Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक २६. - उद्देशक १.
भगवत्सुधर्म स्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
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१०. सद्गाणं पढम वितिया एवं इत्यिवेदमा पुरिसवेद्गा, नपुंसगवेद्गा वि अवेदगाणं चत्तारि (८) । ११. [२०] सकसाई चत्तारि, कोदकसाई पदम वितिया भंगा, एवं माणकसावित्स वि, मायाकसायिस्स वि । लोभकसाथिस्स चत्तारि भंगा।
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१२. [प्र०] अकसायी णं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधी - पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी न बंधर बंधि - स्सर ३, अत्थेगतिए बंधी ण बंधइ ण बंधिस्सर ४ ( ९ ) ।
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१२. [२०] सजोगिस्स चढभंगो, एवं मणजोगिस्स वि, पहजोगिस्स वि, कायजोगिस्स वि अजोगिस्स चरिमो (१०) । सागारोवउत्ते चत्तारि, अणागारोवउत्ते वि चत्तारि भंगा (११) ।
१४. [प्र० ] नेरइणं भंते ! पावं कम्मं किं बंधी बंधर बंधिस्सइ १ [उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी० पढम - बितिया ।
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१५. [२०] सलेस्से णं भंते! नेरतिए पार्थ कम्मं-१ [ड०] एवं चेव एवं कण्डलेस्से वि, नीललेरसे वि, काउलेल्खे वि । एवं कण्हपक्खिए, सुक्कपक्खिप, सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी, नाणी, आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिणाणी, अन्नाणी, मइअन्नाणी, सुयअन्नाणी विभंगनाणी, आहारसन्नोवउत्ते जाव - परिग्गहसन्नोवउत्ते, सवेदए, नपुंसक वेद, सकसाथी जाव-लोभकसायी, सजोगी, मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी, सागरोवउत्ते, अणागारोवउत्ते - एएसु ससु पदेसु पढम- बितिया भंगा भाणियच्वा । एवं असुरकुमारस्स वि वत्तष्वया भाणियचा, नवरं तेउलेस्सा, इस्थिवेयग - पुरिसवेयगा य अम्भ
१०. * वेदवाळा जीवोने पहेलो अने बीजो - एम बे भांगा जाणवा. अने ए रीते स्त्रीवेदवाळा, पुरुषवेदवाळा तथा नपुंसक वेदवाळाने पण जाणवुं. वेद विनाना जीवोने चारे भांगा जाणवा.
११. किषायवाळा जीवोने चारे भांगा जाणवा, क्रोधकषायवाळा जीवोने पहेला बे भांगा जाणवा. ए रीते मानकषायवाळा अने मायाकषायवाळाने पण समजवु. लोभकषायवाळाने चार भांगा समजवा.
१२. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं अकषायी जीवे पूर्वे पाप कर्म बांध्युं हतुं - इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! कोइ अकषायी जीव पूर्वे पाप कर्म बांधतो हतो, अत्यारे बांधतो नथी अने बांधशे. अथवा कोइ अकषायी जीव पाप कर्म बांधतो हतो, बांधतो नथी अने बांध पण नहीं..
१३. "सयोगी जीवने चार भांगा जाणवा. ए रीते मनयोगवाळा, वचनयोगवाळा अने काययोगवाळा जीवने पण समजवुं. अयोगीने १०-११ योग अने उपयोग'छेल्लो भांगो कहेवो. साकार उपयोग अने अनाकार उपयोगवाळाने चारे भांगा जाणवा.
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१५. [अ०] हे भगवन् शुं यया नैरपिक पाप कर्म बांधतो हतो- इल्यादि पृच्छा. उ०] हे गीतम एज रीते पूर्वोक्त प्रथमना बे भांगा जाणवा. ए प्रमाणे कृष्णलेश्यावाळा, नीललेश्यावाळा, कापोतलेश्यावाळा, कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अज्ञानी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, विभंगज्ञानी, आहारसंज्ञामां उपयोगवाळा, यावत्परिग्रहसंज्ञाम उपयोगवाळा, वेदवाळा, नपुंसक वेदनाळा, फपायचा, यावत्-खोमकपाययाळा, सयोगी, मनोयोगी, बचनयोगी, काययोगी,
१४. [प्र०] हे भगवन् ! शुं नैरयिक जीव पापकर्म बांधतो हतो, बांधे छे अने बांधशे ? [उ०] हे गौतम! कोइ नैरयिक पाप नैरयिकादि दंडक कर्म बांधतो हतो - इत्यादि पहेलो अने बीजो भांगो जाणवो.
आश्रयी पापकर्मनी बन्धवक्तव्यता.
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वेदनो उदय होय त्यां सुधी जीवने मोहनीयनो क्षय अने उपशम नहि थतो होवाथी प्रथमना बे भांगा होय छे. वेदरहितने पोतानो वेद उपशान्त थाय त्यारे मोहनीयरूप पाप कर्मने सूक्ष्मसंपराय प्राप्त न थाय सुधी बांधे छे अने बांधशे, अथवा त्यांथी पढीने पण बधिशे १. वेद क्षीण थया पछी पाप कर्म बांधे छे पण सूक्ष्मसंपरायादि अवस्थामां बांधतो नथी २. उपशान्तवेद सूक्ष्मसंपरायादि अवस्थामां पाप कर्म बांधतो नथी, पण त्यांथी पडीने
२. दीपा पछी सूक्ष्मसंपरावादिगुणस्थानके बांधतो नयी अने पछी बांधले पण नहि ४.
११ सकषायीने चार भांगा होय छे. तेमां प्रथम भंग अभव्यने अने बीजो भंग जेने मोहनीयकर्मनो क्षय थवानो छे एवा भव्यने आश्रयी छे. उपशमक सूक्ष्मपरायने अपेक्षी प्रीयो मंग अनेक सूक्ष्मपरावने अपेक्षीतुर्थ भंग होय . एम लोभकपादीने पण सम पहेलो अने बीजो ए बे भंग ज होय छे. तेमां प्रथम भंग अभव्यने अने बीजो भंग भव्यविशेषने आश्रयी छे तेने त्रीजो अने चोथो भांगो नथी, कारण के क्रोधनो उदय होय त्यारे अबन्धकपणं होतुं नथी.
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दांत भी अने बांए भांगो अकषायीने उपशमक आधी हो भने वांद बांधतो नमी अनेकांपनद्दिए भंग क्षपक आश्रयी जाणवो.
१३ १ सयोगी अभव्य, भव्यविशेष, उपशमक अने क्षपकने आश्रयी क्रमशः चारे भांगा जाणवा अयोगीने पापकर्म बंधातुं नथी तेम बंधावानुं पण नवी माटे एक हेलो भांगो होय.
१४ $ नारकने उपशमश्रेणि अने क्षपकश्रेणि नहि होवाथी प्रथमना बे भांगा होय छे. एम सलेश्य इत्यादि विशेषण युक्त नारकपद जाणवुं. ए रीते कासुरकुमारादिने पण लागी -
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८ वेदद्वार
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९ कषायद्वार -
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