Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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२५८
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २५.-उद्देशक ६. ११७. [प्र०] पडिसेवणाकुसीले णं भंते ! पडि०-पुच्छा । गोयमा! पडिसेवणाकुसीलत्तं जहति, बउसं वा, कसायकुसीलं वा, अस्संजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपजति।
११८. [प्र०] कसायकुसीले-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! कसायकुसीलत्तं जहति, पुलायं वा, बउसं वा पडिसेवणाकुसीलं वा, णियंठं वा, अस्संजमं वा, संयमासंयम वा उवसंपजति ।
११९. [प्र०] णियंठे-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नियंठत्तं जहति, कसायकुसीलं वा, सिणायं वा, अस्संजमं वा उवसंपन्जति ।
१२०. [प्र०] सिणाए-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सिणायत्तं जहति, सिद्धिगति उवसंपजति २४ । १२१. [प्र०] पुलाए णं भंते! किं सन्नोवउत्ते होजा, नोसन्नोवउत्ते होजा? [उ०] गोयमा! णोसन्नोवउत्ते होजा।
१२२. प्रि०] बउसे गं भंते !-पुच्छा । [उ०] गोयमा! सन्नोवउत्ते वा होजा, नोसन्नोवउत्ते वा होजा । एवं पतिसेवणाकुसीले वि एवं कसायकुसीले वि । नियंठे सिणाए य जहा पुलाए २५।।
१२३. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं आहारए होजा, अणाहारए होजा ? [उ०] गोयमा ! आहारए होजा, णो अणाहारए होज्जा । एवं जाव-नियंठे ।
१२४. [प्र०] सिणाए-पुच्छा । [उ०] गोयमा! आहारए वा होजा, अणाहारए वा होजा २६ ।
१२५. [प्र०] पुलाए णं भंते ! कति भवग्गहणाई होजा ? [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं एक, उक्कोसेणं तिन्नि । प्रतिसेवनाकुशीलनी ११७. [प्र०] हे भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील प्रतिसेवनाकुशीलपणुं छोडतो शुं छोडे अने शुं पामे ! [उ०] हे गौतम ! प्रतिसेवउपसंपद् अने हान
" नाकुशीलपणुं छोडे अने बकुशपणुं, कषायकुशीलपणुं, असंयम के संयमासंयम पामे. कषायकुशीलनी ११८. [प्र०] हे भगवन् ! कषायकुशील कषायकुशीलपणुं छोडतो शुं छोडे अने शुं पामे ! [उ०] हे गौतम ! कषायकुशीलपणुं
जहाना छोडे अने पुलाकपणुं, बकुशपणुं, प्रतिसेवनाकुशीलपणुं, निग्रंथपणुं, असंयम के संयमासंयमने पामे. निम्रन्थ शुं छोडे अने ११९. [प्र०ा हे भगवन् ! निग्रंथ निग्रंथपणुं छोडतो शुं छोडे अने शुं पामे? [उ०] हे गौतम ! *निग्रंथपणुं छोडे अने कषायकु
शं पामे!
" शीलपणुं, स्नातकपणुं के असंयम पामे. स्नातक V छोडे भने १२०. [प्र०] हे भगवन् ! स्नातक स्नातकपणुं छोडतो शुं छोडे अने शुं पामे ? [उ०] हे गौतम ! स्नातकपणुं छोडे अने . शुं पामे.
सिद्धिगतिने पामे. २५ संशाद्वार
१२१. [प्र०] हे भगवन् ! पुलाक सिंज्ञोपयुक्त-आहारादिनी आसक्ति युक्त छे के नोसंज्ञोपयुक्त आहारादिनी अनासक्ति युक्त छे ! पुलाक अने संशा.
[उ०] हे गौतम ! संज्ञोपयुक्त नथी, पण नोसंज्ञोपयुक्त छे. बकुश अने संज्ञा- १२२. [प्र०] हे भगवन् ! शुं बकुश संज्ञोपयुक्त छे-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! संज्ञोपयुक्त छे अने नोसंज्ञोपयुक्त पण छे.
एप्रमाणे प्रतिसेवनाकुशील अने कषायकुशील पण जाणवा. स्नातक अने निग्रंथ पुलाकनी पेठे (नोसंज्ञोपयुक्त) जाणवा. २६ आहारद्वार- १२३. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पुलाक आहारक होय के अनाहारक होय ? [उ०] हे गौतम ! आहारक होय, पण अनाहारक न पुलाक अने आहार.
होय. ए प्रमाणे यावत्-निग्रंथ सुधी जाणवू. स्नातक अने आहारः १२४. [प्र०] हे भगवन् ! शुं स्नातक आहारक होय के अनाहारक होय ! [उ०] हे गौतम ! आहारक पण होय अने
अनाहारक पण होय. २७ भवद्वार
१२५. [प्र०] हे भगवन् ! पुलाकने केटलां भवग्रहण थाय ! [उ०] हे गौतम! जघन्य एक अने उत्कृष्ट त्रण भवग्रहण थाय. पुलाकने भव.
११९ * उपशमनिर्ग्रन्थ श्रेणिथी पडतो सकषाय-कषायकुशील थाय, अने श्रेणिना शिखरे मरण पामी देवपणे उत्पन्न धतो असंयत थाय, पण देशविरति न थाय. कारण के देवपणामां देशविरति नथी. यद्यपि श्रेणिथी पढीने देशविरति पण थाय छतां ते अहिं न कह्यो, कारण के श्रेणिधी पडीने तुरत ज देशविरति थतो नथी, पण कषायकुशील थईने पछी देशविरति थाय छै.
१२१ + आहारादि संज्ञामा उपयुक्त आहारादिना अभिलाषवाळो संज्ञोपयुक्त कहेवाय छे. आहारादिनो उपभोग करवा छतां तेने विषे आसक्तिरहित नोसंज्ञो पयुक्त कहेवाय छे. तेमा आहारादिने विषे आसक्ति रहित होवाथी पुलाक, निम्रन्थ अने स्नातक नोसंज्ञोपयुक्त होय छे. यद्यपि निम्रन्थ अने स्नातक तो वीतराग होवाथी नोसंज्ञोपयोगयुक्त छे, पण सरागी होवाथी पुलाक नोसंज्ञोपयुक्त केम होइ शके-ए शंका न करवी, केमके सरागपणामां सर्वथा आसक्तिरहितपणु नथी एम न कही शकाय. बकुशादि सराग होवा छतां पण निःसंग छे एम प्रतिपादन करेलुं छे. चूर्णिकार कहे छ के-नोसंज्ञा-ज्ञानसंज्ञा, तेमां पुलाक, निर्मन्य अने स्नातक नोसंज्ञोपयोग सहित होय छे एटले ज्ञानप्रधान उपयोगवाळा होय छे, पण आहारादि संज्ञाना उपयोगवाळा होता नथी. बकुशादि तो नोसंज्ञा अने संज्ञा वन्नेना उपयोगवाळा होय छे.
१२३ 1 पुलाकथी आरंभी निर्गन्ध सुधीना मुनिने विग्रहगत्यादि रूप अनाहारकपणाना कारणनो अभाव होवाथी आहारकपणु ज छे. सातक केवलिसमुद्धातना त्रीजा चोथा अने पांचमा समयमा अने अयोगी अवस्थामा अनाहारक छे अने ते सिवाय अन्यत्र आहारक छे.
१२५ १ जघन्यतः एक भवमा पुलाक थइने कषायकुशीलपणादि अन्य कोइ पण संयतपणाने एक वार के अनेक वार ते भवमां के अन्य भवर्मा पामीने सिद्ध थाय छे अने उत्कृष्ट देवादिभव वडे अंतरित त्रण भव सुधी पुलाकपणुं पामे छे. . .
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