Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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२५२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक २५.-उद्देशक ६. ६.०] पुलाए णं भंते ! सकसायी अकसायी होजा? [उ०] गोयमा ! सकसायी होजा, णो अकसायी होजा। [प्र०] जब सकसाई से गं भंते ! कतिसु कसाएसु होजा ? [उ०] गोयमा ! चउसु कोह-माण-माया-लोभेसु होजा। एवं बउसे वि; एवं पडिसेवणाकुसीले वि ।
८७. प्र०] कसायकुसीले णं-पुच्छा [उ०] गोयमा सकसायी होजा, णो अकसायी होजा । प्रि० जह सकसायी होजा से णं भंते! कतिसु कसाएसु होजा? [उ०] गोयमा! चउसु वा तिसु वा दोसु वा पगंमि वा होजा। चउसु होमाणे चउसु संजलणकोह-माण-माया-लोमेसु होजा, तिसु होमाणे तिसु संजलणमाण-माया-लोभेस होजा. दोसु होमाणे संजलणमाया-लोभेसु होजा, एगंमि होमाणे संजलणलोभे होजा ।
८. [प्र०] नियंठे णं-पुच्छा [उ०] गोयमा ! णो सकसायी होजा, अकसायी होजा। [प्र०] जब अकसायी होजा किं उवसंतकसायी होजा, खीणकसायी होजा? [उ.] गोयमा! उवसंतकसायी वा होजा, खीणकसायी वा होजा। सिणाए एवं चेव नवरं णो उवसंतकसायी होजा; खीणकसायी होजा १८ ।
८९. [प्र०] पुलाए णं भंते ! किं सलेस्से होजा, अलेस्से होजा ? [उ०] गोयमा ! सलेस्से होजा, णो अलेस्से होजा। [प्र०] जइ सलेस्से होजा, से णं भंते ! कतिसु लेस्सासु होजा? [उ.] गोयमा! तिसु विसद्धलेस्सास होजाः तंजहा-तेउलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुक्कलेस्साए । एवं बउसस्स वि; एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
९०. [प्र०] कसायकुसीले-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सलेस्से होजा, णो अलेस्से होजा; । [प्र०] जइ सलेस्से होजा, से णं भंते ! कतिसु लेसासु होजा? [उ०] गोयमा! छसु लेसासु होजा, तंजहा-कण्हलेस्साए, जाव-सुक्कलेस्साए ।
____९१. [प्र०] नियंठे णं भंते !-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! सलेस्से होजा, णो अलेस्से होजा । [प्र०] जब सलेसे होजा से णं भंते ! कतिसु लेस्सासु होजा ? [उ०] गोयमा ! एकाए सुक्कलेस्साए होजा।
१८ कषायद्वार
पुलाकने कषायो.
कषायकुशीलने
कषायो.
निर्ग्रन्थने कषाय.
८६. प्रि०] हे भगवन् ! पुलाक सकषायी होय के कमायरहित होय ! [उ०] हे गौतम | ते *सकषायी होय, पण कषायरहित न होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते कषायवाळो छे तो तेने केटला कषायो होय ! [उ०] हे गौतम ! तेने क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चार कषाय होय. ए प्रमाणे बकुश तथा प्रतिसेवनाकुशील पण जाणवो.
८७. प्र०] हे भगवन् । कषायकुशील कषायवाळो होय के कषाय विनानो होय ! [उ०] हे गौतम ! ते कषायवाळो होय, पण कषाय विनानो न होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते सकषायी होय तो तेने केटला कषायो होय ? [उ.] हे गौतम । तेने चिार, त्रण, बे अने एक कषाय होय. जो तेने चार कषायो होय तो संज्वलन क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चार कषाय होय. जो तेने त्रण कषायो. होय तो संज्वलन मान, माया अने लोभ ए त्रण कषाय होय. जो तेने बे कषायो होय तो संज्वलन माया अने लोभ होय. अने जो तेने एक कषाय होय तो एक संज्वलन लोभ होय.
.८८. [प्र०] हे भगवन् ! निग्रंथ कषायवाळो होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते कषायवाळो न होय, पण कषायरहित होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते कषायरहित होय तो शुं ते उपशांतकषाय होय के क्षीणकषाय होय ! [उ०] हे गौतम! ते उपशांतकषाय होय अने क्षीणकषाय पण होय. ए प्रमाणे स्नातक संबन्धे पण समजवु. परन्तु स्नातक क्षीणकषाय ज होय, पण उपशातकषाय न होय.
८९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पुलाक लेश्यावाळो होय के लेश्यारहित होय ! [उ०] हे गौतम! लेश्यावाळो होय, पण लेश्यारहितः न होय. जो ते लेश्यावाळो होय तो तेने केटली लेश्या होय : उ०हे गौतम ! तेने त्रण विशुद्ध लेश्या होय. ते आ प्रमाणे-तेजोलेश्या, पद्मलेश्या अने शुक्ललेश्या. ए प्रमाणे बकुश तथा प्रतिसेवनाकुशीलसंबन्धे पण समजवू.
९०. [प्र०] हे भगवन् ! शुं कषायकुशील लेश्यावाळो होय-इत्यादि पृच्छा. उ०] हे गौतम ! ते लेश्यावाळो होय, पण लेश्यारहित न होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते लेश्यावाळो होय तो तेने केटली लेश्या होय ? [उ०] हे गौतम ! तेने छ लेश्या होय. ते आप्रमाणे-९ कृष्णलेश्या अने यावत्-६ शुक्ललेश्या.
९१. [प्र०] हे भगवन् ! शुं निग्रंथ लेश्यावाळो होय-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम ! ते लेश्यावाळो होय, पण लेश्या विनानो न होय. [प्र०] जो ते लेश्यावाळो होय तो तेने केटली लेश्या होय ! [उ०] हे गौतम ! तेने एक शुक्ललेश्या होय.
१९ लेण्यादारपुलाकने लेश्या.
कषायकुशीलने
लेश्या.
सातकने लेश्या.
८६ * पुलाकने कषायोनो क्षय के उपशम होतो नथी एटले ते सकषायी ज होय छे.
७. उपशमश्रेणि के क्षपकश्रेणिमा संज्वलन क्रोधनो उपशम के क्षय थयो होय त्यारे ऋण कषायो, माननो क्षय के उपशम थाय त्यारे बे अने 'माया जाय त्यारे सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानके एक संज्वलन लोभ होय.-टीका.
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