Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 364
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ३०.-उद्देशक १० दगा जहा अलेस्सा । सकसायी जाव-लोभकसायी जहा सलेस्सा । अकसायी जहा अलेस्सा । सयोगी जाव-काययोगी जहा सलेस्सा । अजोगी जहा अलेस्सा। सागारोवउत्ता य अणागारोवउत्चा य जहा सलेस्सा। २३. प्रि० किरियावादी भंते! नेरइया कि नेरइयाउयं-पुच्छा।[10] गोयमा! नो नेरदयाउयं०, नो तिरिक्त, मणुस्साउयं पकरेह, नो देवाउयं पकर। २४. [प्र०] अकिरियावादी णं भंते नेरइया-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नो नेरड्याउयं०, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेए, मणुस्साउयं पि पफरेइ, नो देवाउयं पकरेइ । एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि । २५. [प्र०] सलेस्सा णं भंते ! नेरइया किरियावादी कि नेरइयाउयं० १ [१०] एवं सधे वि नेरया जे किरियावादी ते मणुस्साउयं एगं पकरेइ, जे अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणइयवादी ते सचट्ठाणेसु वि नो नेरइयाउयं पकरेइ, तिरि खजोणियाउयं पि पकरेइ, मणुस्साउयं पि पकरेइ, नो देवाउयं पकरेइ । नवरं सम्मामिच्छत्ते उवरिलेहिं दोहि वि समोसरणेहिं न किंचि वि पकरेइ जहेव जीवपदे । एवं जाव-थणियकुमारा जहेव नेरदया। ' २६. [प्र०] अकिरियावादी णं भंते ! पुढविक्काइया-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ, तिरिफ्नजोणियाउयं०, मणुस्साउयं०, नो देवाउयं पकरेइ । एवं अन्नाणियवादी वि। २७. [प्र०] सलेस्सा णं भंते ! ? [उ०] एवं जं जं पदं अत्थि पुढविकाइयाणं तहिं तहिं मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु एवं चेव दुविहं आउयं पकरेह । नवरं तेउलेस्साए न कि पि पकरेइ । एवं आउक्काइयाण वि, एवं वणस्सइकाइयाण वि। तेउकाइआ वाउकाइआ सवट्ठाणेसु मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु नो नेरइयाउयं पकरेइ, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेग, नो भणुस्सा. उयं०, नो देवाउयं पकरेइ । बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं जहा पुढविकाइयाणं। नवरं सम्मत्त-नाणेसुन एक पि आउयं पकरेइ। वाळा जीवोनी जेम जाणवू. कषायरहित जीवोने लेश्यारहित जीवोनी जेम जाणवू. योगवाळा अने यावत्-काययोगवाळा जीवो लेश्यावाळा जीवोनी जेम जाणवा. योगरहित जीवोने लेश्यारहित जीवोनी पेठे समज. साकारोपयोगवाळा अने अनाकारोपयोगवाळाने लेश्यावाळा जीवोनी जेम जाणवू. क्रियावादी नैरयिको २३. [प्र०] हे भगवन् ! क्रियावादी नैरयिको शुं नैरयिकनुं आयुष बधेि-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम । तेओ *नैरयिक ___ आयुष, तिथंचनुं आयुष अने देवोनुं आयुष बांधता नथी, पण मनुष्यनु आयुष बांधे छे. भक्रियावादी नैरयि- २४. [प्र०] हे भगवन् । अक्रियावादी नैरयिको शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम | तेओ नैरयिक कोने आयुषबन्ध. अने देवतुं आयुष बांधता नथी, पण तिथंच अने मनुष्यनुं आयुष बांधे छे. ए प्रमाणे अज्ञानवादी अने विनयवादी संबंधे पण जाणवं. सळेश्य क्रियावादी २५. [प्र०] हे भगवन् ! लेश्यावाळा क्रियावादी नैरयिको शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! जे नैरयिकोने आयुष नैरयिको क्रियावादी छे तेओ बधा एक मनुष्यनुं ज आयुष बधि छ; अने जेओ अक्रियावादी, अज्ञानवादी अने विनयवादी छे तेओ बर्धा बन्ध स्थानोमां पण नैरयिक अने देव- आयुष बांधता नथी, पण तिथंच अने मनुष्य- आयुष बांधे छे. पण विशेष ए के, सम्यग्मिध्यादृष्टि उपरनां अज्ञानवादी अने विनयवादी-ए बे समवसरणमां जेम जीवपदमा कयुं छे तेम कोइ पण आयुषनो बन्ध करतो नथी. जेम नैरयिकोने कंह्यं तेम यावत्-स्तनितकुमारोने पण समजवू. अक्रियावादी पृथिवी- २६. [प्र०] हे भगवन् ! अक्रियावादी पृथिवीकायिको शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ नैरयिकनुं अने देव- आयुष नथी बांधता, पण तिथंच अने मनुष्य- आयुष बांधे छे. ए प्रमाणे अज्ञानवादी संबंधे पण समजq. बन्ध. २७. [प्र०] हे भगवन् ! लेश्यावाळा पृथिवीकायिको संबन्धे पृच्छा. [उ०] ए प्रमाणे जे जे पद पृथिवीकायिक संबंधे होय ते ते पद संबंधी वच्चेना ( अक्रियावादी अने अज्ञानवादीना) बे समवसरणोमां पूर्व कह्या प्रमाणे बे प्रकारचें मनुष्यायुष अने तिथंचायुष बांधे छे. परन्तु +तेजोलेश्यामां कोइ पण आयुषनो बन्ध करतो नथी. ए रीते अप्कायिक अने वनस्पतिकायिक संबंधे पण समजवू. अग्निकाय अने वायुकाय बधां स्थानोमां वचला बे समवसरणोने आश्रयी नैरयिक, मनुष्य अने देवर्नु आयुष बांधता नथी, पण मात्र तिर्यचनुं आयुष बांधे छे. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय अने चउरिन्द्रिय जीवोने पृथिवीकायिकोनी पेठे जाणवं, पण सिम्यक्त्व अने ज्ञानमा तेओ एक पण आयुषनो बन्ध करता नथी. २३* क्रियावादी नारको नारकभवस्वभावथी नेरयिकायुष अने देवायुष बांधता नथी. अने तिर्यंचायुष बांधता नथी ते क्रियावादना खभावधी जाणवू. बाकीना अक्रियावादादि त्रण समवसरणमा नारकोने सर्वत्र तिर्यंचायुष अने मनुष्यायुषनो ज बन्ध होय छे. सम्यग्मिभ्यादृष्टि नारकोने छेला बे समवसरणो होय छे, पण गुणस्थानकना खभावथी तेओने कोई पण आयुषनो बन्ध थतो नथी.-टीका. २७ ॥ पृथिवीकायिकोनें अपर्याप्तावस्थामा ज इन्द्रियपर्याप्ति पूरी थया पहेला तेजोलेश्या होय छे भने इन्द्रियपर्याप्ति पूरी थया पछी ज परभवर्नु भायुष बंधाय छे माटे तेजोलेश्याना अभावमाज आयुषनो बन्ध थाय छे.-टीका. बेइन्द्रियादिने साखादन होवाथी सम्यक्त्व भने ज्ञान होय छे, परन्तु तेनो अल्प काळ होवाथी ते समये आयुषनो बन्ध थतो नथी, माटे सम्यक्त्व भने ज्ञानना अभावमा आयुषनो बन्ध थाय छे.-टीका. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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