Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक २०.-उद्देशक ५. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१०१ ३. [प्र०] तिपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवन्ने० [उ०] जहा अट्ठारसमसए छटुंदेसे जाव-चउफासे पन्नत्ते । जा एगवने सिय कालए जाव-मुक्किलए ५ । जइ दुवन्ने सिय कालए य सिय नीलए य १, सिय कालए य नीलगाय २, सिय कालगा य नीलए य ३, सिय कालप य लोहियए य १, सिय कालए य लोहीयगा य २, सिय कालगा ३, एवं हालिहएण वि समं भंगा ३, एवं सुकिल्लएण वि समं ३, सिय नीलए य लोहियए य एत्य वि भंगा ३, एवं हालिहुएण वि समं भंगा ३, एवं सुकिल्लेण वि समं भंगा ३, सिय लोहियए य हालिद्दए य भङ्गा ३, एवं सुकिल्लेण वि समं ३,
३. प्र०] हे भगवन् ! त्रिप्रदेशिक स्कंध केटला वर्णवाळो होय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम "अढारमा शतकना छट्ठा उद्देशकमा कर्वा त्रिप्रवेशिकस्कन्ध, छ तेम यावत्-'ते कदाच चार स्पर्शवाळो होय' त्यां सुधी कहे. जो ते एक वर्णवाळो होय तो कदाच काळो होय अने यावत्-कदाच धोळो पण होय ५. जो ते बे वर्णवाळो होय तो तेनो एक अंश कदाच काळो अने एक अंश लीलो होय १, कदाच तेनो एक अंश काळो अने बीजा बे अंशो लीला होय २; कदाच बे देशो काळा अने एक देश लीलो होय ३. कदाच एक अंश काळो अने एक अंश रातो होय १. अथवा कदाच तेनो एक देश काळो अने अनेक देशो राता होय २. कदाच अनेक देशो काळा अने एक देश रातो होय ३. ए प्रमाणे काळावर्णना पीळानी साथे पण त्रण भांगा करवा ३. तथा ए रीते ज काळा वर्णना धोळा वर्णनी साथे पण त्रण भांगा जाणषा ३. अथवा कदाच लीलो अने रातो होय. अहिं पण पूर्व प्रमाणे त्रण भांगा जाणवा ३. एम लीला वर्णना पीळानी साथे ३ अने धोळानी साथे त्रण त्रण भांगा करवा ३. कदाच रातो अने पीळो होय ३. ए प्रमाणे राता वर्णना धोळानी साथे पण त्रण भांगा करवा ३. कदाच पीळो अने धोळो होय ३. ए बधा मळीने दस द्विक संयोगना त्रीश भांगा थाय छे. हवे जो ते त्रिप्रदेशिकस्कंध त्रण वर्णवाळो होय तो. कदाच १ काळो, लीलो अने रातो, २ कदाच काळो, लीलो अने पीळो, ३ कदाच काळो, लीलो अने धोळो, कदाच ४ काळो, रातो अने पीळो, कदाच ५ काळो, रातो अने धोळो, कदाच ६ काळो, पीळो अने धोळो होय. अथवा कदाच ७ लीलो, रातो अने पीळो, कदाच ८ लीलो, रातो अने धोळो होय, अथवा कदाच ९ लीलो, पीळो अने धोळो होय, कदाच १० रातो, पीळो अने धोळो होय. ए प्रमाणे ए दस त्रिकसंयोगी भांगाओ जाणवा. हवे जो ते एक गंधवाळो होय तो कदाच १ सुगंधी होय अने कदाच २ दुर्गधी होय. जो बे गंधवाळो होय तो कदाच सुगंधी अने दुर्गंधी होय. अहिं एक वचन अने बहु वचनने आश्रयी त्रण भांगा जाणवा. (चोथो मांगो थतो नथी.) जेम वर्णने आश्रयी ४५ भांगा कह्या, तेम रसोने आश्रयीने पण ४५ भांगा जाणवा. जो ते बे स्पर्शवाळो होय तो कदाच शीत अने स्निग्ध होय-इत्यादि चार भांगा द्विप्रदेशिकस्कंधनी पेठे अहिं कहेवा ४. जो (त्रिपदेशिक स्कन्ध) त्रण स्पर्शवाळो होय तो सर्व
३. जुओ भग• खं० ४ श. १८ उ० ६ पृ. ६३ सू० ६.
+ त्रिप्रदेशिक स्कन्धा त्रण परमाणुओ होवा छतां तथाविध परिणामने लीधे ते एक प्रदेशावगाही, द्विप्रदेशावगाही अने त्रिप्रदेशावगाही होय छे. ज्यारे एक प्रदेशावगाही होय छे त्यारे तेमां अंशनी कल्पना थई शकती नथी. ज्यारे द्विप्रदेशावगाही होय छे त्यारे तेमां बे अंशनी अने त्रिप्रदेशावगाही होय त्यारे त्रण अंशनी कल्पना थई शके छे. ज्यारे त्रणे प्रदेशोनो काळा वगेरे एकवर्णरूपे परिणाम थाय छे त्यारे तेना पांच विकल्प थाय छे. ज्यारे बे वर्णरूपे परिणाम थाय छे त्यारे एक प्रदेश काळो अने बे प्रदेशो एक आकाशप्रदेशावगाही होवाथी एक अंश लीलो होय-एम द्विकर्मयोगी पहेलो भांगो थाय छे. अथवा एक प्रदेश काळो होय अने बे प्रदेशो भिन्न भिन्न बे आकाश प्रदेशावगाही होवाची बे अंश लीला होय एम विवक्षा थई शके छे. ए रीते बीजो भांगो जाणवो. एज प्रमाणे वे अंश काळा होय अने एक अंश लीलो होय. एम एक द्विकसंयोगना त्रण प्रण भांगा थता होवाथी दश द्विक संयोगना श्रीश भांगा थाय छे. गन्धना एकगन्धरूपे परिणाम थाय त्यारे बे भागा अने बे गन्धरूपे परिणाम थाय त्यारे एक अंश अने अनेक अंशनी कल्पनाथी पूर्वनी पेठे त्रण भांगा थाय छे. ज्यारे त्रिप्रदेशिक स्कन्धना बे स्पर्श होय छे त्यारे तेना द्विप्रदेशिकनी पेठे चार भांगा थाय छे. ज्यारे तेना त्रण स्पर्श होय छे त्यारे तेना त्रणे प्रदेशो शीत होवाथी सर्व शीत, एक प्रदेशात्मक एक देश निग्ध अने द्विप्रदेशात्मक एक देश रूक्ष होय-ए प्रथम भंग, एवी रीते सर्व शीत एक देश निग्ध अने अनेक देशो रूक्ष-ए बीजो भंग, सर्व शीत अनेक देश निग्ध अने एक देश रूक्ष-ए श्रीजो भंग-एम त्रण भांगा थाय. ए प्रमाणे सर्वोष्ण, सर्व स्निग्ध अने सर्वक्षनी साथे पण प्रण प्रण भांगा जाणवा.
द्विप्रदेशिक स्कंधना रसना द्विकसंयोगी १० भांगा पृ० १६ मानां टिप्पनमा कह्या छे, ते दरेक भांगाना नीचेना त्रण त्रण भागाओ करवाथी ३० भांगा थाय छे. त्रिभंगी-१-११-२,२-१. तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे-१ एक अंश तीखो अने एक अंश कडवो, २ एक अंश तीखो अने बे अंश कडवा, ३ बेअंश तीखा अने एक अंश कडवो. त्रिकसंयोगी दश भांगाओ नीचे प्रमाणे
१ तीखो, २ कडयो, ३ तुरो. १तीखो, २ कडवो, ४ खाटो. १ तीखो,
२ कडवो, ५ मीठो. .१ तीखो,
३ तूरो, ४ खाटो. १ तीखो, ३ तूरो,
५ मीठो. २ तीखो, ४ खाटो, ५ मीठो. २ कडवो, ३तरो, ४ खाटो. २ कडवो, तूरो, ५ मीठो. २ कडवो, ४ खाटो, ५ मीठो.
३ तूरो, ४' खाटो, ५ मीठो. आ प्रमाणे त्रिप्रदेशिक स्कन्धना द्विकसयोगी ३० भागा, त्रिकसंयोगी १. भांगा भने असंयोगी ५भांगा मेळवां कुल ४५ भांगा रसने माश्रयी जाणवा.
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