Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक २६.- उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२८९
बितिया । सुक्कपक्खिया ततियविहूणा । एवं सम्मदिट्ठिस्स वि; मिच्छादिट्ठिस्स सम्मामिच्छादिट्ठिस्स य पढम-बितिया । ाणिस्स ततियविह्नणा, आभिणिबोहियनाणी, जाव-मणपजवणाणी पढम- बितिया, केवलनाणी ततियविह्नणा । एवं नोसनोवते, अवेद, अकसायी । सागारोवउत्ते अणागारोवउत्ते एपसु ततियविहूणा । अजोगिम्मि य चरिमो, सेसेसु पढम- बितिया ।
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१८. [प्र० ] नेरइणं भंते! वेयणिज्जं कम्मं बंधी बंध- १ [अ०] एवं नेरतिया, जाव - वेमाणिय त्ति । जस्स जं अस्थि वि पढ - बितिया, नवरं मणुस्से जहा जीवे ।
१९. [०] जीवे णं भंते । मोहणिजं कम्मं किं बंधि बंध- १ [अ०] जहेव पावं कम्मं तद्देव मोहणिजं पि निरखसेसं जाव - वेमाणिए ।
२०. [प्र० ] जीवे णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधी बंधइ - पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी - चउभगो । सलेस्से, जाव- सुक्कलेस्से चत्तारि भंगा; अलेस्से चरिमो भंगो ।
२१. [] प णं - पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सर, अत्थेगतिए बंधी न बंधह बंधिस्सह । सुक्कपक्खिए सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी चत्तारि भंगा।
२२. [प्र० ] सम्मामिच्छादिट्ठी - पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सर, अत्थेगतिए बंधी न बंधन बंधिस्स नाणी जाव-ओहिनाणी चत्तारि भंगा ।
२३. [प्र० ] मणपजवनाणी- पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सर, अत्थेगतिर बंधी न बंधह बंधिस्er; अत्थेगतिर बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ । केवलनाणे चरमो भंगो । एवं एएणं कमेणं नोसन्नोवउत्ते बितियविह्नणा जहेव मणपज्जवनाणे | अवेदए अकसाई य ततिय - चउत्था जहेव सम्मामिच्छत्ते । अजोगिम्मि चरिमो, सेसेसु पदेसु चत्तारि भंगा जाव - अणागारोवउत्ते I
नणे भांगा कहेवा. आभिनिबोधिकज्ञानी अने यावत् मनः पर्यवज्ञानीने पहेलो अने बीजो भांगो कहेवो, अने केवलज्ञानीने त्रीजा भांगा सिवाय बाकीना त्रणे भांगा कहेवा. ए प्रमाणे नोसंज्ञामां उपयुक्त, वेदरहित, अकषायी, साकार उपयोगवाळा अने अनाकार उपयोगवाळाए बधा जीवोने त्रीजा भांगा सिवाय बाकीना (त्रणे ) भांगा कहेवा. अयोगी जीवने छेल्लो भांगो अने बाकी बधे स्थले पहेलो भने बीजो - एम बे भांगा जाणवा.
थी वेदनीय कर्मबन्ध.
१८. [प्र०] हे भगवन् ! शुं नैरयिक जीवे वेदनीय कर्म बांध्युं हतुं, बांधे छे- इत्यादि पृच्छा. [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवु. ए रीते नैरविकादिने आश्र नैरयिकोथी मांडी यावत्-वैमानिक सुधी जेने जे होय तेने ते कहेतुं तथा बधे पहेलो अने बीजो भांगो समजवो. परन्तु विशेष ए के, जीवनी पेठे मनुष्य संबंधे कहे.
१९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवे मोहनीय कर्म बांध्युं हतुं, बांधे छे अने बांधशे ? [उ०] जेम पापकर्म संबंधे कह्युं तेम मोह - मोहनीय कर्मबन्ध. नीय कर्म संबंधे पण जाणवुं. ए प्रमाणे यावत् - वैमानिक सुधी समजवु.
२०. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवे आयुष कर्म बाध्युं हतुं, बांधे छे- इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! इत्यादि चारे भांगा जाणवा. लेश्यावाळा जीवो अने यावत् - शुक्ललेश्यावाळा जीवोने चार भांगा जाणवा, अने भांगो जावो.
कोइ जीवे बांध्युं हतुंलेश्यारहित जीवने छेल्लो
२१. [प्र०] कृष्णपाक्षिक संबंधे पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! कोइ जीवे आयुष बांध्युं हतुं, बांधे छे अने बांध. अथवा कोइ जीवे आयुष बांध्युं हतुं, नथी बांधतो अने बांधशे. शुक्लपाक्षिक, सम्यग्दृष्टि अने मिथ्यादृष्टि जीवोने चारे भांगा जाणवा.
२२. [०] सम्यग्मिथ्यादृष्टि संबन्धे पृच्छा. [ उ०] हे गौतम! कोइक मिध्यादृष्टि जीवे आयुष बांध्युं हतुं, बांधतो नथी अने बांधशे, कोइक जीवे बांध्युं हतुं, नथी बांधतो अने बांधशे नहीं. ज्ञानी, यावत् – अवधिज्ञानीने चारे भांगा कहेवा.
२३ः [प्र०] मनःपर्यवज्ञानी संबन्धे पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! कोइक मनः पर्यवज्ञानीए आयुष बांध्युं हतुं, बांधे छे अने बांध. कोइए बांध्युं हतुं, नथी बांधतो अने बांधशे नहीं. केवलज्ञानीने छेल्लो भांगो जाणवो. एज प्रकारे ए क्रमवडे नोसंज्ञामां उपयुक्त जीव संबंधे बीजा भांगा सिवाय बाकीना त्रणे भांगा मनःपर्यायज्ञानीनी पेठे जाणवा. वेदरहित अने अकषायी जीवने सम्यग्मिथ्यादृष्टिनी पेठे श्रीजो अने चोथो भांगो कहेवो, अयोगीने विषे छेल्लो भांगो कहेवो अने बाकीनां पदोने विषे चारे भांगा यावत् - अनाकार उपयोगवाळा जीव सुधी जाणवा
३७ भ० सू०
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आयुषकर्मबन्ध.
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