Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
View full book text
________________
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १८.-उद्देशक १०. १२. [प्र०] से किं तं नोइंदियजवणिजे? [उ.] नोइंदियजवणिजे जं में कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिन्ना नो उदीरेंति, सेत्तं नोइंदियजवणिजे, सेत्तं जवणिजे ।
१३. [प्र०] किं ते भंते ! अधाबाहं ? [उ०] सोमिला! जं मे वातिय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइया विधिहा रोगायंका सरीरगया दोसा उवसंता नो उदीरेंति । सेत्तं अश्वाबाहं ।
१४.०] किं ते भंते ! फासुयविहारं? [उ०] सोमिला! जन्नं आरामेसु उजाणेसु देवकुलेसु सभासु पवासु इत्थीपसु-पंडगविवज्जियासु वसहीसु फासु-एसणिजं पीढ-फलग-सेजा-संथारगं उवसंपजित्ता णं विहरामि, सेत्तं फासुयविहारं ।
१५. [प्र०] सरिसवा ते भंते ! किं भक्खेया, अभक्खेया ? [उ०] सोमिला! सरिसवा मे] भक्खेया वि अभक्खेया वि।[प्र०] से केणटेणं भंते एवं वुच्चइ-'सरिसवा मे भक्खेया वि अभक्खेया वि? [30] से नूणं ते सोमिला! बंभन्नएसु नएसु दुविहा सरिसवा पन्नत्ता, तंजहा-मित्तसरिसवा य धन्नसरिसवा य । तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवा ते तिविहा पन्नत्ता, तंजहा-सहजायया, सहवडियया, सहपंसुकीलियया, ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया। तत्थ णं जे ते धन्नसरिसवा ते दुविहा पनत्ता, तंजहा-सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य, तत्थ णं जे ते असत्थपरिणया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभवखेया। तत्थ णं जे ते सत्थपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य । तत्थ णं जे ते अणेसणिजा ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते एसणिज्जा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-जाइया य अजाइया य । तत्थ गंजे ते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते जातिया ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-लद्धा य अलद्धा य । तत्थ णं जे ते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते लद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं मक्खेया, से तेणटेणं सोमिला! एवं बुच्चइ-जाव-'अभक्खया वि'।
१६. [प्र०] मासा ते भंते ! किं भक्खेया, अभक्खेया ? [उ.] सोमिला ! मासा मे भक्नेया वि अभक्नेया वि।
नोइन्द्रिययापनीय.
अन्यायाध.
प्रासुकविद्वार.
सरिसव भक्ष्य के
अभक्ष्य.
१२. [प्र०] हे भगवन् ! नोइन्द्रिययापनीय ए शु? [उ०] हे सोमिल ! जे मारा क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चारे कषायो व्युच्छिन्न थयेला छे अने उदयमा आवता नथी ते नोइंद्रिययापनीय छे. ए प्रमाणे यापनीय का.
१३. [प्र०] हे भगवन् ! तमने अव्याबाध ए शुं छे ? [उ०] हे सोमिल ! जे मारा वात, पित्त, कफ भने संनिपातजन्य अनेक प्रकारना शरीरसंबंधी दोषो-रोगातंको उपशांत थया छे अने उदयमा आवता नथी ते अव्याबाध छे..
१४. [प्र०] हे भगवन् ! तमारे प्रासुकविहार ए शुं छे ! [उ०] हे सोमिल ! आरामो, उद्यानो, देवकुलो, सभाओ, परबो तथा स्त्री, पशु अने नपुंसकरहित वसतिओमां निर्दोष अने एषणीय पीठ, फलक, शय्या अने संथाराने प्राप्त करीने हुँ विहाँ छु ते प्रामुक विहार छे.
१५. [प्र०] हे भगवन् ! सरिसवो आपने भक्ष्य छे के अभक्ष्य छे! [उ०] हे सोमिल ! "सरिसव मारे भक्ष्य पण छे अने अभक्ष्य पण छे. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के 'सरिसव भक्ष्य पण छे अने अभक्ष्य पण छे ?' [उ०] हे सोमिल ! तारा ब्राह्मणना नयोमां-शास्त्रोमा बे प्रकारना सरिसव कह्या छे, ते आ प्रमाणे-मित्र सरिसव-समानवयस्क अने धान्यसरिसव. तेमां जे मित्रसरिसव छे ते त्रण प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-सहजात-साथे जन्मेला, साथे उछरेला अने साथे धूळमा रमेला. ते त्रणे प्रकारना सरिसवा समानवयस्क-मित्रो श्रमण निर्ग्रन्थने अभक्ष्य छे. अने जे धान्यसरिसव छे ते बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-शस्त्रपरिणत अने अशस्त्रपरिणत. तेमा जे अशस्त्रपरिणत-अग्नयादि शस्त्रथी निर्जीव थयेला नथी ते श्रमण निर्ग्रन्थोने अभक्ष्य छे. अने शस्त्रपरिणत (अग्नि आदिधी निर्जीव थयेला) छे ते बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-एषणीय-इच्छवा लायक, निर्दोष अने अनेषणीय-नहि इच्छवा लायक सदोष. तेमां जे अनेषणीय छे ते श्रमण निग्रंथोने अभक्ष्य छे. वळी जे एषणीय सरिसवो छे ते बे प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणेयाचित-मागेला अने अयाचित-नहि मागेला. तेमां जे अयाचित सरिसव छे, ते श्रमण निर्ग्रन्थोने अभक्ष्य छे, अने जे याचित सरिसव छे, ते बे प्रकारना छे, ते आ प्रमाणे-मळेला अने नहि मळेला. तेमा जे नहि मळेला छे ते श्रमण निम्रन्थोने अभक्ष्य छे, अने जे मळेला. छे ते श्रमण निर्गन्थोने भक्ष्य छे. माटे हे सोमिल 1 ते कारणथी में का छे के सरिसव मारे भक्ष्य पण छे अने अभक्ष्य पण छे.'
१६. [प्र०] हे भगवन् ! 'मास तमारे भक्ष्य छे के अभक्ष्य छे ! [उ०] हे सोमिल ! मास मारे भक्ष्य पण छे भने अभक्ष्य पण
मास भक्ष्य के बमक्ष्या।
'सहजायए सहववियए सहपंसुकीलितए' इति क पुस्तके ५०। १५ * महिं 'सरिसव' विष्ट प्राकृत शब्द छे, तेनो एक अर्थ सर्षप एटले सरसव थाय छे अने बीजो अर्थ सदृशवयाः-मित्र थाय छे. १६ अहिं मास शन्द विष्ट छ भने एनो एक अर्थ माष-अडद थाय छे भने बीजो अर्थ मास-महिनो थाय छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.