Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

View full book text
Previous | Next

Page 330
________________ २७२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रहे शतक २५.-उद्देशक ७ '८१.[प्र०]परिहारविसुद्धीएसु-पुच्छा ।[उ०]गोयमा! जहन्नेणं देसूणाई दो वाससयाई, उक्कोसेणं देसूणाओ दो पुष्चकोडीओ। ८२. [प्र०] सुहुमसंपरागसंजया णं भंते! पुच्छा । गोयमा! जहन्नेणं एकं समय, उक्कोसेणं अंतोमुहुतं । महक्खायसंजया जहा सामाइयसंजया (२९)। ८३. [प्र० सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतर होह[उ०] गोयमा। जहनेणं जहा पुलागस्स । एवं जाव-अहक्खायसंजयस्स। ४.प्र० सामाइयसंजयाणं भंते ! पुच्छा। [उ०] गोयमा! नत्थि अंतरं। ८५. [प्र०] छेदोवट्ठावणिय-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं तेवढि वाससहस्साई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ। ८६. [प्र०] परिहारविसुद्धियस्स पुच्छा। [उ०] गोयमा! जहन्नेणं चउरासीइं वाससहस्साई, उकोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ । सुहुमसंपरायाणं जहा नियंठाणं । अहक्खायाणं जहा सामाइयसंजयाणं (३०)। ८७. [प्र०] सामाइयसंजयस्स णं भंते! कति समुग्धाया पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा!छ समुग्घाया पन्नत्ता-जहा कसायकुसीलस्स । एवं छेदोवट्ठावणियस्स वि । परिहारविसुद्धियस्स जहा पुलागस्स । सुहुमसंपरागस्स जहा नियंठस्स । अहक्खायस्स जहा सिणायस्स (३१)। ८१. [प्र०] हे भगवन् ! *परिहारविशुद्धिक संयतो काळथी क्यांसुधी होय ? [उ०] हे गौतम ! तेओ जघन्य काइक ऊणा बसो वर्ष सुधी अने उत्कृष्ट कांइक न्यून बे पूर्वकोटि वर्ष सुधी होय. ८२. [प्र०] हे भगवन् ! सूक्ष्मसंपराय संयतो संबंधे पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट अंतर्मुहुर्त सुधी होय. यथाख्यात संयतो सामायिक संयतोनी पेठे जाणवा. ३० अन्तरद्वार- ८३. [प्र०] 'हे भगवन् ! सामायिक संयतने केटला काळजें अंतर होय ? [उ०] हे गौतम ! जघन्य [ एक समय ]-इत्यादि सामायिकापि संय- बधुं पुलाकनी पेठे ( उ० ६ सू०१४५) जाणवू. ए रीते यावत्-यथाख्यात संयत सुधी समजवू. तर्नु अन्तर. सामायिकादि संय- ८४. [प्र०] हे भगवन् ! सामायिक संयतोने केटला काळजें अंतर होय ? [उ०] हे गौतम ! तेओने अंतर नथी. तोर्नु अन्तर. ८५. [प्र०] छेदोपस्थापनीय संयतो संबंधे पृच्छा. [उ०] हे गौतम! तेओने जघन्य त्रेसठ हजार वर्ष अने उत्कृष्ट अढार कोडाकोडि सागरोपमनुं अंतर होय छे. ८६. [प्र०] परिहारविशुद्धिक संयतो संबंधे पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेओने जघन्य चोराशी हजार वर्ष अने उत्कृष्ट अढार कोडाकोडि सागरोपमनुं अंतर होय. सूक्ष्मसंपरायो निग्रंथोनी पेठे (उ० ६सू० १४७) जाणवा. अने यथाख्यात संयतो सामायिक संयतोनी जेम समजवा.. ८७. [प्र०] 'हे भगवन् ! सामायिक संयतने केटला समुद्घातो कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! तेने छ समुद्घातो कह्या छे. ते ३१ समुद्धात कषायकुशीलनी पेठे (उ०६सू०१५०) जाणवा. ए प्रमाणे छेदोपस्थापनीय संयत संबंधे पण समजवू. पुलाकनी पेठे (उ०६ सू०१४८) परिहारविशुद्धिकने जाणवू. निग्रंथनी पेठे (उ०६ सू०१५१) सूक्ष्मसंपराय संबंधे जाणवू, अने स्नातकनी पेठे (उ० ६ सू० १५२) यथाख्यात संयत संबंधे पण समजवू. ८१ * परिहारविशुद्धिक संयतोनो काळ कांइक (अट्ठावन वरस) न्यून बसो वर्ष होय छे. जेम के उत्सर्पिणीमा प्रथम तीर्थकरनी पासे सो वरसना आयुषवाळो मनुष्य परिहारविशुद्धि चारित्र ग्रहण करे अने तेना जीवितना अन्ते तेनी पासे सो वरसना आयुषवाळो बीजो कोइ मनुष्य परिहारविशुद्धि चारित्र खीकारे, त्यार पछी तेनी पासे यीजो कोइ चारित्र न ग्रहण करी शके. एम बसो वर्ष थाय. परन्तु प्रत्येकने ओगणत्रीश वरस गया बाद चारित्रप्रतिपत्ति होय एटले अठ्ठावन वरस न्यून यसो वरस जघन्य काळ होय. चूर्णिकारनी व्याख्या पण एमज छे, परन्तु ते अवसर्पिणीना अन्तिम जिननी अपेक्षाए छे. उत्कृष्ट काळ देशन्यून बे पूर्वकोटि वर्ष छे. जेमके अवसर्पिणीमा प्रथम तीर्थकरनी पासे पूर्वकोटि आयुषवाळो मनुष्य परिहारविशुद्धि चारित्र प्रहण करे अने तेना जीवितना अन्ते तेनी पासे तेटलाज आयुषवाळो परिहारविशुद्धिचारित्र ले. तेमाथी प्रत्येकना ओगणत्रीश वरस बाद करता देश (अट्ठावन वर्ष) न्यून बे पूर्वकोटि वर्ष होय. . ८३. अवसर्पिणीमा दुष्षमा काळसुधी छेदोपस्थापनीय चारित्र होय छे. अने त्यार पछी एकवीश हजार वर्ष प्रमाण छट्ठा आरामा अने उत्सर्पिणीना तेटला प्रमाणवाळा पहेला अने बीजा आरामा छेदोपस्थापनीयचारित्रनो अभाव होय छे. एम वेसठ हजार वरस प्रमाण छेदोपस्थापनीय संयतोर्नु जघन्य अन्तर अने उत्कृष्ट अढार कोटाकोटी सागरोपमर्नु अन्तर होय छे. ते आ प्रमाणे-उत्सर्पिणीना चोवीशमा जिनना तीर्थसुधी छेदोपस्थापनीय चारित्र होय छे. त्यार पछी बे कोटाकोटी प्रमाण चोथा आरामां, त्रण कोटाकोटी प्रमाण पांचमा आरामा अने चार कोटाकोटी प्रमाण छट्ठा आरामा तथा अवसार्पणीना अनुक्रमे चार, प्रण अने बे कोटाकोटी सागरोपम प्रमाण पहेला, बीजा अने त्रीजा आरामा छेदोपस्थापनीय चारित्र होतुं नथी, पण त्यार पछी अव. सर्पिणीना चोथा आरामा प्रथम जिनना तीर्थमा छेदोपस्थापनीय चारित्र होय छे, माटे उपर कहेलं छेदोपस्थापनीय संयतोनुं उत्कृष्ट अंतर छे. अहीं थोडो काळ ओछो रहेछे अने जघन्य अंतरमां थोडो काळ बधे छे ते अल्प होवाथी विवक्षित नथी. ८६ अवसर्पिणीना पांचमो अने छहो आरो तथा उत्सर्पिणीनो पहेलो अने बीजो आरो प्रत्येक एकवीश हजार वर्ष प्रमाणना छे अने तेमा परिहारविशुद्विक चारित्र होतुं नथी, तेथी चोराशी हजार वर्ष परिहारविशुद्धिक संयतोनुं जघन्य अन्तर छे. अहीं छल्ला तीर्थकरनी पछी पांचमा-आरामा परिहारविशुद्धिक चारित्रनो काळ, अने उत्सर्पिणीना श्रीजा आरामा परिहारविशुद्धिचारित्रनो खीकार कर्या पूर्वनो काळ अल्प होवाथी तेनी विवक्षा करी नथी. तथा उत्कृष्ट अन्तर अढार कोटाकोटी सागरोपमर्नु छे ते छेदोपस्थापनीय चारित्रनी पेठे जाणवू,-टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 ... 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442