________________ के अंक में समागये। सूत्रार्थग्रहण, परावर्तन के अभाव में श्रुत-सरिता सूखने लगी। अति विषम स्थिति थी। बहत सारे मूनि सूदुर प्रदेशों में बिहरण करने के लिये प्रस्थित हो चके थे। दुष्काल की परिसमाप्ति के पश्चात् मथुरा में श्रमण सम्मेलन हुअा। प्रस्तुत सम्मेलन का नेतृत्व प्राचार्य स्कन्दिल ने संभाला / 16 श्रतसम्पन्न श्रमणों की उपस्थित से सम्मेलन में चार चांद लग गये। प्रस्तुत सम्मेलन में मधुमित्र, गन्धहस्ति, प्रभृति 150 श्रमण उपस्थित थे। मधुमित्र और स्कन्दिल ये दोनों प्रात्रार्य प्राचार्यसिंह के शिष्य थे। प्राचार्य गन्धहस्ती मधमित्र के शिष्य थे। इनका वैदुष्य उत्कृष्ट था। अनेक विद्वान श्रमणों के स्मतपाठों के अाधार पर प्रागम-श्र त का संकलन हुअा था। प्राचार्य स्कन्दिल की प्रेरणा से गन्धहस्ती ने ग्यारह अंगों का विवरण लिखा / मथरा के प्रोसवाल वंशज सुधावक प्रोमालक ने गन्धहस्ती-विवरण सहित सूत्रों को ताडपत्र पर उहित करवा कर निर्ग्रन्थों को समर्पित किये। प्राचार्य गन्धहस्ती को ब्रह्मदीपिक शाखा में मुकुटमणि माना गया है। प्रभावकचरित के अनुसार प्राचार्य स्कन्दिल जैन शासन रूपी नन्दनवन में कल्पवृक्ष के समान हैं / समग्र श्र तानुयोग को अंकुरित करने में महामेघ के समान थे। चिन्तामणि के समान वे इष्टवस्तु के प्रदाता थे।५७ यह आगमवाचना मथुरा में होने से माथुरी वाचना कहलायी। प्राचार्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में होने से स्कन्दिली वाचना के नाम से इसे अभिहित किया गया / जिनदास गणि महत्तर ने५८ यह भी लिखा है कि दुष्काल के क्र र आघात से अनुयोगधर मुनियों में केवल एक स्कन्दिल ही बच पाये थे। उन्होंने मथुरा में अनुयोग का प्रवर्तन किया था। अत: यह वाचना स्कन्दिली नाम से विश्रत हुई। प्रस्तुत वाचना में भी पाटलिपुत्र की वाचना की तरह केवल अंग सूत्रों की ही वाचना हई। क्योंकि नन्दीसत्र की चणि में अंगसूत्रों के लिये कालिक शब्द व्यवहृत हया है। अंगबाह्य प्रागमों की वाचना या संकलना का इस समय भी प्रयास हृया हो, ऐसा पुष्ट प्रमाण नहीं है। पाटलिपुत्र में जो अंगों की वाचना हुई थी उसे ही पुन: व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया था। नन्दीसूत्र के अनुसार जो वर्तमान में आगम-विद्यमान हैं वे माथुरी वाचना के अनुसार हैं। पहले जो वाचना हुई थी, वह पाटलिपुत्र में हुई थी, जो विहार में था। उस समय विहार जैनों का केन्द्र रहा था। किन्तु माथुरी बाचना के समय विहार से हटकर उत्तर प्रदेश केन्द्र हो गया था। मथुरा से ही कुछ श्रमण दक्षिण की ओर आगे बढ़ थे। जिसका सूचन हमें दक्षिण में विश्व त माथुरी संघ के अस्तित्व से प्राप्त होता है।" 56. इत्थ दूसहदुभिक्खे दुबालसवारिमिए नियत सयलसंघ मेलिन आगमाण प्रोगो पत्तियो खंदिलायरियेण -~-विविध तीर्थकल्प-पृ. 19 57. पारिजातोऽपारिजातो जनशासननन्दने / मर्वश्रुतानुयोगद् -कन्दकन्दलनाम्बुदः // विद्याधरवराम्नाये चिन्तामणिरिवेप्टदः / प्रासीच्छीस्कन्दिलाचार्यः पादलिप्तप्रभोः कुले / / प्रभावकचरित, पृ. 54 58. अण्णे भणंति जहा-सुत्त ण णट्ट, तम्मि दुभिक्खकाले जे अण्णे पहाणा अणुप्रोगधरा ते विणट्ठा, एगे खंदिलायरिए संथरे, तेण मधुराए अणुप्रोगो पुणो साधूणं पवत्तितो त्ति मधुरा बायणा भण्णति / -तन्दीचूणि, गा-३२, पृ. 9 59. अहवा कालियं आयारादि सुत्त तदुवदेसेणं सण्णी भण्णति / —नन्दीचूर्णि पृ. 46 60. जेसि इमो अणुरोगो, पयरइ अज्जावि अडढभरहम्मि / बहनगरनिग्गयजसो ते वंदे खंदिलायरिए-नन्दीसूत्र / / गा. 32 61. क-नन्दीचूर्णि पृ. 9 ख-नन्दीसूत्र, गाथा-३३, मलयगिरि वृत्ति-पृ. 51 बहुना [24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org