Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 321
________________ २६३ शतक २५.-उद्देशक ७. भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ११. [प्र० सामाइयसंजए णं भंते । किं जिणकप्पे होजा, थेरकप्पे होजा, कप्पातीते होजा? [उ० गोयमा! जिणकप्पे वा होजा, जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेसं । छेदोवट्ठावणिओ परिहारविसुद्धिओ य जहा बउसो, सेसा जहा नियंठे (४)। १२. प्र० सामाइयसंजएं णं भंते! किं पुलाए होजा, बउसे, जाव-सिणाए होजा? [उ.1 गोयमा! पुलाए वा होजा, बउसे, जाव-कसायकुसीले वा होजा, नो नियंठे होजा, नो सिणाए होजा । एवं छेदोवट्ठावणिए वि। १३. परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते !-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नो पुलाए, नो बउसे, नो पडिसेवणाकुसीले होजा, कसायकुसीले होजा, नो नियंठे होजा, नो सिणाए होजा । एवं सुहमसंपराए वि। १४. [प्र०] अहफ्खायसंजए-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो पुलाए होजा, जाव-नो कसायकुसीले होजा, नियंठे वा होजा, सिणाए वा होजा (५)। १५. [प्र०] सामाइयसंजए णं भंते ! किं पडिसेवए होजा, अपडिसेवए होजा ? [उ०] गोयमा! पडिसेवए वा होजा, अपडिसेवए वा होजा । जइ पडिसेवए होजा, किं मूलगुणपडिसेवए होजा, सेसं जहा पुलागस्स । जहा सामाइयसंजए एवं छेदोवट्ठावणिए वि। १६. [प्र०] परिहारविसुद्धियसंजए-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो पडिसेवए होजा, अपडिसेवए होजा । एवं जाव-अहक्खायसंजए (६)। १७. [प्र०] सामाइयसंजए णं भंते ! कतिसु नाणेसु होजा? [उ०] गोयमा ! दोसु वा तिसु वा चउसु वा नाणेसु होजा, एवं जहा कसायकुसीलस्स तहेव चत्तारि नाणाई भयणाए, एवं जाव-सुहुमसंपराए । अहक्खायसंजयस्स पंच नाणाई भयणाए जहा नाणुद्देसए। १८. [प्र०] सामाइयसंजए णं भंते ! केवतियं सुयं अहिजेजा ? [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठ पवयणमायाओ, जहा कसायकुसीले । एवं छेदोवट्ठावणिए वि। ११. [१०] हे भगवन् ! शुं सामायिकसंयत जिनकल्पमा होय, स्थविरकल्पमा होय के कल्पातीत होय ! [उ०] हे गौतम | ते जिनकल्पमा होय-इत्यादि बाकी बधु कषायकुशीलनी पेठे जाणवू.छेदोपस्थापनीय अने परिहारविशुद्धिकनी हकीकत बकुशनी पेठे जाणवी अने बाकी बधा निग्रंथनी पेठे समजवा. १२. [प्र०] हे भगवन् ! शुं सामायिकसंयत पुलाक होय, बकुश होय के यावत्-स्नातक होय ! [उ.] हे गौतम | ते पुलाक सामायिक बने पण होय, बकुश पण होय, यावत्-कषायकुशील होय, पण निग्रंथ के स्नातक न होय. ए प्रमाणे छेदोपस्थापनीयसंयत संबंधे पण जाणवं १३. [प्र०] हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत शुं पुलाक होय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पुलाक न होय, बकुश न होय, परिहारविशुद्ध बने प्रतिसेवनाकुशील न होय, निग्रंथ न होय अने स्नातक न होय, पण कषायकुशील होय. ए प्रमाणे सूक्ष्मसंपराय संयत पण जाणवो. पुलाकादि. १४. [प्र०] यथाख्यातसंयत शुं पुलाक होय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पुलाक न होय अने यावत्-कषायकुशील न होय, यथाख्यात अने पण निग्रंथ होय अथवा स्नातक होय. पुलाकादि. १५. [प्र०] हे भगवन् ! शुं सामायिकसयत प्रतिसेवक-चारित्रविराधक होय के अप्रतिसेवक-आराधक होय! [उ. हे ५प्रतिसेवागौतम ! प्रतिसेवक पण होय अने अप्रतिसेवक पण होयः [प्र.] हे भगवन् ! जो ते प्रतिसेवक होय.तो शुं अहिंसादि मूलगुणनो सामायिक संवत भने प्रतिसेवकप्रतिसेवक होय के प्रत्याख्यानरूप उत्तरगुणनो प्रतिसेवक होय ? [उ०] बाकी बधुं पुलाकनी पेठे जाणवू. सामायिकसंयतनी पेठे छेदोपस्थापनीय संयत पण जाणवो. १६. [प्र०] हे भगवन् ! शुं परिहारविशुद्धिक संयत प्रतिसेवक छे के अप्रतिसेवक छे ! [उ०] हे गौतम ! ते प्रतिसेवक नथी, परिवार विशुविक पण अप्रतिसेवक छे. ए प्रमाणे यावत्-यथाख्यात संयत सुधी जाणवू. अने प्रतिसेवक १७. [प्र०] हे भगवन् । सामायिकसंयतने केटला ज्ञान होय ! [उ०] हे गौतम | तेने बे, त्रण के चार ज्ञान होय. ए प्रमाणे शानदारकषायकुशीलनी पेठे चार ज्ञान भजनाए होय छे. ए प्रमाणे यावत्-सूक्ष्मसंपराय संयत सुधी जाणवू. तथा *ज्ञानोद्देशकमां कह्या प्रमाणे यथाख्यात संयतने पांच ज्ञान *भजनाए होय छे. १८. [प्र०] हे भगवन् । सामायिकसंयत केटलं श्रुत भणे? [उ०] हे गौतम ! ते जघन्य आठ प्रवचनमाता रूप श्रुतनुं श्रुतदारअध्ययन करे-इत्यादि बधी हकीकत कषायकुशीलनी पेठे जाणवी. तथा एज रीते छेदोपस्थायनीयसंयतने पण समजवू. सामायिक संयतने श्रव. 'सुहुमसंपराइए अङ। १७ * जुभो भग० ख०३ श०८१०२ पृ०६९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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