Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
View full book text
________________
शतक १७.-उद्देशक २.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
३३
विरय० जाव-पावकम्मे धम्मे ठिए, धम्म चेव उवसंपजित्ता णं विहरति; असंजय० जाव-पावकम्मे अधम्मे ठिते, अधर्म चेव उवसंपजित्ता णं विहरति; संजयासंजए धम्माधम्मे ठिए, धम्माधम्म उवसंपजित्ता णं विहरति, से तेणटेणं जाव-ठिए ।
२. [प्र०] जीवा णं भंते! किं धम्मे ठिया, अधम्मे ठिया, धम्माधम्मे ठिया ? [उ०] गोयमा ! जीवा धम्मे वि ठिया, अधम्मे वि ठिया, धम्माधम्मे वि ठिया।
३. [प्र०] नेरतिआणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! णेरइया नो धम्मे ठिता, अधम्मे ठिता, णो धम्माधम्मे ठिता । एवं जाव-चरिंदियाणं ।
___४. [प्र०] पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो धम्मे ठिया, अधम्मे ठिया, धम्माधम्में वि ठिया । मणुस्सा जहा जीवा । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरतिया।
५. [प्र०] अन्नउत्थिया णं भंते! एवं आइक्खंति, जाव-परूवेति-एवं खलु समणा पंडिया, समणोवासया बालपंडिया, जस्स गं एगपाणाए वि दंडे अणिक्खित्ते से णं 'गंतवाले' त्ति वत्तवं सिया, से कहमेयं भंते! एवं उ०] गोयमा जणं ते अन्नउत्थिया एवं आइपखंति, जाव-वत्त, सिया; जे ते एवं आहंसु मिच्छं ते एवं आहंसु । अहं पुण गोयमा! एवं आइक्खामि, जाव-परूवेमि-'एवं खलु समणा पंडिया, समणोवासगा बालपंडिया, जस्स णं एगपाणाए वि दंडे निषिखत्ते से णं नो 'एगंतबाले' त्ति वत्तवं सिया।
६. [प्र०] जीवा णं भंते! किं बाला, पंडिया, बालपंडिया? [उ.] गोयमा! बाला वि, पंडिया वि, बालपंडिया वि । ७. [प्र०] नेरइयाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! नेरतिया बाला, नो पंडिया, नो बालपंडिया । एवं जाव-चरिदियाणं ।
पापकर्मनुं प्रत्याख्यान कयुं नथी एवो जीव अधर्ममां स्थित होय-एटले अधर्मनो आश्रय करी विहरे, तथा संयतासंयत जीव धर्माधर्मा स्थित होय-एटले जीव धर्माधर्मनो-देशविरतिनो आश्रय करी विहरे. ते माटे हे गौतम ! यावत्-‘स्थित होय'.
२. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो धर्ममां स्थित होय, अधर्ममां स्थित होय के धर्माधर्मां स्थित होय ! [उ०] हे गौतम ! जीवो धर्ममा पण स्थित होय, अथर्ममा पण स्थित होय अने धर्माधर्ममां पण स्थित होय _____३. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे नैरयिक संबन्धे पृच्छा करवी. [उ०] हे गौतम! नैरयिको धर्ममां स्थित न होय, तेम धर्माधर्ममा . दंडकना क्रमथी स्थित न होय, पण अधर्ममां स्थित होय. ए प्रमाणे यावत्-चउरिन्द्रिय जीवो सुधी जाणवू.
नैरयिकादि संवन्धे
पूर्वोक्त प्रश्न ४. [प्र०] पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवो संबन्धे पृच्छा. [उ०] हे गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यच जीवो धर्ममां स्थित नथी, पण तेओ अधर्मा अने धर्माधर्ममां स्थित छे. मनुष्योने विषे सामान्य जीवोनी पेठे वक्तव्यता कहेवी. वानव्यंतरो, ज्योतिषिको अने वैमानिको विषेनी वक्तव्यता नैरयिकोनी पेठे कहेवी.
५. [प्र०] हे भगवन् ! अन्यतीथिको एम कहे छे, यावत् एम प्ररूपे छे के 'श्रमणो पंडित कहेवाय छे अने श्रमणोपासको बाल- अन्यतीथिंको. पंडित कहेवाय छे, पण *जे जीवने एक पण जीवना वधनी अविरति छे ते जीव 'एकांत बाल' कहेवाय, तो हे भगवन् ! आ (अन्यती- बा
वालपंदित भने
पमा अन्यता- बाल संबन्धे तेओर्नु थिकोर्नु कथन ) सत्य केम होय ! [उ०] हे गौतम ! जे अन्यतीर्थिको आ प्रमाणे कहे छे के यावत्-'एकान्त बाल' कहेवाय, परन्तु जे- मन्तव्य.
ओए एम कर्दा छे तेओए मिथ्या-असत्य कयुं छे, हे गौतम ! हुं तो आ प्रमाणे कहुं छु-यावत् प्ररूपुं छु के-ए प्रमाणे खरेखर श्रमणो पंडित छे अने श्रमणोपासको बालपंडित छे, पण जे जीवे एक पण प्राणिना वधनी विरति करी छे ते जीव एकांतबाल' न कहेवाय. [ परन्तु 'बालपंडित' कहेवाय. ]
६. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो बाल-विरतिरहित छे, पंडित-सर्वविरतिवाळा छे के बालपंडित-देशविरति युक्त छे ! [उ०] हे पात, बालप
अनेपाल, गौतम ! जीवो बाल पण छे, पंडित पण छे अने बालपंडित पण छे. ७. [प्र०] नैरयिको संबन्धे ए प्रमाणे प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! नैरयिको बाल छे, पण पंडित नथी, तेम बालपंडित पण नैरयिकादि दक
कना क्रमपी प्रश्न. मथी. ए प्रमाणे दंडकना क्रमथी यावत्-चउरिदियो सुधी जाणवू.
५. अन्यतीथिको 'श्रमणो पंडित-सर्वविरतिचारित्रवाळा-छे अने श्रमणोपासक बालपंडित-देशविरति सहित छे'-ए जिनसंमत वे पक्षनो अनुवाद करी तेमांना द्वितीय पक्षने दूषित करे छ-सर्व जीवोना वधनी विरति छतां जेने एक पण जीवना वधनी अविरति छे एवा श्रमणोपासकने पण एकान्तवाल' कहेवा जोइए: तेनुं आ मन्तव्य अयोग्य छ तेम भगवान महावीर जणावे छे-'जेने एक पण जीवना वधनी विरति छ तेने पण एकान्तबाल न कहेवाय, पण बालपंडित कहेवाय, कारण के तेनामा देशविरति छै; अने जेनामा देशविरति होय तेने 'एकान्तवाल' न कहेवाय.
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only