Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १७.-उद्देशक १. ५. [प्र०] पुरिसे णं भंते ! तालमारुहइ, तालमारुहित्ता तालाओ तालफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए। [10] गोयमा! जावं च णं से पुरिसे तालमारुहर, तालमारुहित्ता तालाओ तालफलं पचालेइ वा पवाडेइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव-पंचहि किरियाहिं पुढे जेसि पिणं सरीरोहितो ताले निवत्तिए, तालफले निष्वत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव-पंचहि किरियाहि पुट्ठा।
६.प्र०] अहे णं भंते ! से तालफले अप्पणो गरुयत्ताए, जाव-पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव-जीवियाओ वव. रोवेति तए णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए ? [उ०] गोयमा! जावं च णं से पुरिसे तलप्फले अप्पणो गरुयत्ताए जाव-जीवियाओ ववरोवेति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव-पंचहि किरियाहि पुढे जेसि पि णं जीवाणं सरीरोहितो तले निष्पत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव-चउहि किरियाहि पुट्टा, जेसि पिणं जीवाणं सरीरोहिंतो तलफले निवत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव-पंचहि किरियाहिं पुट्टा; जेविय से जीवा अहे वीससाए पञ्चोवयमाणस्स उवग्गहे वति ते विय णं जीवा काइयाए जाव-पंचहि किरियाहि पुट्ठा।
७. [प्र०] पुरिसे णं भंते ! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा, पवाडेमाणे वा कतिकिरिए ? [उ०] गोयमा! जावं च णं से पुरिसे रुक्खस्स मूलं पचालेइ वा, पवाडेइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव-पंचहि किरियाहिं पुढे; जेसि पि य 'गं जीवाणं सरीरोहितो मुले निवत्तिए, जाव-बीए निवत्तिए, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव-पंचहि किरियाहि पुट्ठा ।
८. [प्र०] अहे णं भंते! से मूले अप्पणो गरुययाए जाव-जीवियाओ ववरोवेह तओ णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए ? [उ०] गोयमा! जावं च णं से मूले अप्पणो जाव-ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव-चउहि किरियादि पुढे जेसि पि य णं जीवाणं सरीरोहितो कंदे निधत्तिए, जाव-बीए निवत्तिए ते वि णं जीवा काइयाए जाव-चउहि पुढा,
कायिकी आदि कियाभो.
५. [प्र०] हे भगवन् ! कोई पुरुष ताडना झाड उपर चढे, अने ते ताडना झाड उपर चढी त्यां रहेला ताडना फळने हलावे के नीचे पाडे तो ते पुरुषने केटली क्रियाओ लागे ? [उ०] हे गौतम ! *जेटलामा पुरुष ताड उपर चढी ताडना फळने हलावे के नीचे पाडे, तेटलामा ते पुरुषने कायिकी वगेरे पांच क्रियाओ लागे. जे जीवोना शरीरद्वारा ताड वृक्ष तथा ताडनुं फळ उत्पन्न थयु छे ते जीवोने पण कायिकी वगेरे पांच क्रियाओ लागे.
६. [प्र०] हे भगवन् ! [ ते पुरुषे हलाव्या के तोड्या पछी ] ते ताडनुं फळ पोताना भारने लीधे यावत्-नीचे पडे, अने नीचे पडता ते ताडना फळद्वारा जे जीवो हणाय, यावत्-जीवितथी जूदा थाय, तो तेथी ते फळ तोडनार पुरुषने केटली क्रियाओ लागे ? [उ०] हे गौतम ! जेटलामां ते पुरुष ताडना फळने तोडे अने पछी ते पळ पोताना भारने लीधे नीचे पडता जीवोने यावत्-जीवितथी जूदा करे तो तेटलामां ( तोडनार ) पुरुषने कायिकी वगेरे चार क्रियाओ लागे, जे जीवोना शरीरथी ताडनु वृक्ष नीपज्युं छे ते जीवोने यावत् चार क्रियाओ लागे, अने जे जीवोना शरीरथी ताडनुं फळ नीपज्युं छे ते जीवोने तो कायिकी यावत् पांचे क्रियाओ लागे. तथा जे जीवो खाभाविक रीते नीचे पडता ताडना फळना उपकारक थाय छे ते जीवोने पण कायिकी यावत्-पांचे क्रियाओ लागे.
७. [प्र०] हे भगवन् ! कोइ पुरुष झाडना मूळने हलावे के नीचे पाडे तो ते पुरुषने केटली क्रिया लागे ! [उ०] हे गौतम ! झाडना मूळने हलावनार के नीचे पाडनार पुरुषने कायिकी वगेरे पांचे क्रियाओ लागे, अने जे जीवोना शरीरथी मूळ यावत् बीज नीपज्यो छे ते जीवोने पण कायिकी वगेरे पांचे क्रियाओ लागे.
वृक्षतुं मूळ चलाव नारने क्रिया.
प्रक्षना मूळने क्रिया.
८. [प्र०] हे भगवन् ! त्यार पछी ते मूळ पोताना भारने लीधे नीचे पडे अने बीजा जीवोनु घातक थाय तो तेथी मूळने हला. वनार के तोडनार ते पुरुषने केटली क्रिया लागे ! [उ०] हे गौतम | जेटलामा ते मूळ पोताना भारने लीधे नीचे पडे अने बीजी जीवोन घातक थाय तेटलामा ते पुरुषने कायिकी वगेरे । चार क्रियाओ लागे. तथा जे जीवोना शरीरथी कंद नीपज्यो छे, यावत्-बीज
५* कोई पुरुष ताडना झाडने हलावे के तेना फळने नीचे पाडे तो ते ताडना फळनी अने ताडना फळने आश्रयी रहेला जीवोनी हिंसा करे छे, जे हिंसा रूप क्रिया करे छे ते कायिकी आदि चार क्रियाओ पण अवश्य करे छे, माटे ते पुरुषने कायिकी वगेरे पांच क्रियाओ लागे छे १.जेओ ताड अने फळना जीवो छ तेने पण पूर्वोक्त पांच क्रियाओ लागे छे, केमके ते बीजा जीवोने स्पर्शादि वडे साक्षात् हणे छे २. ज्यारे पुरुष ताडना फळने हलावे के तोडे, पछी ते फळ पोताना भारथी नीचे पडे अने ते द्वारा अन्य जीवोनी हिंसा थाय त्यारे ते पुरुषने चार क्रियाओ लागे, कारण के अहिं फळना पडवाथी जे हिंसा थाय छे तेमां पुरुष साक्षात् कारण नथी, पण परंपरा कारण छे, माटे तेने प्राणातिपात सिवाय बीजी चार क्रियाओ लागे ३. ए प्रमाणे ताडना झाडने पण चार क्रिया लागे, अने फळना जीवोने पांच क्रिया लागे, कारण के ते वधनुं साक्षात् कारण छ ५. नीचे पडता ताडना फळना जे उपकारक जीवो छे तेने पण पूर्वोक्त युक्तिथी पांच कियालो लागे ६. ए प्रमाणे फळद्वारा छ क्रिया स्थानो कपा. ए रीते मूळ, कन्द, स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पांदढा, पुष्प, फळ अने बीजने विषे पूर्वोक्त छ क्रियास्थानो समजवा. विशेष माटे बाण फेंकनार पुरुष संबन्धे जुओ भग० खं० २.५ उ.पृ. २०६-२.७.
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