Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २५.-उद्देशक ७ ३४. [प्र०] सुहुमसंपरायसंजयस्स-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! असंखेजा अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा पन्नत्ता। ३५.प्रअहक्खायसंजयस्स-पुच्छा। [उ०] गोयमा! एगे अजहन्नमणुकोसए संजमठाणे पन्नत्ते।
३६. प्र०] एएसिणं भंते! सामाइय-छेदोवट्ठावणिय-परिहारविसुद्धिय-सुहुमसंपराग-अहक्खायसंजयाणं संजमट्ठाणाणं कयरे कयरे-जाव-विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा! सम्वत्थोवे अहक्खायसंजमस्स एगे अजहन्नमणुकोसए संजमट्ठाणे, सुहुमसंपरागसंजयस्स अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा असंखेजगुणा, परिहारविसुद्धियसंजयस्स संजमट्ठाणा असंखेजगुणा, सामाइयसंजयस्स छेदोवट्ठावणियसंजयस्स य एएसि णं संजमट्ठाणा दोण्ह वि तुल्ला असंखेजगुणा (१४)।
३७. [प्र०] सामाइयसंजयस्स णं भंते ! केवइया चरित्तपजवा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा! अणंता चरित्तपजवा पन्नत्ता, एवं जाव-अहक्खायसंजयस्स ।।
३८. [प्र०] सामाइयसंजए णं भंते ! सामाइयसंजयस्स सट्ठाणसन्निगासेणं चरित्तपजवेहिं किं हीणे, तुल्ले, अमहिए ? [उ०] गोयमा! सिय हीणे-छट्ठाणवडिए ।
३९. [प्र०] सामाइयसंजए णं भंते ! छेदोवट्ठावणियसंजयस्स परट्ठाणसन्निगासेणं चरित्तपजवेहिं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सिय हीणे, छट्ठाणवडिए । एवं परिहारविसुद्धियस्स वि ।
४०. प्र०] सामाइयसंजए णं भंते! सुहुमसंपरागसंजयस्स परट्ठाणसन्निगासेणं चरित्तपजवेहिं-पुच्छा । [उ.] गोयमा! हीणे, नो तुल्ले, नो अब्भहिए, अणंतगुणहीणे । एवं अहक्खायसंजयस्स वि । एवं छेदोवट्ठावणिए वि हेट्ठिलेसु तिसु वि समं छट्ठाणवडिए, उवरिलेसु दोसु तहेव हीणे । जहा छेदोवट्ठावणिए तहा परिहारविसुद्धिए वि।
४१. [प्र०] सुहुमसंपरागसंजए णं भंते ! सामाश्यसंजयस्स परट्ठाण-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो हीणे, नो तुल्ले, अब्भहिए, अणंतगुणमन्महिए । एवं छेओवट्ठावणिय-परिहारविसुद्धिएसु वि समं । सट्टाणे सिय हीणे; नो तुल्ले, सिय अभहिए । जइ होणे अणंतगुणहीणे, अह अब्भहिए अणंतगुणमभहिए ।
सूक्ष्मसंपरायना ३४. [प्र०] हे भगवन् ! सूक्ष्मसंपराय संयतना केटलां संयमस्थानो कह्यां छे ? [उ०] हे गौतम ! तेनां असंख्य संयमस्थानो संयमस्थान के अने तेनी अंतर्मुहतेनी स्थिति छे. यथाख्यातना संय- ३५. [प्र०] हे भगवन् ! यथाख्यातसंयतनां केटलां संयमस्थानो कह्यां छे ? [उ.] हे गौतम! तेओर्नु जघन्य अने उत्कृष्ट
मस्थान. सिवाय एक संयमस्थान कयुं छे. संयमस्थानोनुं
३६. [प्र०] हे भगवन् ! सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनीयसंयत, परिहारविशुद्धिकसंयत, सूक्ष्मसंपरायसंयत अने यथाख्यातअल्पबदुत्व. संयत, एओना संयमस्थानोमां कोना संयमस्थानो कोना संयमस्थानोथी यावत्-विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम | यथाख्यात संयतनुं
अजघन्य अनुत्कृष्ट एक संयमस्थान होवाथी सौथी अल्प छे, तेथी सूक्ष्मसंपराय संयतनां अंतर्मुहूर्त सुधी रहेनारा संयमस्थानो असंख्यगुणां छे, तेथी परिहार विशुद्धिकनां संयमस्थानो असंख्यगुणां छे, तेथी सामायिकसंयत अने छेदोपस्थापनीयसंयतना संयमस्थानो असंख्य
गुणां छे अने परस्पर सरखां छे. १५ संनिकर्षद्वार- ३७. [40] हे भगवन् ! सामायिकसंयतना केटला चारित्रपर्यवो कह्या छ ? [उ०] हे गौतम । तेना अनंत चारित्रपर्यवो कह्या सामायिकसयतना के.ए प्रमाणे यावत्-यथाख्यातसंयत सुधी जाणवु.
चारित्रपर्यवो. सामायिक संयतर्नु ३८. [प्र०] हे भगवन् । सामायिकसंयत बीजा सामायिकसंयतना सजातीय चारित्रपर्यायनी अपेक्षाए शुं हीन होय, तुल्य
होय के अधिक होय ! [उ०] हे गौतम ! कदाच हीन होय, तुल्य होय अने अधिक होय अने तेमां-हीनाधिकपणामा छ स्थान पतित होय. अपेक्षाए अल्पबहुत्व. ९ सामायिक अने छे. ३९. [प्र०] हे भगवन् ! एक सामायिकसंयत छेदोपस्थापनीयसंयतना विजातीय चारित्रपर्यायना संबन्धनी अपेक्षाए शुं हीन होयदोपस्थापनीयतुं पर्या - इत्यादि पृच्छा. उ०] हे गौतम ! कदाच हीन होय-इत्यादि छ स्थान पतित होय. ए प्रमाणे परिहारविशुद्धिक संबंधे पण समजवु. यापेक्षाए भरूपबहुत्व. सामायिकना सूक्ष्म ४०. [प्र०] हे भगवन् ! एक सामायिकसंयत सूक्ष्मसंपरायसंयतना विजातीय चारित्रपर्यायनी अपेक्षाए हीन होय-इत्यादि पृच्छा. संपरायनी अपे
(उ०] हे गौतम ! हीन होय, तुल्य न होय, तेम अधिक पण न होय. तेमां पण अनंतगुण हीन छे. ए प्रमाणे यथाख्यातसंयत क्षार पर्यायो.
संबंधे पण जाणवू. ए प्रमाणे छेदोपस्थापनीय पण नीचेना त्रणे चारित्रनी अपेक्षाए छ स्थानपतित छे अने उपरना बे चारित्रथी
तेज प्रमाणे अनन्तगुण हीन छे. जेम छेदोपस्थापनीयसंयत विषे कह्यं तेम परिहारविशुद्धिक संबंधे पण जाणवू. सूक्ष्मसंपरायना सा- ४१. [प्र०] हे भगवन् ! सूक्ष्मसंपरायसंयत सामायिकसंयतना विजातीय पर्यायोनी अपेक्षाए शुं हीन छे-- इत्यादि पृच्छा. मायिकनी अपेक्षाए [उ०] हे गौतम ! ते हीन नथी, सरखो नथी, पण अधिक छे अने ते अनंत गुण अधिक छे. ए प्रमाणे छेदोपस्थापनीय अने परिहारपर्यायो.
विशुद्धिकनी साथे जाणवू. पोताना सजातीय पर्यायनी अपेक्षाए कदाच हीन होय, कदाच तुल्य होय अने कदाच अधिक होय. जो हीन होय तो अनंतगुण हीन होय, जो अधिक होय तो अनंतगुण अधिक होय.
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