Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 697
________________ P. 282 209 195 287 288 194 206 106 196 103 201 209 205 201 202 204 207 282 107 287 286 287 206 282 283 287 193 16 203 8 31 25 38 34 27 31 28 17 285 285 285 285 285 111 207 95 Jain Education International L. 37 14 38 39 1 5 20 12 32 18 37 16 18 9 1 2 6 42 6 3 39 28 22 9 12 17 सूत्रगाथा उद्वेग उ भन छट्ठेण एगया भुंजे" जो वज्जं समुपवे' जमाहू बोई सलिलं प्रार जहा हि वद इह मानवेहि जं किचुवक्कमं जाणे जंसिप्पेगे पवेयंति जाइ च बुढि च इहऽज्ज पासे जावज्जीवं परीसहा जीवियं नाभिकंखिज्जा जे के इमे अगारत्था णच्चा णं से महावीरे जिद्दपि नोपगामाए णो चेविमेण वत्थेण जो सुकरमेयमेसि णो सेवइ य परवत्थं तणफासे सीयफासे य ततविततं पणं खरं तम्हातिविज्जो परमंति पन्ना तह प्यारेहि जणेहि हीलिए " तहागयं भिक्खुमणं तसं जयं तहा विमुक्कस्स परिन्नचारिणो. तंसि भगवं अपडिन्ने तिन्नेव य कोडिसया दिवो मोसी...... दिसोदिसंऽणंत जिणेण ताइणा दुविहंग विलयं..... दुविहं समिच्च मेहावि न सक्का गंधमा धाउ नसक्का न सोड सद्दा न सक्का फासमवेएउ न सक्का रसमस्साउ न सबका स्वमद नाईयमट्ठे न य श्रागमिस्सं नागो संगामसीसे वा नारइ सहई वीरे 334 P. L सूत्रगाथा 207 283 195 194 203 282 282 202 282 203 196 194 208 204 207 282 282 287 209 208 282 95 205 205 201 210 197 206 205 201 282 194 208 196 287 282 27 13 17 29 3 39 38 19 11 6 42 13 34 29 10 38 33 4 5 3 8 साहितसा 40 वणसं वकुमियं वरपरिवरि विऊ नए धम्मपयं श्रणुत्तरं वित्तिच्छेयं वज्जंतो रिए गामघम्मे हि वेसमणकुंडधारी - सद्दे फासे अहिवासमा 19 11 8 28 निहाय दंडं पाहि परिबजितु चरितं परिक्कमे परिकिलंते 28 34 23 41 For Private & Personal Use Only पाणासिंति पुढवि च भाउकायं च .. पुरषो सुरा हंती वि उविता माणसेह फरुसाई दुतितिक्खाई'' ***** बंभंमि य कप्पंमि भगवं च एवमन्नेसि मेउरेसु न रज्जिज्जा मभवो निज्जरापेही मंसानि छिन्नपुष्याणि मायणे असणपाणस्स 37 20 36 12 20 सव्यमुच्छिए 21 *****. सजणेहि तत्थ पुच्छि सयणेहि तत्थवसग्गा सयणेहिं वितिमिस्सेहि" सयमेव अभिसमागम्म संघाडीग्रो पवेसिस्सामो संयुज्यमाणे पुणरवि .... संवच्छरं साहियं संवच्छरेण होहिइ संसप्पगा य जे पाणा संसोहणं च वमणं सासहि निमंतिजा..... सिएहि भिक्खू असिए परिव्वए. सिद्धत्थवणं व जहा www.jainelibrary.org

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