Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

View full book text
Previous | Next

Page 224
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २४.-उद्देशक १२. मगसरिसा नव गमगा भाणियवा ९ । नवरं थिबुगबिंदुसंठिए । ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उकोसेणं सत्त वाससहस्साई। एवं अणुबंधो वि । एवं तिसु वि गमएसु । ठिती संवेहो तइयछट्ठसत्तमट्ठमणवमगमेसु-भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाएं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, सेसेसु चउसु गमएसु जहन्नेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं असंखेजाई भवग्गहणाई। ततियगमए कालादेसेणं. जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमन्भहियाई, उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वाससयसहस्संएवतिय० । छट्टे गमए कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उकोसेणं अट्ठासीर्ति वाससहस्साई चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अम्भहियाई-पवतियं । सत्तमे गमए कालादेसेणं जहन्नेणं सत्त वाससहस्साई मंतोमहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वाससयसहस्सं-एवतियं० । अट्ठमे गमए कालादेसेणं जहन्नेणं सत्त वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं वाससहस्साई चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई-एवतियं० । णवमे गमए भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहन्नेणं एकूणतीसं वाससहस्साई, उक्कोसेणं सोलसुत्तरं वाससयसहस्सं-पवतियं० । एवं णवसु वि गमएसु आउकाइयठिई जाणियचा ९। १६. [प्र०] जइ तेउकाइएहिंतो उववज्जंति० ? [उ०] तेउक्काइयाण वि एस चेव वत्तष्धया । नवरं नवसु वि गमएसु तिन्नि लेस्साओ । तेउकाइया णं सुईकलावसंठिया । ठिई जाणियवा । तईयगमए कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुत्तममहियाई उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई बारसहिं राइंदिपहिं अभहियाई-पवतियं । एवं संवेहो उवद्युजिऊण भाणियो । १७. [प्र०] जइ वाउक्काइपहितो? [उ०] वाउकाइयाण वि एवं चेव णव गमगा जहेव तेउकाइयाणं । णवरं पडागासंठिया पन्नत्ता । संवेहो वाससहस्सेहिं काययो । तइयगमर कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमहत्तमन्भहियाई, उक्कोसेणं एग वाससयसहस्सं । एवं संवेदो उवजुंजिऊण माणियो। १८. [प्र०] जइ वणस्सइकाइएहितो उववजंति० १ [उ०] वणस्सइकाइयाणं आउकाइयगमगसरिसा णव गमगा भाणियवा । नवरं जाणासंठिया । सरीरोगाहणा-पढमएसु पच्छिल्लएसु य तिसु गमएसु जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, ए प्रमाणे पृथिवीकायिकनी पेठे अहि अप्काय संबंधे पण नवे गमको कहेवा. पण विशेष ए के अप्कायिकना शरीरन संस्थान स्तिबुकपाणीना परपोटाना आकारे छे. स्थिति जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट सात हजार वर्षनी होय छे. अनुबंध पण ए प्रमाणे जाणवो. ए रीते त्रणे गममा जाणवं. त्रीजा, छट्ठा, सातमा, आठमा अने नवमा गममां संवेध भवादेशथी जघन्य बे भव अने उत्कृष्ट आठ भव होय छे, तथा बाकीना चारे गममा जघन्य बे भव अने उत्कृष्ट असंख्याता भवो होय छे. त्रीजा गममा काळादेशथी जघन्य अन्तर्महर्त अधिक बावीश हजार वर्ष अने उत्कृष्टथी एक लाख अने सोळ हजार वर्ष-एटलो काळ यावत्-मनागमन करे. छठा गममा काळादेशथी जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बावीश हजार वर्ष अने उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक अठ्याशी हजार वर्ष-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे. सातमा गममां कालादेशथी जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष अने उत्कृष्ट एक लाखने सोळ हजार वर्ष-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे. आठमा गममा काळादेशथी जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष अने उत्कृष्ट अठ्याशी हजार वर्ष-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे. तथा नवमा गममां भवादेशथी जघन्य बे भव अने उत्कृष्ट आठ भवो, तथा काळादेशथी जघन्य ओगणत्रीश हजार वर्ष अने उत्कृष्ट एक लाख सोळ हजार वर्ष-एटलो काळ यावत्-गमनागमन करे. ए प्रमाणे नवे गमोमां अकायिकनी स्थिति जाणवी (९). वेषःकायिकनी १६. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते तेउकायथी ( अग्निकायिकथी) आवी उपजे तो तेउकायिकने पण एज वक्तव्यता कहेबी. पण विशेष पृथिवीकायिकमा ए के नवे गममा त्रण लेश्याओ कहेवी. तेउकायर्नु संस्थान सोयना समूहना आकारे होय छे. अने स्थिति (त्रण अहोरात्रनी) जाणबी. उत्पत्ति. त्रीजा गममा काळादेशथी जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बावीश हजार वर्ष अने उत्कृष्ट बार अहोरात्र (रात्रिदिवस ) अधिक अठ्याशी हजार वर्ष एटलो काळ-यावत्-गमनागमन करे. ए प्रमाणे संवैध ध्यान राखीने कहेवो (९). बाबकायिकनी पृथि- १७. जो तेओ वायुकायिकोथी आवी उत्पन्न थाय तो तेने तेजस्कायिकोनी पेठे नवे गमको कहेवा. पण विशेष ए के वायकावीकायिका यिकोना शरीरोनो आकार (संस्थान ) ध्वजाना आकारे होय छे. संवेध हजारो वर्षवडे करवो. त्रीजा गममां काळादेशथी जघन्य अन्तउत्पत्ति. र्मुहूर्त अधिक बावीश हजार वर्ष अने उत्कृष्ट एक लाख वर्ष-ए प्रमाणे संवेध विचारीने कहेवो. वनस्पतिकायिकोनी १८. प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ वनस्पतिकायिकोथी आवी उत्पन्न थाय तो-इत्यादि वनस्पतिकायिकना नवे गमको अष्कापृथिवीकायिका यिकनी पेठे कहेवा. पण विशेष ए के वनस्पलिना शरीरो अनेक प्रकारना संस्थान-आकृतिवाळा होय छे. पहेला अने छेल्ला त्रणे - उत्पत्ति. गमकोमा शरीरनुं प्रमाण जघन्य अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटलं अने उत्कृष्ट एक हजार योजन करता अधिक होय छे. मध्यमना त्रणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442