Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 17
________________ १६० ग्यारह सौ संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४० १६१ दो हजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४० १६२ तीनहजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण ६४१-६४२ १६३ चार हजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४२ १६४ पांचहजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४३ १६५ छह हजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४४ १६६ सात हजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण ६४४-६४५ १६७ आठ हजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण ६४५-६४६ १६८ नव हजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण ६४६-६४७ १६९ दश हजार संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४७ १७० एक लाख संख्याविशिष्ट और दो लाख संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४८ १७१ तीनलाख और चार लाख संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६४९ १७२ पांचलाख संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६५० १७३ छह और सात लाख संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६५१ १७४ आठ लाख और दसलाख संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६५२ १७५ एक करोड संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण ६५३-६५४ १७६ सागरोपम कोटाकोटि संख्याविशिष्ट समवाय का निरूपण -६५५ १७७ द्वादशांग के स्वरूप का निरूपण -६५६ १७८ द्वादशअंगो में प्रथम अंग आचारांग के स्वरूप का निरूपण ६५७-६७६ १७९ दूसरेअंग सूत्रकृतांग के स्वरूप का निरूपण ६७६-७०१ १८० तीसरेअंग स्थानांग के स्वरूप का निरूपण ७०१-७०८ १८१ चतुर्थाङ्ग समवायाङ्ग के स्वरूप का निरूपण ७०९-७२२ १८२ पांचवे अङ्ग व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) के स्वरूप का निरूपण ७२३-७३५ १८३ छठवे अङ्ग ज्ञाताधर्मकथाङ्ग के स्वरूप का निरूपण ७३६-७६० १८४ सातवे अङ्ग उपासक दशाङ्ग के स्वरूप का निरूपण ७६१-७७२ १८५ आठवे अङ्ग अन्तकृतदशाग के स्वरूप का निरूपण ७७३-७८२ १८६ नव वे अङ्ग अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग के स्वरूप का निरूपण ७८३-७९५ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર

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