Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas
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यवस्था अश्विसंकोचवशेषणविशिष्टां यावतपदिकमवापरं दृष्टान्तमधिकृपजओ विसम
२ क्रियास्थानाध्य अधर्मपक्षे
नरकव०
दुर्लभवो
धिता च
॥३३२॥
ति ?, यतस्ते नरकाः पश्चानामपीन्द्रियार्थानामशोभनखादशुभाः, तत्र च सत्त्वानामशुभकर्मकारिणामुग्रदण्डपातिनां च बजप्रचुरासूत्रकृताङ्गे २ श्रुतस्क
णां तीव्रा अतिदुःसहवेदनाः शारीराः प्रादुर्भवन्ति, तया च वेदनयाऽभिभूतास्तेषु नरकेषु ते नारका नैवाक्षिनिमेपमपि कालं न्धे शीला- निद्रायन्ते, नाप्युपविष्टाद्यवस्था अक्षिसंकोचनरूपामीपन्निद्रामवाप्नुवन्ति, न ह्येवंभूतवेदनाभिभूतस्य निद्रालाभो भवतीति दर्शयति, कीयावृत्तिः तामुज्ज्वला तीव्रानुभावनोत्कटामित्यादिविशेषणविशिष्टां यावद्वेदयन्ति-अनुभवन्तीति । अयं तावदयोगोलकपापाणदृष्टान्तः
शीघ्रमधोनिमजनार्थप्रतिपादकः प्रदर्शितः, अधुना शीघ्रपातार्थप्रतिपादकमेवापरं दृष्टान्तमधिकृत्याह॥३३२॥
से जहाणामए रुक्खे सिया पश्चयग्गे जाए मूले छिन्ने अग्गे गरुए जओ णिण्णं जओ विसमं जओ दुग्गं तओ पवडति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाए गब्भातो गम्भं जम्मातो जम्मं माराओ मारं णरगाओ णरगं दुक्खाओ दुक्खं दाहिणगामिए णेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लभबोहिए यावि भवइ, एस ठाणे अणारिए अकेवले जाव असबदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए ॥ सूत्रं ३७॥
तद्यथा नाम कश्चिदृक्षः पर्वताये जातो मूले छिमः शीघ्रं यथा निम्ने पतति, एवमसावप्यसाधुकर्मकारी तत्कर्मवातेरितः शीघ्र18 मेव नरके पतति, ततोऽप्युद्वत्तो गर्भाद्गर्ममवश्यं याति न तस्य किंचित्राणं भवति, यावदागामिन्यपि कालेऽसौ दुर्लभधर्मप्रतिप-
चिर्मवतीति । साम्प्रतमुपसंहरति-'एस ठाणे' इत्यादि, तदेतत्स्थानमनार्य पापानुष्ठानपरत्वाद्यावदेकान्तमिथ्यारूपमसाधु । तदेवं प्रथमस्थाधर्मपाक्षिकस्य स्थानस्य 'विभको विभागः स्वरूपमेष व्याख्यातः॥
अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिजइ-इह खलु पाइणं वा ४ संतेगतिया मणुस्सा भवंति, तंजहा-अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुवया सुप्पडियाणंदा सुसाहू सवतो पाणातिवायाओ पडिविरया जावजीवाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा सावजा अघोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कलंति ततो विपडिविरता जावजीवाए ॥ से जहाणामए अणगारा भगवंतो ईरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तणिकरत्रेवणासमिया उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिया [मणसमिया वयसमिया कायसमिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुतिदिया गुत्तभयारी अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिव्वुडा अणासवा अग्गंथा छिन्नसोया निरुवलेवा कंसपाइ व मुक्कतोया संखो इव णिरंजणा जीव इव अपडिहयगती गगणतलंपिव निरालंबणा वाउरिव अपडिबद्धा सारदसलिलं व सुद्धहियया पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा कुम्मो इव गुतिंदिया विहग इव विप्पमुक्का खग्गिविसाणं व एगजाया भारंडपक्खीव अप्पमत्ता कुंजरो इव सोंडीरा वसभो इव जातत्थामा सीहो इव दुद्धरिसा मंदरो इव अप्पकंपा सागरो इव गंभीरा चंदो इव सोमलेसा सूरो इव दित्ततेया जच्चकंचणगं व जातरूवा वसुंधरा इव सवफासविसहा सुहयद्यासणो विव तेयसा जलंता ॥णत्थि णं तेसिं भगवंताणं
कत्थवि पडियंधे भवइ, से पडिबंधे चउबिहे पण्णत्ते, तंजहा-अंडए इ वा पोयए इ वा उग्गहे इ वा पग्गहे सूत्रकृताङ्गे इवा जन्नं जन्नं दिसं इच्छति तन्नं तन्नं दिसं अपडिबद्धा सुइभूया लहुभूया अप्परगंथा संजमेणं तवसा २श्रुतस्क- अप्पाणं भाषमाणा विहरंति ॥ तेसिं णं भगवंताणं इमा एतारूवा जायामायावित्ती होत्था, तंजहान्धे शीला- चउत्थे भत्ते छठे भत्ते अट्ठमे भत्ते दसमे भत्ते दुवालसमे भत्ते चउदसमे भत्ते अद्धमासिए भत्ते मासिए कीयावृत्तिः
भत्ते दोमासिए तिमासिए चाउम्मासिए पंचमासिए छम्मासिए अदुत्तरं च णं उक्खिस्तचरया णिक्खि॥३३३॥
त्तचरया उक्वित्तणिकिग्वत्तचरगा अंतचरगा पंतचरगा लूहचरगा समुदाणचरगा संसट्टचरगा असंसट्टचरगा तज्जातसंसट्टचरगा दिहलाभिया अदिट्ठलाभिया पुढलाभिया अपुट्ठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अन्नायचरगा उवनिहिया संखादत्तिया परिमितपिंडवाइया मुद्धसणिया अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा लूहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी आयंबिलिया पुरिमड्डिया निविगइया अमज्जमंसासिणो णो णियामरसभोई ठाणाइया पडिमाठाणाइया उकडआसणिया णेसजिया वीरासणिया दंडायतिया लगंडसाइणो अप्पाउडा अगतया अकंडया अणिद्हा] (एवं जहोववाइए) धुतकेसमंसुरोमनहा सवगायपडिकम्मविप्पमुका चिट्ठति ॥ तेणं एतेणं विहारेणं विहरमाणा यह वासाइं सामनपरियागं पाउणंति २ बहुबहु आयाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा यहई भत्ताई पञ्चकम्वन्ति पचक्खाइत्ता बहई भत्ताई अणसणाए छेदिति अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरति नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणभावं अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसज्जा कट्टसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धा
|२क्रियास्थानाध्य धर्मपक्षव.
॥३३३॥
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