Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 352
________________ २९४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २६.-उद्देशक ११. २. प्र०] अचरिमेणं भंते ! मणुस्से पावं कम्मं किं बंधी-पुच्छा। [उ०] गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंध बंधिस्सइ, अत्यंगतिए बंधी बंधा न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ । ३. [प्र०] सलेस्से णं भंते ! अचरिमे मणूसे पावं कम्मं किं बंधी- [उ०] एवं चेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भाणियवा एवं जहेव पढमुद्देसे । नवरं जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिन्नि भंगा भाणियचा चरिमभंगवजा । अलेस्से केवलनाणी य अजोगी य एए तिन्नि विन पुच्छिजंति, सेसं तहेव । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिए जहा नेरइए। ४.प्र०] अचरिमेणं भंते ! नेरइए नाणावरणिजं कम्मं किं बंधी-पुच्छा । [उ.] गोयमा! एवं जहेव पावं। नवरं मणुस्सेसु सकसाईसु लोभकसाईसु य पढम-बितिया भंगा, सेसा अट्ठारस चरमविहूणा, सेसं तहेव जाव-वेमाणियाणं । दरिसणावरणिजं पि एवं चेव निरवसेसं । वेयणिजे सत्वत्थ वि पढम-बितिया भंगा जाव-वेमाणियाणं, नवरं मणुस्सेसु अलेस्से, केवली अजोगी य नत्थि। ___५. [प्र०] अचरिमे णं भंते ! नेरइए मोहणिजं कम्मं किं बंधी-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! जहेव पावं तहेव निरवसेंस जाव-वेमाणिए। ६. [प्र०] अचरिमे णं भंते ! नेरइए आउयं कम्मं किं बंधी-पुच्छा। [उ०] गोयमा! पढम-बितिया भंगा, एवं सवपदेसु वि । नेरइयाणं पढम-ततिया भंगा, नवरं सम्मामिच्छत्ते ततिओ भंगो, एवं जाव-थणियकुमाराणं । पुढविकाइय-आउकाइय-वणस्सइकाइयाणं तेउलेस्साए ततिओ भंगो, सेसेसु पदेसु सवत्थ पढम-ततिया भंगा, तेउकाइय-वाउकाइयाणं सम्वत्थ पढम-ततिया भंगा, बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं एवं चेव, नवरं सम्मत्ते ओहिनाणे आभिणियोहियनाणे सुयनाणे एएसु चउसु वि ठाणेसु ततिओ भंगो।पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते ततिओ भंगो, सेसेसु पदेसु सम्वत्थ पढम-ततिया भंगा। मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकसाइम्मि य ततिओ भंगो, अलेस्स-केवलनाण-अजोगी य न पुच्छिजंति सेस अचरम मनुष्यने बन्ध वैश्यासहित अचरम मनुष्यने बन्ध २. [प्र०] हे भगवन् ! शुं अचरम मनुष्ये पापकर्म बांध्यु हतुं-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम! १ कोइए पापकर्म बांध्यु हतुं, बांधे छ भने बांधशे; २ कोइए बाध्यु हतुं, बांधे छे अने बांधशे नहि, ३ कोइए बाध्यु हतुं, नथी बांधतो अने बांधशे. ३. [प्र०] हे भगवन् ! शुं लेश्यावाळा अचरम मनुष्ये पापकर्म बांध्यु हतुं-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! उपर कह्या प्रमाणे छेल्ला सिवायना बाकीना त्रण भांगा कहेवा. बाकी बधुं प्रथम उद्देशकमां कह्यु छे तेम जाणवू. परन्तु विशेष ए के, जे वीश पदोमां चार भांगा कह्या छे तेमांथी अहीं छेल्ला भांगा सिवायना प्रथमना त्रण भांगा कहेवा. लेश्यारहित, केवलज्ञानी अने अयोगी मनुष्य-एत्रण संबंधे न पूछवू. वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिकोने नैरयिकोनी पेठे जाणवू. अचरम नैरयिकने शानावरणीयनो बन्ध... १. [प्र०] हे भगवन् ! शुं अचरम नैरयिके ज्ञानावरणीय कर्म बांध्यु हतुं-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम | जेम पाप कर्म संबन्धे का छे तेम अहीं पण जाणवं, परन्तु विशेष ए के कपायी अने लोभकषायी मनुष्योमा पहेलो अने बीजो भांगो कहेवो, तथा बाकीना अढार पदमां छेल्ला भांगा सिवायना बाकीना बधा (त्रणे) भांगा कहेवा. बाकी बधुं ए प्रमाणे जाणवू. ए रीते यावत्-वैमानिको सुधी समजवु. दर्शनावरणीय कर्म संबंधे पण ए रीते बधु जाणवू. वेदनीय कर्म संबंधे बधे स्थळे पहेलो अने बीजो भांगो-एम बे भांगा यावत्-वैमानिको सुधी जाणवा. विशेष ए के, मनुष्यपदमा लेश्यारहित, केवळी अने अयोगी अचरम मनुष्य नथी. भचरम नैरयिकने मोहनीय बन्द अचरम नैपिरकने भायुषबन्ध. ५. [प्र०] हे भगवन् ! शुं अचरम नैरयिके मोहनीय कर्म बांध्यु हतुं-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! जेम पापकर्म संबंधे कडं तेम बधुं यावत्-वैमानिको सुधी जाणवू. ६. [प्र०] हे भगवन् ! शुं अचरम नैरपिके आयुष कर्म बांध्यु हतुं-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! पहेलो अने बीजो भांगो जाणवो. ए रीते बां पदोमां पण जाणवू. नैरयिको विषे पहेलो भने त्रीजो भांगो कहेवो. विशेष ए के, सम्यक्त्वमिथ्यात्वमा त्रीजो भांगो जाणवो. ए रीते यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. पृथिवीकायिक, अप्कायिक अने वनस्पतिकायिकोने तेजोलेश्यामां श्रीजो भांगो कहेवो. बाकी बधां पदोमा बधे स्थळे पहेलो अने त्रीजो भांगो जाणवो. अग्निकायिक अने वायुकायिकोने बधे स्थळे प्रथम अने तृतीय भांगो कहेवो. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिन्द्रियने विषे पण एमज जाणी. पण विशेष ए के सम्यक्त्व, औधिकज्ञान, आभिनिवोधिक ज्ञान अने श्रुतज्ञान-ए चारे स्थानोमा त्रीजो भांगो समजवो. पंचेंद्रिय तिर्यंचयोनिकोने सम्यग्मिध्यात्वमां त्रीजो भांगो अने बाकीनां स्थानोमा सर्वत्र प्रथम अने तृतीय भांगो जाणवो. मनुष्योने सम्यग्मिथ्यात्व. अवेदक अने अकषायी-ए त्रण पदोमां श्रीजो भागो जाणवो. लेश्यारहित, केवलज्ञान अने अयोगी संबंधे प्रश्न न करवो. बाकी बधां पदोमा सर्वत्र प्रथम अने तृतीय भांगो कहेवो. जेम नैरयिको संबंधे का तेम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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