Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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एणवीस
सयं ।
१ लेस्सा व २ गम्भ १ पुडवी ४ महासवा ५ चरम ६ दीव ७ भवणा य ।
८ निवत्ति ९ करण १० वणचरसुरा य एगूणवीसइमे ॥
पढमो उद्देसो ।
१.[प्र० ] रायगिद्दे जाय एवं पयासी कति नं भंते! लेस्साओ पद्मत्ताओं [४०] गोयमा उल्लेसाओ पाओ, तंजा एवं जहा पनवणार चडत्थो लेसुहेसमो भाणियो निरवसेसो 'सेवं मंते । सेयं भंते! ति ।
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गूणवीस मे स पढो उद्देसो समत्तो । ओगणीशमं शतक.
[ उदेशक संग्रह ] लेया विषयक प्रथम उदेशक, गर्भसंबंधे बीजो उद्देशक, पृथिवीकायिकादिनी वक्तम्यता संबंचे तृतीय उदेशक, 'नारको महासचचाळा अने महाकियाचाळा होय' इत्यादि अर्थ संबंचे चोथो उद्देशक, 'चरम अल्पस्थितियाय्य नारको करतां परम-अधिक स्थितिवाळा नारको महाकर्मवाळा होय' इत्यादि वक्तव्यता संबंधे पांचमो उद्देशक, द्वीपादिक संबंधे छट्ठो उद्देशक, भवनादि विषे सातमो उदेशक, निर्वृति - एकेन्द्रियादि जीव वगैरेनी उत्पत्ति संबंधे आठमो उद्देशक, द्रव्यादि करण संबंधे नवमो उद्देशक, अने वनचरपुरयानव्यन्तर देव संबंधे दशमो उद्देशक. ए प्रमाणे आ ओगणीशमा शतकमां दश उद्देशको कहेवाना छे.
प्रथम उद्देशक.
१. [प्र०] राजगृह नगरमां यावत् - भगवान् ! गौतम आ प्रमाणे बोल्या के हे भगवन् ! लेश्याओ केटली कही छे ? [उ०] हे गौतम ! छश्याओ कही छे, ते आ प्रमाणे- इत्यादि प्रज्ञापना सूत्रनो चोथो लिश्या उद्देशक अहिं समग्र कहेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'.
ओगणीशमा शतकमा प्रथम उदेशक समाप्त.
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१ कृष्णादि द्रव्यना संबन्धथी आत्माना परिणामविशेष ते लेश्या. ज्यां सुधी योग होय छे त्यां सुधी लेश्या होय छे अने योगना अभावे लेश्या होती नदी भाटे योग सामान नियत से होवाथी योगनिमिया के एम आणी शकान छे. दवे सेवा मान्यरूप के योगनिमित्त कर्म द्रव्यरूप छे ते विचारणीय छे. जो योगनिमित्तक कर्मद्रव्यरूप मानीए तो ते घातीकर्म द्रव्यरूप छे के अघाती कर्मद्रव्यरूप छे ए वे प्रश्न उत्पन्न थाय छे. लेश्या घाती कर्मद्रव्यरूप तो नथी, कारण के सयोगी केवलीने घाती कर्म नहि होवा छतां लेश्या होय छे. ते अघाती कर्मरूप छे एम पण नहि कही शकाय, केम के अयोगी मलीने अपाती कर्म होवा छतां पण छेदया नयी, माटे या मोगान्तर्गत इयरूप के एम मान कोई अर्थात् मन, वचन भने शरीरमा अन्तर्गत शुभाशुभ परिणामना कारणरूप कृष्णादि वर्णना पुद्रलो ते लेक्ष्या. ते लेश्या ज्यां सुधी कषायो छे त्यां सुधी तेना उदयने वधारे छे. कारण के योगान्तर्गत पुन - सोनुं कषायोदय बधारवाई सामर्थ्य ओम के पाना प्रकोपथी कोपनी वृद्धि भाग. ते शिवाय बीजा बाह्य द्रव्यो पण कर्मना उदय भने क्षयोपशमादिना कारणभूत थाय छे, जेमके ब्राह्मी ज्ञानावरणक्षयोपशमनुं अने मद्यपान ज्ञानावरणोदयनुं निमित्त थाय छे, तो पछी यो द्रव्योनुं तेनुं सामर्थ्य होय तेमां कशो विरोध नथी. ते लेश्याना छ प्रकार छे. जुओ प्रज्ञापना टीका पद १७ पृ० ३३०.
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श्यादिम्यो प्यारे नीलश्मादि इन्होने मळे खारे नादिना भावरूपे तथा तेन वर्णादिरूपे परिणाम छे. जैम दूधम छाश नांखवाथी के वने रंगवाथी दूध अने वस्त्रनो वर्णादि परिणाम थाय छे. आवो लेश्यापरिणाम मात्र तिर्यंच अने मनुष्यनी लेश्याने आश्रयी जाणवो. देव अने नारकोने सभवपर्यन्त रोमा अवस्थित होवाची अन्य दवा इन्दोनो संबन्ध तो सर्वथा तेो परिणाम तो नथी, अर्थात् ते यासा अन्य लेश्यारूपे थती नथी पण पोताना मूळ वर्णादि खभावने छोड्या सिवाय अन्य लेश्यानी छाया मात्र धारण करे छे. जेम वैडुर्य मणिने लाल सूत्रथी परोववामां आव्यो होय तो ते पोताना नील वर्णने नहि छोड़ता लाल छाया धारण करे छे, तेम कृष्णादि द्रव्यो अन्य लेश्या द्रव्यना संबन्धमां आवे छे त्यारे पोतानो मूळ स्वभाव के वर्णादि नहि छोडतां तेनी छाया-आकार मात्र धारण करे छे. जुओ प्रज्ञा० पद १७५० ३५८-३६८०
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लेपया
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