Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 291
________________ २३३ शतक २५.-उद्देशक ४. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ११७. [प्र०] दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स देसेयस्स केवतियं कालं अंतर होइ ? [उ०] सट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एवं समयं, उकोसेणं असंखेज कालं; परट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एवं समय, उक्कोसेणं अणंतं कालं । ११८. [प्र०] सव्वेयस्स केवतियं कालं० १ [उ०] एवं चेव जहा देसेयस्स। ११९. प्र०निरेयस्स केवतियं.? [उ.] सटाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजहभाग, परटाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एकं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं । एवं जाव-अणंतपएसियस्स। १२०. [प्र०] परमाणुपोग्गलाणं भंते ! सवेयाणं केवतियं कालं अंतरं होइ ? [उ०] नत्थि अंतरं । १२१. [प्र०] निरेयाणं केवतियं० ? [उ०] नत्थि अंतरं । १२२. [प्र०] दुपएसियाणं भंते ! खंधाणं देसेयाणं केवतियं कालं० १ [उ०] नत्थि अंतरं । १२३. [प्र०] सव्वेयाणं केवतियं कालं० १ [उ०] नत्थि अंतरं । १२४. [प्र०] निरेयाणं केवतियं कालं.१ [उ० नत्थि अंतरं । एवं जाव-अणंतपएसियाणं । १२५. प्रि०] एएसिणं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं सोयाणं निरेयाण य कयरे कयरे जाव-विसेसाहिया वा ? [उ.] गोयमा! सम्वत्थोवा परमाणुपोग्गला सवेया, निरेया असंखेजगुणा । १२६. [प्र०] एएसि णं भंते ! दुपएसियाणं खंधाणं देसेयाणं, सवेयाणं, निरेयाण य कयरे कयरे जाव-विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा ! सवत्थोवा दुपएसिया खंधा सन्वेया, देसेया असंखेजगुणा, निरेया असंखेजगुणा । एवं आवअसंखेजपएसियाणं खंधाणं । ११७. [प्र०] हे भगवन् ! अंशतः सकंप द्विप्रदेशिक स्कंधने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! स्वस्थाननी अपे देशथी सकंप : दिप्रदेशिक स्कन्धर्नु क्षाए जघन्य एक समयनु, अने उत्कृष्ट असंख्यात काळनुं अंतर होय; तथा परस्थाननी अपेक्षाए जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट अनंत अंतर. काळनुं अंतर होय. ११८. [प्र०] हे भगवन् ! सर्व अंशे सकंप द्विप्रदेशिक स्कंधने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! देशथी-अमुक सर्वसकंप द्विप्रदेशिक स्कन्धन अंतर. अंशे सकंप द्विप्रदेशिक स्कंधनी पेठे तेनुं अंतर जाणवू. अन्तर. ११९. [प्र०] हे भगवन् ! निष्कंप द्विप्रदेशिक स्कंधने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! स्वस्थाननी अपेक्षाए निष्कंप दिप्रदेशिकर्नु जघन्य एक समयनुं अने उत्कृष्ट आवलिकाना असंख्यातमा भागर्नु; तथा परस्थाननी अपेक्षाए जघन्य एक समयनुं अने उत्कृष्ट अनंत काळजें अंतर होय. ए प्रमाणे यावत्-अनंतप्रदेशिक स्कंध सुधी जाणवं. १२०. [प्र०] हे भगवन् ! सर्वाशे सकंप परमाणुपुद्गलोने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! तेओने अंतर नथी. सकंप परमाणुओर्नु १२१. [प्र०] हे भगवन् ! निष्कंप परमाणुपुद्गलोने केटला काळजें अंतर होय ? [उ०] हे गौतम ! तेओनुं अंतर नथी. अकंप परमाणुओर्नु अंतर. . १२२. [प्र०] हे भगवन् ! अमुक अंशे सकंप द्विप्रदेशिक स्कंधोने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! तेओने अंशतः सफंप दिनअंतर नथी. देशिक स्कन्धोर्नु अंतर. १२३. [१०] हे भगवन् ! सर्वाशे सकंप द्विप्रदेशिक स्कंधोने केटला काळनुं अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! तेओने सर्वतः सकंप दिप्रदे शिक स्कन्धोर्नु अंतर नथी. अंतर. १२४. [प्र०] हे भगवन् ! निष्कंप द्विप्रदेशिक स्कंधोने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! तेओने अंतर नथी, निष्कंप दिप्रदेशिक ए प्रमाणे यावत्-अनंत प्रदेशवाळा स्कंधो सुची समजवु. स्कन्ध अन्तर. १२५. [प्र०] हे भगवन् ! सकंप अने निष्कंप ए परमाणुपुद्गलोमां कया परमाणुपुद्गलो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक होय! सकंप अने निष्कंप [उ.०] हे गौतम | सकंप परमाणुपुद्गलो सौथी थोडा छे, अने तेथी निष्कंप परमाणुपुद्गलो असंख्यातगुणां छे. परमाणुओर्नु अल्प बहुत्व. १२६. [प्र०] हे भगवन् ! ९ अंशतः सकंप, सर्वांश सकंप अने अकंप द्विप्रदेशिक स्कन्धोमां कया स्कन्धो कोनाथी यावत्- सर्व.प अने निष्कंप विशेषाधिक छे? [उ०] हे गौतम ! सर्वाश सकंप द्विप्रदेशिक स्कंधो सौथी थोडा छे, तेथी अंशतः सकंप द्विप्रदेशिक स्कंधो असंख्यात ' अल्पबदुत्व. गुणा छे अने तेथी अकंप द्विप्रदेशिक स्कंधो असंख्यातगुणा छे. ए प्रमाणे यावत्-असंख्यातप्रदेशिक स्कंधो सुधी जाणवू. ३० भ० सू० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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