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प्राचार्य श्री तुलसी
अभिशाप बन गया, दिल और दिमाग धीरज खो बैठे। समयकी गति टेढ़ी है। कल तक नहीं हुआ, वह आज हो जाता है, इस पर क्या आश्चर्य किया जाय।
प्रकाशमे अन्धकार आए यह आश्चर्यकी बात नहीं, दुनिया का स्वभाव ही ऐसा है। अन्धकारमें प्रकाशका पुञ्ज दिखाई दे, यह आश्चर्यकी बात है।
आजकी दुनिया बुरी तरहसे राजनीतिके पीछे पड़ी हुई है। वह उसीमेसे सुख और शान्तिका स्रोत निकालना चाहती है। पर यह होनेकी बात नहीं। सुख और शान्ति ये दोनों प्राणीकी वृन्तियोंमे रहते है, अनुभूतिमे रहते है, संक्षेपमे-चैतन्यमे रहते है। राजनीतिके पास वह नहीं है, उसके पास है-धन और भूमि, सत्ता और अधिकार, एक शब्दमे - जडता। मूलमे भूल है, इसीलिए सही मार्ग मिल नहीं रहा है। भगवान् महावीर जैसे अहिंसाप्रधान और महात्मा बुद्ध जैसे करुणाप्रवान पुरुष इस धरती पर आए, फिर भी इसका दिल नहीं पसीजा। ईसामसीह जैसे दयालु और महात्मा गाधी जैसे विराट् पुरुपको इसने नहीं अपनाया। हिंसासे अहिंसा, घृणासे करुणा, स्वार्थसे दया
और साम्प्रदायिकतासे विराट्ता दवी जा रही है। आखिर एक दिन मनुष्य सोचेगा कि मार्ग इस धरती पर है नहीं। ___एकतन्त्र और जनतन्त्रका संघर्ष छिडा। जो भूल थी, वह नीचे गिरी और जो सुधार था, वह आगे बढ़ा। जनतन्त्र और साम्यतन्त्रका संघर्ष चल रहा है। देखें, कौन कहा जा बैठता है।