Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 318
________________ १६० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे-- शतक १५.-उदेशक ६. ५४.० पलाए णं भंते ! लोगस्स किं संस्जदमागं फुसद, असंखेजइभागं फुसर? [उ० एवं जहा योगाहणा मणिया तहा फुसणा वि भाणियचा जाव-सिणाए ३३ । १५५. [प्र०] पुलाए गं भंते ! कतरंमि भावे होजा? [उ०] गोयमा! स्नओवसमिए भावे होजा । एवं जावपसायकुसीले। १५६. [प्र०] नियंठे-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! उवसमिए वा भावे होजा, नइए वा भावे होजा । १५७. [प्र०] सिणाए-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! खाइए भावे होजा ३४ । १५८. प्र० पुलाया णं भंते! एगसमपणं केवतिया होजा? [उ०] गोयमा! पडिवजमाणए पद्धप सिय अत्थि, सिय नथि । जह अत्थि जहमेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं । पुषपडिवनए पाप सिय त्थि, सिय नत्थि । जइ अस्थि जहनेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं । १५९. [प्र०] बउसा णं भंते ! एगसमपणं-पुच्छा। [उ.] गोयमा! पडिवजमाणए पडुश सिय अत्यि सिय नत्थि। जए अत्थि जहनेणं एक्को वा दो वा तिनि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं । पुषपडिवन्नए पडुच्च जहन्नेणं कोडिसयपुहुत्तं, उकोसेण वि कोडिसयपुहुत्तं । एवं पडिसेवणाकुसीले वि । १६०. [प्र०] कसायकुसीलाणं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! पडिवजमाणए पडुश्च सिय अत्यि, सिय नत्थि। आप अस्थि बहनेणं एको वा दो वा तिनि वा, उकोसेणं सहस्सपुहत्तं । पुषपडिवनए पडुश जहन्नेणं कोडिसहस्सपुए, उकोसेण वि कोडिसहस्सपुहुत्तं। १५१. [प्र०] नियंठाणं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! पडिवजमाणए पडुश्च सिय अस्थि, सिय नत्थि; जद्द अस्थि जहणं एस्पर्शनाद्वार- १५४. [४०] हे भगवन् ! शुं पुलाक लोकना संख्यातमा भागने स्पर्श के असंख्यातमा भागने स्पर्श ! [३०] जेम "अवगाहना कही तेम स्पर्शना पण जाणवी. ए प्रमाणे यावत्-स्नातक सुधी समजबु. ३४ भावद्वार- १५५. [प्र०] हे भगवन् । पुलाक कया भावमा होय! [उ०] हे गौतम । क्षायोपशमिक भावमा होय. ए प्रमाणे यावतूपुलाकवे भाव. कषायकुशील सुधी जाणवू. निन्थने भाव. १५६. [प्र०] हे भगवन् ! निर्मथ कया भावमा होय ! [उ०] हे गौतम! ते औपशमिक भावमा होय, अथवा क्षायिक भावमा पण होय. पातकने भाव १५७. [प्र०] हे भगवन् ! स्नातक कया भावमां होय ! [उ०] हे गौतम ! ते क्षायिक भावमा होय. २५ परिमाणद्वार १५८. [प्र०] हे भगवन् ! एक समये केटला पुलाको होय ! [उ०] हे गौतम ! प्रतिपधमान (तत्काळ पुलाकपणाने प्राप्त थता) पुलाकोनी संस्था पुलाकने आश्रयी कदाच होय अने कदाच न होय. प्रतिपद्यमान-पुलाकत्वने प्राप्त थता पुलाक होय तो जघन्य एक, बे के प्रण उत्कृष्ट शतपृथक्त्व-बसोथी नवसो सुधी पुलाको होय. तथा पूर्वप्रतिपन्न (पूर्वे पुलाकपणाने पामेला) पुलाकोनी अपेक्षाए कदाच पुलाको होय भने न होय. जो होय तो जघन्य एक, वे के त्रण होय अने उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व-बे हजारथी नव हजार सुधी होय. एकुशीनी संख्या. १५९. [प्र०] हे भगवन् ! एक समये केटला बकुशो होय ! [उ०] हे गौतम ! प्रतिपधमान (वर्तमान समये बकुशत्वने प्राप्त यता) बकुशोने आश्रयी कदाच होय अने कदाच न होय. जो होय तो जघन्य एक, बे अने त्रण होय. तथा उत्कृष्ट शतपृथक्व-बसोथी नव सो सुची बकुशो होय. पूर्वप्रतिपन (बकुशत्वने पूर्व प्राप्त थएला) बकुशो जघन्य भने उत्कृष्ट बे कोडथी नव कोड सुधी होय. कवायकुशीकोनी .१६०. [प्र०] हे भगवन् ! एक समये केटला कषायकुशीलो होय. [उ०] हे गौतम ! प्रतिपद्यमान (वर्तमान समये कषायकुसंख्या शीलत्वने प्राप्त पता ) कषायकुशीलो कदाच होय अने कदाच न होय. जो होय तो जघन्य एक, बे अने त्रण होय, अने उस्कृष्ट पे हजारथी नव हजार सुधी होय. पूर्वप्रतिपन्न कषायकुशीलोने आश्रयी जघन्य अने उत्कृष्ट 'बे कोडथी नव क्रोड सुधी होय. नियोनी संख्या. १६१. [प्र०] हे भगवन् ! एक समये केटला निग्रंथो होय ! [उ० हे गौतम ! प्रतिपद्यमान (वर्तमान समये निर्ग्रन्थत्वने प्राप्त थता) निर्ग्रन्थो कदाच होय अने कदाच न होय. जो होय तो जघन्य एक बे अने त्रण होय अने उत्कृष्ट एकसोने आठ क्षपकश्रेणिवाळा अने १५४ * स्पर्शना क्षेत्रनी पेठे जाणवी, परन्तु जेटलो भाग अवगाह-आश्रित होय ते क्षेत्रनी अवगाहना, अने अवगाढ क्षेत्र भने तेना पार्श्ववर्ती क्षेत्रनी सर्शना होय छे.-टीका. ६. सर्व संयतोनुं प्रमाण कोटीसहस्रपृथक्त्व छ, भने अहीं तेटल प्रमाण तो केवळ कषायकुशीलोनू की, अने तेमो पुलाकादिनी संख्या उमेरता अधिक संख्या थइ जाय तो विरोध केम न आवे ए शंका न करवी, कारण के कषायकुशीलनु कोटीसहस्रपृथक्त्व प्रमाण काही छे ते वे श्रण कोटी सहसरूप करपीने तेमा पुलाक-बकुशादिनी संख्या उमेरवी तेथी सर्व संयतनुं प्रमाण कम्युं छे तेथी अधिक संख्या नहि थाय.- टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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