Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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३०४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ३०.-उद्देशक १. जाव-अणागारोवउत्ता वि । एवं जाव-चरिदियाणं । सचट्ठाणेसु एयाइं चेव मज्झिल्लगाई दो समोसरणाई। सम्मत्तनाणेहि वि एयाणि चेव मज्झिल्लगाई दो समोसरणाई। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा जीवा । नवरं जं अत्थितं माणियचं । मणुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेसं । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा।
१०. [प्र०] किरियावादी णं भंते ! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, देवाउयं पकरेंति ?[उ०] गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पि पकरेंति ।
११. [प्र०] जइ देवाउयं पकरेंति किं भवणवासिदेवाउयं पकरेंति, जाव-वेमाणियदेवाउयं पकरेंति ? [उ०] गोयमा ! नो भवणवासीदेवाउयं पकरेंति, नो वाणमंतरदेवाउयं पकरेंति, नो जोइसियदेवाउयं पकरेंति, वेमाणियदेवाउयं पकरेंति ।
१२. [प्र०] अकिरियावादी णं भंते ! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खा -पुच्छा। [उ.] गोयमा! नेरइयाउयं पि पकरेंति, जाव-देवाउयं पि पकरेंति । एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।।
१३. [प्र०] सलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी किं नेरइयाउयं पकरेंति-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयंएवं जहेव जीवा तहेव सलेस्सा वि चउहि वि समोसरणेहि भाणियवा ।
१४. [प्र०] कण्हलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी किं नेरइयाउयं पकरेंति-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति । अकिरियवादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी य चत्तारि वि आउयाई पकरेंति । एवं नीललेस्सा वि। वादी नथी, किंतु *अक्रियावादी छे अने अज्ञानवादी छे. ए प्रमाणे पृथिवीकायिकोने लेश्यादिक जे जे पदो संभवतां होय ते ते बधां पदोमा (अक्रियावादित्व अने अज्ञानवादित्व-) ए बे वचलां समवसरणो जाणवा. ए रीते यावत्-अनाकार उपयोगवाळा पृथिवीकायिको सुधी जाणवु. एम यावत्-चरिंद्रिय जीवो संबंधे कहेवू. सर्व स्थानकोमा ए बे बच्चेना ज समवसरणो जाणवां. एओनां सम्यक्त्व अने ज्ञानमां पण ए बे ज वचलां समसरणो समजवा. पंचेंद्रिय तियंचयोनिको संबंधे जीवोनी जेम जाणवू. विशेष ए के, जेने जे होय तेने ते कहे. जीवो संबंधे जे हकीकत कही छे ते बघी ते ज रीते मनुष्यो संबंधे पण समजवी. वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने ।
वैमानिकोने असुरकुमारोनी जेम जाणवू. क्रियावादीने भायु- १०. [प्र०न हे भगवन् ! क्रियावादी जीवो शुं नैरयिकर्नु आयुष बांधे, तियंचयोनिकनुं आयुष बांधे, मनुष्यनुं आयुष बांधे के षनो बन्ध.
देवनुं आयुष बांधे ! [उ०] हे गौतम! तेओ नैरयिक अने तिर्यंचयोनिकनुं आयुष न बांधे पण मनुष्य अने देवतुं आयुष बांधे.
११. [३०] हे भगवन् ! जो तेओ देवर्नु आयुष बांधे तो शुं भवनवासी देवतुं आयुष बांधे के यावत्-वैमानिक देवनुं आयुष बांधे ? [उ०] हे गौतम! तेओ भवनवासी देवन आयुष बांधता नथी, तेम वानव्यंतर देवर्नु अने ज्योतिषिक देवनुं पण आयुष बांधता
नथी, किंतु वैमानिक देवनुं आयुष बांधे छे. भक्रियावादीने आयु- १२. [प्र०] हे भगवन् ! अक्रियावादी जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे, तिथंचनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे पनो बन्ध.
गौतम ! तेओ नैरयिकनुं आयुष यावत्-देवतुं आयुष पण बांधे. ए प्रमाणे अज्ञानवादी अने विनयवादी संबंधे पण समजवू.
सलेश्य क्रियावादीने आयुषनो बन्ध.
१३. [प्र०] हे भगवन् ! लेश्यावाळा क्रियावादी जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे- इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम! तेओ नैरयिकनुं आयुष नथी बांधता-इत्यादि जेम जीवो संबन्धे उपर जणाव्युं छे तेम ज अहीं पण (लेश्यावाळा जीवोने पण) चारे समवसरणोने आश्रयी कहे.
१४. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णलेश्यावाळा क्रियावादी जीवो शुं नैरयिकनुं आयुष बांधे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओ नैरयिक, तिर्यच अने देवनुं आयुष बांधता नथी, पण मनुष्यनुं आयुष बांधे छे. कृष्णलेश्यावाळा अक्रियावादी, अज्ञानवादी अने विनयवादी जीवो चारे प्रकारना आयुषनो बन्ध करे छे. एज रीते नीललेश्यावाळा अने कापोतलेश्यावाळा संबंधे पण जाणवू.
कृष्णलेश्यावाला क्रियावादीने आयुषमो बन्ध
* पृथिवीकायिकादि मिथ्यादृष्टि होवाथी तेओ अक्रियावादी अने अज्ञानवादी होय छे. यद्यपि तेओमां वचनना अभावथी वाद नथी, तोपण ते ते वाद योग्य परिणाम होवाथी तेओ अक्रियावादी भने अज्ञानवादी बाह्या छ, भने तेओमां विनयवादने योग्य परिणाम नथी तेथी तेओ विनयवादी नथी
पृथिवीकायिकोने सलेइयत्व, कृष्ण, नील, कापोत अने तेजोलेश्या तथा कृष्णपाक्षिकत्वादि जे होय छे, ते बधामा अक्रियावादी अने अज्ञानवादी ए बे समवसरण होय छे. ए प्रमाणे चउरिन्द्रिय सुधी जाणवू. अहीं एटलं समजवु आवश्यक छ के क्रियावाद अने विनयवाद विशिष्ट सम्यक्त्वादि परिणामना सद्भावमा होय छे तेथी बेइन्द्रियादिने साखादननी प्राप्तिमां सम्यक्त्व अने ज्ञाननो अंश होवा छतां पण तेओ क्रियावादी अने विनयवादी कहेवाता नथी.
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