Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 329
________________ शतक २५.-उद्देशक ७. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २७१ ७४. [प्र०] सुहमसंपरायस्स-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं एको, उक्कोसेणं चत्तारि। ७५. [प्र०] अहक्खायस्स-पुच्छा । [उ०] गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उकोसेणं दोन्नि । ७६: प्र० सामाइयसंजयस्स णं भंते! नाणाभवग्गहणिया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता? [उ०] गोयमा! जहा घउसे। ७७. [प्र.] छेदोवट्ठावणियस्स-पुच्छा। [उ०] गोयमा! जहन्नेणं दोन्नि, उक्कोसेणं उरि नवण्हं सयाणं अंतो सहस्सस्स । परिहारविसुद्धियस्स जहन्नेणं दोन्नि, उक्कोसेणं सत्त । सुहुमसंपरागस्स जहन्नेणं दोन्नि, उकोसेणं नव । अहक्खायस्स जहन्नेणं दोन्नि, उक्कोसेणं पंच । ७८. [प्र०] सामाइयसंजए णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ? [उ०] गोयमा! जहन्नेणं एकं समयं, उकोसेणं देसूणयहि नवहिं वासेहिं ऊणिया पुवकोडी । एवं छेदोवट्ठावणिए वि । परिहारविसुद्धिए जहन्नेणं एकं. समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं एकूणतीसाए वासेहिं ऊणिया पुचकोडी । सुहुमसंपराए जहा नियंठे । अहक्खाए जहा सामाइयसंजए। . ७९. [प्र०] सामाइयसंजया णं भंते! कालओ केवचिरं होंति ? [उ०] गोयमा! सबद्धं । . ८०. [प्र०] छेदोवट्ठावणिएसु पुच्छा । [उ.] गोयमा! जहन्नेणं अड्डाइजाई वाससयाई, उक्कोसेणं पन्नासं सागरोवमकोडिसयसहस्साई। सूक्ष्मसंपरायसंय तने आकर्ष. यथाख्यातसंयतने भाकर्ष. सामायिक संयतने अनेक भवमा आकर्ष. ७४. [प्र०] सूक्ष्मसंपराय संबंधे पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेने जघन्य *एक अने उत्कृष्ट चार आकर्ष कह्या छे. ७५. [प्र०] यथाख्यात संबन्धे पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! तेने 'जघन्य एक अने उत्कृष्ट बे आकर्ष होय छे. .७६. प्रि०] हे भगवन् ! सामायिक संयतने अनेक भवमा ग्रहण करी शकाय तेवा केटला आकर्ष कह्या छे ! [उ०] हे गौतम! -इत्यादि बधुं बकुशनी पेठे ( उ० ६ सू० १३४ ) जाणवू. ७७. प्र०) छेदोपस्थापनीय संयत संबन्धे पृच्छा. [उ०] हे गौतम | तेने जघन्य बे अने उत्कृष्ट नवसो उपर अने हजारनी अंदर आकर्षा कह्या छे.परिहारविशुद्धिकने जघन्य बे अने उत्कृष्ट सात, सूक्ष्मसंपरायने जघन्य बे अने उत्कृष्ट नव तथा यथाख्यातने जघन्य बे अने उत्कृष्ट पांच आकर्षो कह्या छे. ७८. [प्र०] हे भगवन् ! सामायिक संयत काळथी क्यां सुधी होय ? [उ०] हे गौतम ! जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट काइक ऊणा-नव वरस न्यून पूर्वकोटि वर्ष सुधी होय. ए प्रमाणे छेदोपस्थापनीय संबंधे पण समजवू.-परिहारविशुद्धिक जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट काइक न्यून ओगणत्रीश वर्ष ऊणी पूर्वकोटि वर्ष सुधी होय. सूक्ष्मसंपराय संबंधे निग्रंथनी पेठे (उ०६ सू० १३९) जाणवू. यथाख्यातने सामायिक संयतनी जेम समजवु. ७९. [प्र०] हे भगवन् ! सामायिक संयतो काळथी क्यां सुधी होय ! [उ०] हे गौतम ! तेओ सर्व काळे होय. ८०. प्र०] हे भगवन् ! छेदोपस्थापनीय संयतो काळथी क्यांसुधी होय ! [उ०] हे गौतम ! तेओ जघन्य अढीसो वर्ष सुधी अने उत्कृष्ट पचासलाख क्रोड सागरोपम सुधी होय. २९ काळदार सामायिकादि संयः तोनो काळ.. - ७४ * सूक्ष्मसंपराय संयतने एक भवमां बे वार उपशमश्रेणिनो संभव होवाथी अने प्रत्येक श्रेणिमा संक्लिश्यमान अने विशुध्यमान एम बे प्रकारना सूक्ष्मसंपराय होवाथी चार वार सूक्ष्मसंपरायपणानी प्राप्ति थाय छे. . ५ + यथाख्यात संयतने बे वार उपशमश्रेणिनो संभव होवाथी बे आकर्ष होय छे. - परिहारविशुद्धिक संयतने एक भवमा उत्कृष्ट त्रण वार परिहारविशुद्धिचारित्र प्राप्त थाय छे अने ते तेने त्रण भवमा होय छे. एक भवमा त्रण वार, बीजा भवमां बे वार अने त्रीजा भवमां बे वार-इत्यादि विकल्पथी तेने अनेक भवमा सात आकर्ष थाय छे. सूक्ष्मसंपरायने एक भवमा चार आकर्ष होय छे भने त्रण भवमा सूक्ष्मसंपराय होय छे. तेने एक भवमा चार, बीजा भवमा चार अने एक भवमा एक-एम अनेक भवमां नव भाकर्ष थाय छे. यथाख्यात संयतने एक भवमां बे आकर्ष, बीजा भवमां बे अने त्रीजा भवमा एक-एम त्रण भवमा बधा मळीने पांच आकर्ष होय छे.. ७४ | सामायिक चारित्रनी प्राप्तिना समय पछी तुरत ज मरण थाय ते अपेक्षाए सामायिक संयतनो काळ जघन्य एक समय छे, अने उत्कृष्ट नव वर्ष न्यून पूर्वकोटीवर्ष छे ते गर्भसमयथी आरंभीने तेनी गणना जाणवी. जन्मदिवसथी गणना करीए तो आठ वरस न्यून पूर्वकोटी वर्ष काळ होय. परिहारविशुद्धिकने जघन्य एक समय मरणनी अपेक्षाए होय अने उत्कृष्ट काइक न्यून ओगणत्रीश वरस ओछी पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण होय. पूर्वकोटि वर्षना आयुषवाळो कोइ मनुष्य कंइक न्यून नव वरसनी उमरे दीक्षा ग्रहण करे, तेने वीश वरसनो दीक्षापर्याय थाय त्यारे दृष्टिवादना अध्ययननी अनुज्ञा मळे, त्यार पछी ते परिहारविशुद्धिचारित्र स्वीकारे अने तेनुं अढार मासर्नु प्रमाण छतां अविच्छिन्न तेज परिणामे जीवनपर्यन्त पाळे-एम ओगणत्रीश वर्ष न्यून पूर्वकोटि वर्ष पर्यन्त परिहारविशुद्धिक संयत रहे. यथाख्यात संयतने उपशमावस्थामां मरणनी अपेक्षाए जघन्यथी एक समय होय अने स्नातकने यथाख्यात संयतनी अपेक्षाए देश न्यून पूर्वकोटि वर्ष होय. - ७९ उत्सर्पिणीमां आदि तीर्थकरना तीर्थ सुधी छेदोपस्थापनीय चारित्र होय अने तेनुं तीर्थ अढीसो वरस सुधी होय, तेथी छेदोपस्थापनीय संयतोनो काळ जघन्यथी अढीसो वरस होय. अवसर्पिणी काळमा प्रथम तीर्थकरना तीर्थ सुधी छेदोपस्थापनीय होय अने ते पचासकोड लाख सागरोपम सुधी होय, माटे उत्कृष्टथी तेटलो काळ छद्मस्थ संयतोनो होय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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