Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 320
________________ परिहारविशुद्धिकना प्रकार. सूक्ष्मसंपरायना प्रकार. यथाख्यात संयतना प्रकार. सामायिक संयत. छेदोपखापनीय. परिहार विशुद्धिक. सूक्ष्मसंपराय. २ वेदसामायिक संयतने वेद. ३ रागसामायिक संयत अने राग. ४ कल्प सामायिक संयतने कल्प. छेदोपस्थापनीयने कल्प. श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे शतक २५.उद्देशक ७. ४. [प्र० ] परिहारविसुद्धियसंजर - पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तंजदा- णिधिसमाणण य निधिटुकाइए य । ५. [२०] सुदुमपराग पुच्छा [४०] गोयमा दुबिछे पनते, संजदा- संकिलिस्समाण व विसुद्माण प ६. [ प्र० ] अहफ्खायसंजर - पुच्छा । [ उ०] गोयमा ! दुविहे पत्रत्ते, तंजहा - छउमत्थे य केवली य । सामाइयंमि उ कप चाउजामं अणुत्तरं धम्मं । तिविहेणं फासयंतो सामाइयसंजओ स खलु ॥ १ ॥ छेतून उ परियागं पोराणं जो उवेद अप्पाणं धम्मंमि पंचामे छेदोवडायो स खलु ॥ २ ॥ परिहरइ जो विसुद्धं तु पंचयामं अणुत्तरं धम्मं । तिविहेणं फासयंतो परिहारियसंजओ स खलु ॥ ३ ॥ लोभाणू वेययतो जो खलु उपसामनो व खपओ वा सो सुतुमसंपराओ बहलाया ऊणओ किंचि ॥ ४ ॥ उवसंते खीणंमि व जो खलु कम्मंमि मोहणिजंमि । छउमत्थो व जिणो वा अहवाओ संजओ स खलु ॥ ५ ॥ (१) ७. [0] सामाइयसंजर णं भंते! किं सवेदर होना अवेद दोला ? [४०] गोयमा ! सवेदन वा होजा, अवेदए चा होजा । जइ सवेद एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेसं । एवं छेदोवट्ठावणियसंजय वि । परिहारविसुद्धियसंजओ जहा पुलाओ । सुहुमसंपरायसंजओ अहक्खायसंजओ य जहा नियंठो (२) । २६२ ८. [प्र० ] सामादयसंजय णं भंते किं खरागे होला पीपरागे दोखा [ड०] गोयमा ! सरागे दोना, नो पीपरा होजा एवं जाय सुडुमसंपरायसंजर अहसावसंजय जहा नियंडे (३) । 1 ९. [प्र० ] सामाइयसंजर णं भंते । किं ठियकप्पे होजा, अट्ठियकप्पे होला ? [ उ०] गोयमा ! ठियकप्पे वा होजा, विकप्पे या होजा । १०. [१०] छेदोवायणियसंजय पुण्छा [४०] गोवमा ! ठिबकण्ये होना, जो अट्ठियकप्पे होला । एवं परिहारविसुद्धिय संजय वि । सेसा जहा सामाइयसंजए । ४. [ प्र० ] हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिक संयतना केटला प्रकार कह्या छे ? [उ०] हे गौतम! तेना वे प्रकार का छे. ते आ प्रमाणे- निर्विशमानक ( तप करनार ) अने निर्विष्टकाविक (वैयावृत्य करनार ). ५. [ प्र० ] हे भगवन् ! सूक्ष्मसंपराय संयतना केटला प्रकार कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! बे प्रकार कह्या छे, ते आ प्रमाणेसंक्लिश्यमानक (उपश्रेणिधी पडतो) अने विशुध्यमानक ( उपशमश्रेणि के क्षपकश्रेणि पर चढतो ). ६. [ प्र० ] हे भगवन् ! यथाख्यात संयतना केटला प्रकार कह्या छे ! [उ०] हे गौतम! बे प्रकार कह्या छे, ते आ प्रमाणे-छास्थ अने केवळी. सामायिक स्त्री कार्या पछी चार महाव्रतरूप प्रधान धर्मने मन, वचन अने कायाथी त्रिलिचे जे पाळे ते 'सामायिकसंवत' कहेवाय. पूर्वना पर्यायनो छेद करी जे पोताना आत्माने पांच महाव्रतरूप धर्ममां स्थापे ते 'छेदोपस्थापनीयसंयत' कहेवाय छे. जे पांच महाव्रतरूप अने उत्तमोत्तम धर्मने त्रिविधे मन वचन अने कायाची पाळतो अमुक प्रकार तप करे वे 'परिहारविशुद्धिकसंयत' कद्देवाय छे. मना अणुओने दो चारित्रमोहने उपशमाने के क्षय करे ते 'सूक्ष्मसंपराय' कहेवाय छे अने ते यथारूपात संपथी कक न्यून होय छे. मोहनीय कर्म उपशान्त के क्षीण थया पछी जे छद्मस्थ होय के जिन होय ते 'यथाख्यातसंयत' कहेवाय छे. ७. [प्र०] हे भगवन् ! सामायिक संयत वेदवाळो होय के वेदविरहित होय! [उ०] हे गौतम! ते *वेदवाळो होय अने वेदविरहित पण होय. जो वेदवाळो सामायिकसंयत होय तो तेने बधी हकीकत कषायकुशीलनी पेठे जाणवी. ए प्रमाणे छेदोपस्थापनीयसंयत पण समजवो. परिहारविशुद्धिक संयत संबंधी हकीकत पुलाकनी पेठे जाणवी सूक्ष्मपराय संयत अने यथाख्यात संयत निर्बंधनी पेठे (अवेदक ) जाणवा. ८. [प्र०] हे भगवन् ! शुं सामायिक संयत रागवाळो होय के वीतराग होय ? [उ०] हे गौतम! ते रागवाळो होय, पण वीतराग न होय. ए प्रमाणे सूक्ष्मसंपराप संवत संबंधे पण जाणतुं यथाख्याता संवतने निर्बंधनी पेठे जाण. ९. [ प्र० ] हे भगवन् ! शुं सामायिक संयत स्थितकल्पमां होय के अस्थितकल्पमां होय ! [उ०] हे गौतम । स्थितकल्पमा पण होय अने अस्थितकल्पमां पण होय. १०. [प्र०] हे भगवन्। शुं छेदोपस्थापनीय संवत स्थितरुपमा होय के अस्थितकल्पमा होय! [उ०] हे गौतम! स्थितकल्पमा होय, पण अस्थितकल्पमां न होय. ए प्रमाणे परिहारविशुद्धिक संयतने पण जाणवुं. अने बाकीना बधा सामायिक संयतनी पेठे जाणवा. १ लोभमणुं वेदतो क । नवमा गुणस्थानक सुधी सामायिक संयत कहेवाय छे. नवमा गुणस्थानके वेदनो उपशम अथवा क्षय थाय छे, माटे त्यां सामायिक संयत अवेदक होय छे अने तेना पूर्ववर्ती गुणस्थाने सवेदक होय छे. जो ते सवेदक होय तो ते त्रण वेदवाळो होय छे अने अवेदक होय तो ते क्षीगवेद होय के उपशान्तवेद होय. परिहारविशुद्धिक संयत पुलाकनी पेठे पुरुषवेदवाळी के पुरुषनपुंसक वेदवाळी ( कृत्रिमनपुंसक ) होय छे. १० + अस्थितकल्प मध्यम बावीश जिनना तीर्थमां अने महाविदेह जिनना तीर्थमां होय छे, अने त्यां छेदोपस्थापनीय चारित्र नथी. तेथी छेदोपस्थापनीयसंयतने अस्थितकल्प न होय. Jain Education International ७ * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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