Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 306
________________ २४८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २५.-उद्देशक ६. भवणवासीसु, णो वाण, णो जोइ०, वेमाणिएसु उववजेजा । वेमाणिपसु उववजमाणे जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववजेजा । बउसे गं एवं चेव । नवरं उक्कोसेणं अचए कप्पे । पडिसेवणाकुसीले जहा बउसे । कसा. यकुसीले जहा पुलाए । नवरं उक्कोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उववजेजा। ६०. [प्र०] णियंठे गं भंते !० १ [उ०] एवं चेव, जाव-वेमाणिएसु उववजमाणे अजहन्नमणुकोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उववजेजा। ६१. [प्र०] सिणाए णं भंते ! कालगए समाणे किं (क) गतिं गच्छइ ? [उ०] गोयमा ! सिद्धिगति गच्छद । ६२. [प्र०] पुलाए णं भंते ! देवेसु उववजमाणे किं इंदत्ताए उववजेजा, सामाणियत्ताए उववजेजा, तायत्तीसाए उववजेजा, लोगपालत्ताए उववजेजा, अमिंदत्ताए वा उववजेजा? [30] गोयमा ! अविराहणं पडच इंदत्ताए उववजेजा, सामाणियत्ताए उववजेजा, तायत्तीसाए उववजेजा, लोगपालत्ताए उववजेजा, नो अहमिंदत्ताए उववजेजा । विराहणं पडुच्च अन्नयरेसु उववजेजा । एवं बउसे वि; एवं पडिसेवणाकुसीले वि। ६३. [प्र०] कसायकुसीले-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! अविराहणं पडुच्च इंदत्ताए वा उववजेजा, जाव-अहमिंदत्ताए बा उवजेजा, विराहणं पडुच्च अन्नयरेसु उववजेजा। ६४. [प्र०] नियंठे-पुच्छा [उ०] गोयमा ! अविराहणं पडुच्च णो इंदत्ताए उववजेजा, जाव-णो लोगपालत्ताए उववजेजा; अहमिंदत्ताए उववजेजा । विराहणं पडुच्च अन्नयरेसु उववजेजा। ६५. [प्र०] पुलायस्स णं भंते ! देवलोगेसु उववजमाणस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? [उ.] गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमपुहुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई । ६६. [प्र०] बउसस्स-पुच्छा । [उ०] गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमपुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई । एवं पडिसेवणाकुसीले वि। उपजे, पण वैमानिकमा उपजे. वैमानिकमा उत्पन्न थतो पुलाक जघन्यथी सौधर्म कल्पमा अने उत्कृष्ट सहस्रार कल्पमा उत्पन्न थाय. बकुश विषे पण एज प्रमाणे जाणवू. विशेष ए के ते उत्कृष्ट अच्युत कल्पमा उत्पन्न थाय. बकुशनी पेठे प्रतिसेवनाकुशील विषे पण समजवू. अने पुलाकनी पेठे कषायकुशीलने पण जाणवू. विशेष ए के, कषायकुशील उत्कृष्ट अनुत्तरविमानमा उत्पन्न थाय. निर्गन्थनी गति. ६०. [प्र०] हे भगवन् ! निग्रंथ मरण पामीने कइ गतिमां जाय ? [उ०] ए प्रमाणे जाणवू. यावत्-वैमानिकोमा उत्पन्न थतो जघन्य अने उत्कृष्ट सिवाय एक अनुत्तर विमानमा उत्पन्न थाय. सातकनी गति. ६१. [प्र०] हे भगवन् ! स्नातक मरण पामीने कइ गतिमां जाय ? [उ०] हे गौतम ! ते एक सिद्धगतिमां जाय. पुलाक क्या देवपणे ६२. [प्र०] हे भगवन् ! देवोमां उत्पन्न थतो पुलाक शुं इंद्रपणे उत्पन्न थाय, सामानिकपणे उत्पन्न थाय, त्रायस्त्रिंशदेवपणे उत्पन्न उपजे? थाय, लोकपालपणे उत्पन्न थाय के अहमिंद्रपणे उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! अविराधनाने आश्रयी इंद्रपणे उत्पन्न थाय, सामानिकपणे उत्पन्न थाय, त्रायस्त्रिंशदेवपणे उत्पन्न थाय अने लोकपालपणे उत्पन्न थाय, पण अहमिंद्रपणे न उत्पन्न थाय. अने विराधना करीने भवनपति वगेरे कोइ पण देवमां उत्पन्न थाय. ए प्रमाणे बकुश अने प्रतिसेवनाकुशील जाणवो. कषायकुशील कया ६३. [प्र०] हे भगवन् ! कषायकुशील कया देवपणे उत्पन्न थाय? [उ०] हे गौतम ! संयमनी विराधना न करी होय तो ते देवपणे उपजे ? इंद्रपणे, यावत्-अहमिंद्रपणे उत्पन्न थाय, अने संयम विराधना करी होय तो ते भवनपति वगेरे कोइ पण देवमा उत्पन्न थाय. निर्मन्थ कया देवपणे . ६४. [प्र०] हे भगवन् ! निग्रंथ कया देवमां उपजे ? [उ०] हे गौतम ! संयमनी अविराधनाने आश्रयी इंद्रपणे यावत् लोकपालपणे न थाय, पण अहमिंद्रपणे थाय, अने संयमनी विराधनाने आश्रयी भवनवासी वगेरे कोइ पण देवपणे उत्पन्न थाय. पलानी देवलोकी ६५. [प्र०) हे भगवन् ! देवलोकोमा उत्पन्न थता पुलाकनी केटला काळ सुधीनी स्थिति कही छे ? [उ०] हे गौतम | जघन्य स्थिति. पल्योपमपृथक्त्व-बेथी नव पल्योपम सुधीनी अने उत्कृष्ट अढार सागरोपमनी स्थिति कही छे. ६६. [प्र०] हे भगवन् ! देवलोकोमा उत्पन्न थता बकुशनी केटला काळ सुधीनी स्थिति कही छे ! [उ०] हे गौतम ! जघन्य बेथी नव पल्योपम सुधीनी अने उत्कृष्ट बावीस सागरोपम सुधीनी स्थिति कही छे. ए प्रमाणे प्रतिसेवनाकुशील विषे पण समजवू. ६१ * ज्ञानादिनी अविराधना के लब्धिनो प्रयोग कर्या सिवाय इन्द्रादि रूपे उपजे, अने विराधना करीने भवनपत्यादि कोइ पण देवमा उपजे. पुलाकनो मात्र वैमानिकमा उत्पाद कयो ते संयमनी अविराधनानी अपेक्षाए जाणवू.-टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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