Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक २५.-उद्देशक ८. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
२८३ २.प्र० तेसि गं भंते ! जीवाणं कह सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते ? [उ०] गोयमा! से जहानामए केह पुरिसे तरुणे बलवं-एवं जहा चोइसमसए पढमुद्देसए जाव-तिसमएण वा विग्गहेणं उववजंति, तेसि णं जीवाणं तहा सीहा गई, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते ।
३. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा कहं परभवियाउयं पकरेंति ? [उ०] गोयमा! अज्झवसाणजोगनिधत्तिएणं करणोवारणं एवं खलु ते जीवा परभवियाउयं पकरेन्ति ।
४. [प्र०] तेसि णं भंते ! जीवाणं कहं गती पवत्तइ ? [उ०] गोयमा ! आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, एवं खलु तेर्सि जीवाणं गती पवत्तति । ___५. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं आयडीए उववजंति, परिडीए उववजंति ? [उ०] गोयमा ! आइडीए उववजति, नो परिड्डीए उववजंति।
६. [प्र०] ते गं भंते ! जीवा किं आयकम्मुणा उववजंति, परकम्मुणा उववजंति ? [उ०] गोयमा! आयकम्मुणा उववजंति, नो परकम्मुणा उववजंति ।
७. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं आयप्पयोगेणं उववजंति, परप्पयोगेणं उववजंति ? [उ०] गोयमा ! आयप्पयोगेणं उववजंति, नो परप्पयोगेणं उववजंति ।
८. [प्र०] असुरकुमारा गं भंते ! कह उववजंति ? [उ०] जहा नेरतिया तहेव निरवसेसं, जाव-नो परप्पयोगेण उववजति । एवं एगिदियवजा जाव-वेमाणिया । एगिदिया एवं चेव । नवरं चउसमइओ विग्गहो. सेसं तं चेव । 'सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव-विहरइ ।
पणवीसइमे सए अट्ठमो उद्देसो समत्तो । २. प्र०] हे भगवन् ! ते नारकोनी गति केवी शीघ्र होय छे अने तेओनो गतिविषय केवो शीघ्र होय छे ! [उ०] हे गौतम! नारकोनी गति. जेम कोइ पुरुष तरुण अने बलवान् होय-इत्यादि *चौदमा शतकना पहेला उद्देशकमां कह्या प्रमाणे जाणवू. यावत्-ते त्रण समयनी विग्रहगतिथी उत्पन्न थाय छे, तेम ते जीवोनी तेवी शीघ्रगति छे अने ते प्रकारे ते जीवोनो शीघ्र गतिविषय छे.
३. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो कया प्रकारे परभवनुं आयुष बांधे ! [उ०] हे गौतम! ते जीवो पोताना परिणामरूप अने परभवायुषर्षपर्नु मन वगेरेना व्यापाररूप करणोपाय-कर्मबंधना हेतु-द्वारा परभवनुं आयुष बांधे छे.
४. प्र०] हे भगवन् ! ते जीवोनी गति शाथी प्रवर्ते छे? [उ०] हे गौतम । ते जीवोना आयुषनो क्षय थवाथी, ते जीवोना भवनो ते जीवोनी गतिर्नु क्षय थवाथी अने ते जीवोनी स्थितिनो नाश थवाथी ते जीवोनी गति प्रवर्ते छे.
५. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो शुं पोतानी ऋद्धिथी-शक्तिथी उपजे छे के पारकी ऋद्धिथी उपजे छे! [उ०] हे गौतम! ते जीवो पोतानी ऋद्धिथी उपजे छे, पण परनी ऋद्धिथी उपजता नथी.
६. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो शुं पोताना कर्मथी उपजे छे के पारका कर्मथी उपजे छे! [उ०] हे गौतम ! ते जीवो पोताना उत्पत्तिनु कारण कर्मथी उपजे छे, पण पारका कर्मथी नथी उपजता.
स्वीय कर्म के पर
कीय कर्म. ७. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो शुं पोताना प्रयोग-व्यापारथी उपजे छे के पारका प्रयोगथी उपजे छे ! [उ०] हे गौतम ! ते उत्पचिन कारण जीवो पोताना प्रयोगथी उपजे छे, पण पारका प्रयोगथी उपजता नथी.
स्वपयोग के पर
प्रयोग। ८. [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारो केवी रीते उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम | जेम नैरयिक विषे का तेम बधुं असुरकुमार अमुरकुमारनी उत्पसंबंधे पण जाणवं, यावत्-'तेओ पोताना प्रयोगथी उत्पन्न थाय छे, पण परप्रयोगथी उत्पन्न थता नथी'. ए प्रमाणे एकेंद्रिय सिवाय यावत्
. ति केम थाय! वैमानिक सुधी बधा जीवो संबंधे समजq. एकेंद्रियो विषे पण तेज प्रकारे जाणवं, मात्र विशेष ए के, तओनी विग्रहगति चार समयनी होय. छे. बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. 'हे भगवन् ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे-एम कही यावत्-विहरे छे.
पचीशमा शतकमा आठमो उद्देशक समाप्त.
कारण.
कारण.
२* जुओ भग० ख०३ श०१४ उ०१पृ० ३४०..
प्र.
Jan Education international गुजा भग० ख०३२०१४ उ.
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