Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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॥ अथ तृतीयोदेशः ॥
विषय
१ द्वितीयोदेशके साथ तृतीयोदेशका सम्बन्धप्रतिपादन, और
प्रथम सूत्र ।
२ सन्धिको जान कर लोकके क्षायोपशमिक भावलोक के विषय में प्रमाद करना उचित नहीं है । अथवा - सन्धि को जान कर लोक को - षड्जीवनिकायरूप लोक को दुःख देना ठीक नहीं है । ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र ।
४ अपने को जैसे सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय, उसी प्रकार सभी प्राणियों को है । इसलिये किसी भी प्राणी की न स्वयं घात करे, न दूसरों से घात करावे, न घात करनेवाले की अनुमोदना ही करे ।
५ तृतीय सूत्र का अवतरण और तृतीय सूत्र । ६ मुनित्व किसे प्राप्त होता है ।
७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र ।
८ ज्ञानी पुरुष चारित्र में कभी भी प्रमाद न करे, जिनप्रवचनोक्त आहारमात्रा से शरीर - यापन करे ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
पृष्ठाङ्क
९ पञ्चम सूत्रका अवतरण और पश्चम सूत्र ।
१० मुनि उत्तम, मध्यम एवं अधम इन सभी रूपों में वैराग्ययुक्त होवे । ११ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र ।
१२ जो मुनि जीवों की गति और आगति को जान कर रागद्वेष से रहित हो जाता है, वह समस्त जीवलोकमें छेदन, भेदन, दहन और हनन - जन्य दुःखों से रहित हो जाता है ।
१३ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवां सूत्र १४ मिथ्यादृष्टि जीव भूतकाल और भविष्यत्काल सम्बन्धी अवस्थाओं को नहीं जानते हैं। उन्हें यह नहीं ज्ञात होता कि इसका भूतकाल कैसा था और भविष्यत्काल कैसा होगा ?, कोई २ मिथ्यादृष्टि तो ऐसा कहते हैं कि जैसा इस जीव का अतीतकाल था वैसा ही भविष्यकाल होगा ।
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