Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक २५.-उद्देशक ६.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ८०. [प्र०] णियंठे थे भंते ! णियंठस्स सट्ठाणसन्निगासेणं-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! नो हीणे, तुल्ले, णो अब्भहिए। एवं सिणायस्स वि।
८१. [प्र०] सिणाए णं भंते ! पुलागस्स परट्ठाणसन्निगासेणं० १ [उ०] एवं जहा नियंठस्स वत्तव्वया तहा सिणायस्स वि भाणियवा । जाव-सिणाए णं भंते ! सिणायस्स सट्ठाणसन्निगासेणं-पुच्छा। [उ०] गोयमा! णो हीणे, तुल्ले, णो अन्भहिए।
८२. [प्र०] एएसि णं भंते ! पुलाग-बकुस-पडिसेवणाकुसील-कसायकुसील-नियंठ-सिणायाणं जहन्नकोसगाणं चरित्तपज्जवाणं कयरे कयरे-जाव-विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा ! १ पुलागस्स कसायकुसीलस्स य एएसिणं जहन्नगा चरित्तपजवा दोण्ह वि तुल्ला सवत्थोवा । २ पुलागस्स उक्कोसगा चरित्तपजवा अणंतगुणा । ३ बउसस्स पडिसेवणाकुसीलस्स य एएसि णं जहन्नगा चरित्तपजवा दोण्ह वि तुल्ला अणंतगुणा । ४ बउसस्स उक्कोसगा चरित्तपजवा अणंतगुणा । ५ पडिसेवणाकुसीलस्स उक्कोसंगा चरित्तपज्जवा अर्णतगुणा । ६ कसायकुसीलस्स उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अर्णतगुणा। ७णियंठस्स सिणायस्स य एतेंसि णं अजहन्नमणुक्कोसगा चरित्तपजवा दोण्ह वि तुल्ला अणंतगुणा १५ ।
८३. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं सयोगी होजा, अजोगी होजा ? [उ०] गोयमा ! सयोगी होजा, नो अयोगी होजा। [प्र०] जइ सयोगी होजा किं मणजोगी होजा, वइजोगी होजा, कायजोगी होजा ? [उ०] गोयमा ! मणजोगी वा होजा, वयजोगी वा होजा, कायजोगी वा होजा । एवं जाव-नियंठे ।
८४. [प्र०] सिणाए णं-पुच्छा। [उ०] गोयमा! सयोगी वा होजा, अयोगी वा होजा। जइ सयोगी होजा किं मणजोगी होजा-सेसं जहा पुलागस्स १६ ।।
८५. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं सागारोवउत्ते होजा, अणागारोवउत्ते होजा ? [उ०] गोयमा ! सागारोवउत्ते वा होजा, अणागारोवउत्ते वा होजा । एवं जाव-सिणाए १७। ८०. [प्र०] हे भगवन् ! निग्रंथ निग्रंथना सजातीय चारित्रपर्यवोथी शुं हीन छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते हीन निर्यन्धना सजातीय
नी अपेक्षाए चारित्रनथी अने अधिक नथी, पण तुल्य छे. ए प्रमाणे स्नातकनी अपेक्षाए पण समजq. .
पर्यायो. ८१. [प्र० हे भगवन् । स्नातक पुलाकना विजातीय चारित्रपर्यवोथी शुं हीन छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम! जेम स्नातकना पुलाकनी
अपेक्षाए चारित्रनिग्रंथ संबन्धे वक्तव्यता कही तेम स्नातक संबन्धे पण वक्तव्यता कहेवी. यावत्-[प्र०] हे भगवन् ! स्नातक स्नातकना सजातीय चारित्रप
पर्याय. र्यवोथी शुं हीन छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते हीन नथी, अधिक नथी, पण तुल्य छे. ८२. [प्र०] हे भगवन् ! ए पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील, निग्रंथ अने स्नातकना जघन्य अने उत्कृष्ट चारित्र
अल्पबहुत्व. पर्यवो कोना कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे! [उ०] हे गौतम ! १ पुलाक अने कषायकुशीलना जघन्य चारित्रपर्यवो परस्पर तुल्य छे अने सौथी थोडा छे. २ तेथी पुलाकना उत्कृष्ट चारित्रपर्यवो अनंतगुण छे. ३ तेथी बकुश अने प्रतिसेवनाकुशीलना जघन्य चारित्रपर्यवो अनंतगुण अने परस्पर तुल्य छे. ४ तेथी बकुशना उत्कृष्ट चारित्रपर्यवो अनंतगुण छे. ५ तेथी प्रतिसेवनाकुशीलना उत्कृष्ट चारित्रपर्यवो अनंतगुण छे. ६ तेथी कषायकुशीलना उत्कृष्ट चारित्रपर्यवो अनंतगुण छे. ७ तेथी निग्रंथ अने स्नातक ए बन्नेना अजघन्य तथा अनुत्कृष्ट चारित्रपर्यवो अनंतगुण अने परस्पर तुल्य छे.*
८३. [प्र०] हे भगवन् ! पुलाक सयोगी होय के अयोगी होय ? [उ०] हे गौतम ! सयोगी होय, पण अयोगी न होय. [प्र०] १६ योगदारजो सयोगी होय तो शुं मनयोगी होय, वचनयोगी होय के काययोगी होय? [उ०हे गौतम! ते मनयोगी होय, वचनयोगी होय अने
योगकाययोगी पण होय. ए प्रमाणे यावत्-निग्रंथ सुधी जाणवू.
८४. [प्र०] हे भगवन् ! शुं स्नातक सयोगी होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते सयोगी पण होय अने अयोगी पण होय. स्नातक अने योग. जो ते सयोगी होय तो शुं मनयोगी होय, वचनयोगी होय के काययोगी होय-इत्यादि बधु पुलाकनी पेठे जाणवं.
८५. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पुलाक साकार उपयोगवाळो छे के अनाकार उपयोगवाळो छ ? [उ०] हे गौतम ! ते साकार १७ उपयोगदारउपयोगवाळो अने अनाकार उपयोगवाळो छे. ए प्रमाणे यावत्-स्नातक सुधी समजवू.
पुलाक भने उपयोग
८२ * १ पुलाक जघन्य.
२ कषायकुशील परस्पर तुल्य
जघन्य अने उत्कृष्ट चारित्रपर्यायोनुं अल्पबहुत्वदर्शक यन्त्र. ३ पुलाक उ• अनन्तगुण ६ बकुश उ०७ प्रतिसेवना कु० उ. ४ बकुश ।
निर्ग्रन्थ ।
८ कषायकु० उ०
१० स्नातक
परस्पर तुल्य
५ प्रतिसेवना कु./ज. परस्पर तुल्य
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