Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक २५.-उद्देशक १. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१९९ ३.प्र.ग पतेसिणं भंते ! चोइसविहाणं संसारसमावनगाणं जीवाणं जहन्नुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे कयरे जावविसेसाहिया वा १ [उ०] गोयमा! सवत्थोवे सुहमस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए १, बादरस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे २, बेंदियस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेनगुणे ३, एवं तेइंदियस्स ४, एवं चरिंदियस्स ५, असनिस्स पंचिंदियस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ६, सन्निस्स पंचिंदियस्स अपजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ७, सुहुमस्स पजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ८, बादरस्स पजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ९, सुहुमस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १०, बादरस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे ११, सुटुमस्स पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १२, बादरस्स पजतगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १३, बेंदियस्स पजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे १४, एवं तेंदियस्स० १५, एवं जाव-सन्निपंचिंदियस्स पजत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे १८, बेंदियस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे १९, एवं तेंदियस्स वि २०, एवं चउरिदियस्स वि २१, एवं जावसन्निपंचिंदियस्स अपजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २३, बेदियस्स पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २४, एवं तेइंदियस्स वि पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे २५, चउरिदियस्स पजत्तगस्स उकोसए जोए असंखेजगुणे २६, असनिपंचिदियस्स पजत्तगस्स उक्कोसप जोए असंखेजगुणे २७, पवं सन्निपंचिदियस्स पजत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेजगुणे२८॥
३. [प्र०] हे भगवन् ! ए चौद प्रकारना संसारी जीवोना जघन्य अने उत्कृष्ट योगने *आश्रयी कया जीवो कोनाथी यावत्- योग मालपशुत्व. विशेषाधिक छे! उ०] हे गौतम | सूक्ष्म अपर्याप्त जीवनो जघन्य योग सौथी थोडो छे १. तेथी बादर अपर्याप्त जीवनो जघन्य योग असंख्य गुण छे २. तेथी बेइन्द्रिय अपर्याप्तनो जघन्य योग असंख्यातगुण छे ३. तेथी तेइन्द्रिय अपर्याप्तनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे. तेथी चउरिन्द्रिय अपर्याप्तनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे ५. तेथी अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रियनो जघन्य योग असंख्यातगुण छे ६. तेथी अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रियनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे ७. तेथी पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे ८. तेथी पर्याप्त बादर एकेन्द्रियनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे ९. तेथी अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे १०. तेथी अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे. ११. तेथी पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे १२. तेथी पर्याप्त बादर एकेन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे १३. तेथी पर्याप्त बेइन्द्रियनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे १४. ए प्रमाणे पर्याप्त तेइन्द्रिय, यावत्-पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रियनो जघन्य योग ( उत्तरोत्तर) असंख्यात गुण छे १५-१८. तेथी अपर्याप्त बेइन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे १९. ए प्रमाणे अपर्याप्त तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, यावत्-संज्ञी पंचेन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे २०-२३. तेथी पर्याप्त बेइन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे २४. ए प्रमाणे अपर्याप्त तेइन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे २५. तेथी पर्याप्त चउरिन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे २६. तेथी पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे २७. अने तेथी पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे २८.
* आत्मप्रदेशना परिस्पन्दन के कंपनने योग कहे छे. ते योग 'वीर्यान्तरायकर्मना क्षयोपशमादिनी विचित्रताथी अनेकविध होय छे. कोइ जीवने श्राश्रयी अल्प योग होय छे अने तेज बीजा जीवनी अपेक्षाए उत्कृष्ट होय छे. तेना चौद जीवस्थानकोने आश्रयी प्रत्येकना जघन्य अने उत्कृष्ट मेद गणता अव्यावीश प्रकार थाय छे. आ सूत्रमा तेना अल्पबहुवर्नु कथन छे. तेमां सूक्ष्म अपर्याप्त एकेन्द्रियनो जघन्य योग सौथी अल्प होय छे. कारण के तेओनुं शरीर सूक्ष्म होवाथी अने अपर्याप्त होवाने लीधे अपूर्ण होवाथी बीजा बधा योगो करतां तेनो योग सौथी थोडो छे अने ते कार्मणशरीर द्वारा औदारिक पुद्गलो ग्रहण करवाना प्रथम समये होय छे अने पछी समये समये योगनी धृद्धि थाय छे अने ते उत्कृष्ट योगपर्यन्त वधे छे.
जघन्य अने उत्कृष्ट योगर्नु अल्पबहुत्व.
सूक्ष्म एके- सूक्ष्म एके-बादर एके-बादर एके- बेइन्द्रिय | बेइन्द्रिय | तेइन्द्रिय | तेइन्द्रिय |चउरिन्द्रिय चउरिन्द्रिय असंज्ञी | असंज्ञी संज्ञी पंचे- संज्ञी न्द्रिय अप- न्द्रिय न्द्रिय अप- न्द्रिय | अपर्याप्त | पर्याप्त | अपर्याप्त | पर्याप्त | अपर्याप्त | पर्याप्त पंचेन्द्रिय | पंचेन्द्रिय | न्द्रिय पंचेन्द्रिय र्याप्त । पर्याप्त । र्याप्त । पर्याप्त
अपर्याप्त / पर्याप्त | अपर्याप्त पर्याप्त जघन्य | जघन्य जघन्य जघन्य जघन्य जघन्य जघन्य जघन्य | जघन्य जघन्य जघन्य | जघन्य जघन्य जघन्य
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उत्कृष्ट । उत्कृष्ट १.
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