयिको शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ नैरयिकनुं यावत्-देवतुं आयुष बांधता नथी. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी समजवु. ए रीते सर्व स्थानोमा अनन्तरोपपन्नक नैरयिको कोइ पण आयुषनो बन्ध करता नथी. ए प्रमाणे यावत्-अनाकार उपयोगवाळा जीवो सुधी जाणवू. एम यावत्वैमानिको सुधी जाणवं. विशेष ए के जेने जे होय ते तेने कहे.
___५. [प्र०] हे भगवन् ! क्रियावादी अनन्तरोपपन्न नैरयिको शुं भवसिद्धिक छे के अभवसिद्धिक छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ अनन्तरोपपत्र क्रियाभवसिद्धिक छे, पण अभवसिद्धिक नथी.
वादी नैरयिको भव्य
छे के अभव्य छ। ६. [प्र०] अक्रियावादी संबंधे पृच्छा. उ०] हे गौतम | तेओ भवसिद्धिक पण छे अने अभवसिद्धिक पण छे. ए प्रमाणे अज्ञानवादी अने विनयवादी संबंधे पण समजबू.
७. [प्र०] हे भगवन् । लेश्यावाळा अनन्तरोपपन्न क्रियावादी नैरयिको शुं भवसिद्धिक छे के अभवसिद्धिक छे! [उ०] हे गौतम! तेओ भवसिद्धिक छे, पण अभवसिद्धिक नथी. ए प्रमाणे ए अभिलापथी जेम औधिक उदेशकमा नैरयिकोनी वक्तव्यता कही तेम नहीं
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