Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 733
________________ 370 P. 135 136 म 144 137 138 13 गुर 26 1 L. शुद्धः पाठः ___P. L. शुद्धः पाठः 135 22 वास्ति पुण्यं नास्ति वेत्येवमेतदुभयथपि 144 5 कर्मच 135 24 जितेन्द्रियोऽस्त्यत्र भवदीयेऽनुष्ठाने 144 6 संवृतिसत्त्वात् 25 नास्ति पुण्यमित्येव ब्रूयात् ? एतदपि [प्र.] 144 6-7 कर्माण्यवन्ध्यानि 135 39 मौनमेव [प्र.] 144 8 आवीचि 10 कुर्यादिति भावः [प्र०] 144 10 कर्मबन्धं चावे 136 12 साधु शोभनं [प्र.]| 144 14 यन्तः प्रात्मनो 136 21 अंतए ते 144 16 स्ववाचाऽऽपद्यते 136 25 तमेवं शुद्ध प्रतिपूर्ण 17 प्रतिपादयन्तः बौद्धाश्च 136 35 मित्यपदिश्य [प्र.] 144 26 वेदनाच्चौरपार 137 145 13 एषन्ति [प्र.] 1 क्षणिकत्वे वस्तु [प्र०] 19 इदमपदिश्यते [प्र०] 145 2 यौगपद्येन तत्कार्याणाम् 137 21 श्रीवीरवर्धमान 145 12 वा क्रियां 137 36 उक्कडा होति जस्स उ कसाया [प्र०] 145 15 सम्पूर्णावस्थां यावदध्यक्षेणैवोपलभ्यते 138 3 च चारित्रं वृद्धि 146 5 केइ निमित्ता इत्यादि 10 आधारः, तदवाप्तिश्च 146 ll भावान् वयं जानीमः 138 17 विनिहन्यात् 146 मुघुष्यते [प्र.] 138 25 मतमित्येतदेव [प्र.] 146 सद्भाबान्न त व्यभिचारशङ्कति 139 17 एत एव च त्रिक 146 –तथा तेन प्रकारेण [प्र०] 147 139 22 सावधारणक्रिययाभ्यु' [प्र०] 12 तथा 'पाहुः उक्तवन्त:, 140 वगन्नव्या, तद्यथा-जीवादीन् [प्र०] 147 13 वर्जाः [प्र०] 147 15 यथा च महा [प्र०] 140 6 तथा असन् जीवः को वेत्ति 140 147 रक्खसाया जमलोइयाया 12 भावोत्पत्ति सदसवतावाच्या 32 °दपारगं [प्र.] 141 39 सर्वज्ञ जानातीति 33 सम्यग्दर्शनिनमन्तरेण [प्र.] 142 5 शिनां 147 36 सावद्यधर्मानु 142 ll मित्यतस्तत्प्र॰ [प्र०] 148 1 ऽविरत्या च 142 24 संसर्गिप्र॰ [प्र०] 3 मप्युद्यता [प्र०] 142 30 सर्वज्ञज्ञानेन 148 __4 अज्ञत्वाद् [प्र.] 143 9 विनयितवन्तः 4 क्षप्यते 143 17 °भाजनं विनय इति तदपि 148 4-5 शैलेश्यबस्थया कर्म क्षपयन्ति धीरा: [प्र.] 143 20 तस्मादवशङ्कितुम् [प्र०] 8 लोभभयावतीया [प्र.] 143 22 अस्थितानां च 16 विदो वाऽप्रत्यक्षज्ञानिनः 143 24 विज्ञाने सम 33 °पि शब्दात् सम्यक् । 143 27 इत्येवं प्रच्छन्न [प्र०] 149 6 वाऽनादिनिध° [प्र०] लवापशङ्किनः [प्र०] 149 26 देवा वा? 143 31 तथतच्चाज्ञानेनवो 149 29-30 नयाश्रयणाद् अशाश्वतं 14337 जहा य अधे 150 20 अव्यभिचारि, न द्विचन्द्रज्ञानव 1444 बुद्धशासने 15031 नास्त्यन्यथानुपपत्ति 147 147 148 148 148 148 143 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764