Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक ३०.-उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२०७
२८. 14.1 किरियावादीण भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया किं नेइयाउयं पकर-पुच्छा। उ०] गोयमा। जहा मणपज्जवनाणी । अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी य चउधिह पि पकरेह । जहा ओहिया तहा सलेस्सा वि।
२९. [4] कण्हलेस्सा णं भंते! किरियावादी पंचिंदियतिरक्खजोणिया किं नेरइयाउयं-पुच्छा। उ० गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेइ, णो तिरिक्ख०, नो मणुस्साउयं०, नो देवाउयं पकरेइ । अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवाई चउचिहं पिपकरेइ । जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सा वि, काउलेस्सा वि, तेउलेस्सा जहा सलेस्सा। नवरं अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणइयवादी य णो नेरइयाउयं पकरेइ, देवाउयं पि पकरेइ, तिरिक्खजोणियाउयं पिपकरेइ, मणुस्साउयं पि.
पडलेसा वि.एवं सकलेस्सा विभाणियचा । कण्हपक्खिया तिहिं समोसरणेहिं चउविहं पि आउयं पकते। सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा । सम्मदिट्टी जहा मणपजवनाणी तहेव वेमाणियाउयं पकरदे । मिच्छदिट्टी जहा कण्हपक्खिया। सम्मामिच्छादिट्टी ण य एकं पि पकरेइ जहेव नेरदया। णाणी जाव-ओहिनाणी जहा सम्महिट्ठी । अन्नाणी जाव-विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया । सेसा जाव-अणागारोवउत्ता सधे जहा सलेस्सा तहा चेव भाणियधा । जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वत्तवया भणिया एवं मणुस्साण वि माणियचा, नवरं मणपजवनाणी नोसन्नोवउत्ता य जहा सम्मद्दिट्ठी तिरिक्खजोणिया तहेव भाणियवा । अलेस्सा केवलनाणी अवेदगा अकसायी अयोगी य पए न एग पि आउयं पकरेइ । जहा ओहिया जीवा सेसं तहेव । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा।
३०. [प्र०] किरियावादी णं भंते ! जीवा किं भवसिद्धीया अभवसिद्धीया ? [उ०] गोयमा! भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया।
३१. [प्र०] अकिरियावादी णं भंते ! जीवा किं भवसिद्धीया-पुच्छा। [30] गोयमा! भवसिद्धीया वि, अमवसिद्धीया वि। एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि ।
२९.प्र.
२८. [प्र०] हे भगवन् ! क्रियावादी पचेंद्रिय तिर्यंचयोनिक जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! क्रियावादी पं० ति ये मनःपर्यवज्ञानीनी पेठे जाणq. अक्रियावादी, अज्ञानवादी अने विनयवादी पंचेंद्रिय तिर्यंचयोनिक जीवो चारे प्रकारना आयुषनो बन्ध करे चन छे. लेश्यावाळा जीवो औधिक पंचेन्द्रिय तियंचयोनिकनी पेठे कहेवा. २. [प्र०] हे भगवन् । कृष्णलेश्यावाळा क्रियावादी पंचेंद्रिय तिर्यंचयोनिक जीवो शं नैरयिकतुं आयुष बाँधे-इत्यादि पृच्छा. कृष्णलेश्यावाळा कि
याषादी पं० तिर्यंच[उ०] हे गौतम ! तेओ *नैरयिक, तिथंच, मनुष्य के देव- आयुष बांधता नथी. अक्रियावादी, अज्ञानवादी अने विनयवादी चारे नानो प्रकारना आयुषने बांधे छे. जेम कृष्णलेश्यावाळाने कडं तेम नीललेश्यावाळा अने कापोतलेश्यावाळाने समजवु. लेिश्यावाळानी जेम तेजोलेश्यावाळा जाणवा. परन्तु अक्रियावादी, अज्ञानवादी, अने विनयवादी नैरयिकतुं आयुष बांधता नथी, पण देवनु, तियेचनुं अने मनुष्यनु आयुष बांधे छे. ए रीते पद्मलेश्यावाळा तथा शुक्ललेश्यावाळाने पण कहे. कृष्णपाक्षिक प्रण (क्रियावादी सिवाय बाकीनां) समवसरणो वडे चारे प्रकारचें आयुष बांधे छे. शुक्लपाक्षिकने लेश्यावाळानी पेठे जाणवु. सम्यग्दृष्टि मनःपर्यवज्ञानीनी जेम वैमानिकनुं आयुष बांधे छे. कृष्णपाक्षिकोनी जेम मिथ्यादृष्टि जाणवा. सम्यग्मिथ्यादृष्टि एक पण आयुष बांधता नथी, अने तेओने नैरयिकोनी जेम छेल्ला बे समवसरणो जाणवा. ज्ञानी अने यावत्-अवधिज्ञानी सम्यग्दृष्टिनी जेम जाणवा. अज्ञानी अने यावत्-विभंगज्ञानी कृष्णपाक्षिकोनी जेम जाणवा. बाकीना यावत्-अनाकार उपयोगवाळा सुधी बधाने लेश्यावाळानी जेम जाणवं. जेम पंचेंद्रिय तिर्यचयोनिकोनी यक्तव्यता कही छे एम मनुष्योनी पण वक्तव्यता कहेवी. परन्तु मनःपर्यवज्ञानी अने नोसंज्ञामा उपयुक्त जीवोने सम्यग्दृष्टि तिर्यंचयोनिकनी जेम जाणवं. लेश्यारहित, केवळज्ञानी, वेदरहित, कषायरहित अने योगरहित जीवो औधिक जीवोनी जेम आयुष बांधता नथी. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिकोने असुरकुमारोनी जेम समजq.
३०. [प्र० हे भगवन् ! शुक्रियावादी जीवो भवसिद्धिक छे के अभवसिद्धिक छे! [उ०] हे गौतम | तेओ भवसिद्धिक के क्रियावादी भव्य के पण अभवसिद्धिक नथी.
मभव्य ३१. प्रि०ा हे भगवन् । शुं अक्रियावादी जीवो भवसिद्धिक छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम! तेओ भवसिद्धिक पण छे पक्रियावादी भव्य अने अभवसिद्धिक पण छे. ए ज रीते अज्ञानवादी अने विनयवादी संबंधे पण समजq.
देवमव्य।
उहिं पि ग-ध। २९ * ज्यारे सम्यग्दृष्टि पंचेन्द्रिय तिर्यच कृष्णादि अशुभ लेश्याना परिणामवाळा होय छे त्यारे तेश्रो कोइ पण आयुषनो बन्ध करता नथी अने तेजोलेश्यादि शुभ परिणामवाळा होय छे त्यारेज केवळ वैमानिकायुषनो बन्ध करे छे.-टीका.
+तेजोळेश्यावाळाने लेश्यावाळानी पेठे आयुषनो बन्ध जाणवो एटले क्रियावादी वैमानिकायुष ज बांधे अने वीजा त्रण समवसरणवाळा चारे
प्रकारचें आयुष बांधे, कारणके लेश्यावाळाने ए प्रमाणे आयुषनो बन्ध कहेलो छे. Jain Education International
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