Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 755
________________ ឈុំ ឬ ត និ្ត ៖ ឌ ឌ គ្ន ជា គឺ គឺ គឺ ៖ គឺ ធី ច ន P : ≥ ទ ៖ ថ្ម ឬ អ៊ អ៊ 2 គឺ ដឺ & ≥ ន គ ឬ ល្អ ឬ ន ឬ P.. 147 37 250 38 53 22 121 9 26 137 115 65 136 161 67 65 13 57 65 99 59 143 129 57 27 115 94 174 87 104 79 25 105 265 172 75 Jain Education International L. 20 13 26 27 26 5 29 12 24 7 11 22 23 31 5 23 जमाहु प्रोहं सलिलं श्रपारगं जमिणं जगति योजना... जमिदं घोरासमाहारं... जययं विहराहि जोगवं जया हेमंतगामि... जविणो मिगा जहा संता जसं किति सलोयं च जहा दियापोतमपत्तजातं जहा नई वेयरणी... जहा मंघादए नाम 7 जहा य पुढ़वीथूभे" 19 जहा रुक्खं वणे जायं ... 24 जहा विहंगमा पिंगा ... जरिस कुले समुप्यग्ने जहा प्रस्साविणि णावं जहा प्रसाविणि नावं 10 15 5 जहा कुम्मे स' गाइ जहा गंड पिलागं वा... जहा ढंका य कंका य... 33 जहा सर्वभू उदहीण खेडे... 22 जहा संगामकालंमि 35 जहा हि धंधे सह जोतिणावि... 13 जहा हि वित्तं पसवो य सव्वं ... 10 जं किंचि प्रणवं तात ! 28 किमि उ पूरकडं... जं किंचुवक्कमं जाणे... जं जारिसं पुव्वमकासि कम्मं - जं मयं सम्यसाहूणं... 10 जंसी गुहाए जलनेतिट्टे' " 5 जाईपहं प्रणुपरिवट्टमाणे... 19 जाए फले समुप्पन्ने... 22 जाणं काएगाउट्टी... 12 जाति च वुद्धिं च विणासयंते ... 10 जीवाणुभागं सुविचितयंता... 2 जीवितं पो किना... 26 जुवती समणं बूया... 23 जे प्रायओ परश्रो वावि णच्चा... 392 P 156 49 48 60 45 72 23 249 33 85 128 156 269 162 121 14 108 173 158 70 104 108 157 135 137 116 116 41 155 37 261 266 147 156 47 135 66 L. 15 5 4 16 28 21 11 31 30 10 26 11 23 37 30 34 1 20 8 14 26 33 14 19 For Private & Personal Use Only 5 36 8 20 19 जे श्रावि श्रप्पं वसुमंत मत्ता जे यह प्रारंभनिस्लिया... जे इह सायाणुगा नरः ... जे उ संगामकालंमि 30 जे य बुद्धा प्रतिक्कंता" 34 जे य बुद्धा महाभागा 12 18 18 31 जे एवं चरंति चाहि जे एवं उं धनुगिडा जे एवं नाभिजानंति... जे केइ खुद्दगा पाणा जे केइ तसा पाणा जे केइ बाला इह जीवियट्ठी... जे केइ लोगंमिठ अकिरिय० 18 जे याबुद्धा महाभागा 19 जे कोण होइ जगट्ठभासी" जे गरहिये ठाणमिहावति... जे ठाणओ य सयणासणे य... जेणेहं निव्वए भिक्खू जे तेउवाइणो एयं जे धम्मलद्ध विनिहाय भुंजे... जे धम्मं सुद्धमक्खं ति जे भासवं भिक्खु सुसाहुवादी... जे मायरं च पियरं च जे मायरं च पियरं च हिच्चा जे मायरं वा पियरं च हिच्चा... जे माहणो खत्तियजायए वा... जे य दाणं पसं संति जे यावि प्रणायगे सिया जे यावि पुट्ठा पलिउं चयंति... जे यानि बहुस्सुए सिया... जे यावि बीओोगभोति भिक्खु... जे यावि भुंजंति तहप्पगारं... जे रक्खसा वा जमलोइया बा जे बिग्हीए भन्नावभासी... जे विन्नवणाहिनोसिया जेसि तं उवकप्पंति हि काले परिव www.jainelibrary.org

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