Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 746
________________ P. 156 122 10 49 186 47 62 13 190 6 70 161 127 149 4 253 4 253 122 14 188 220 L. 8 133 196 262 102 110 34 6 17 29 27 23 10 Jain Education International 30 27 13 28 34 22 22 32 39 23 26 19 34 12 29 30 उद्धृतः पाठः पावं काऊरण सयं 15 38 पास त्योसपण कुसील० पिब खाद च साधु शोभने "3 9 14 4 21 13 " 12 66 25 21 140 192 65 29 प्रियादर्शनमेवास्तु 110 5 फासे व भद्दयाव 114 143 130 82 पियत भाइडिङगा० पिंडस्स जा विसोही ० पिंडोलगे य दुस्सीले ० पुढविकाए र भ पुद्गलकर्म शुभं पत् पुप्फफलाणं च रसं सुराइ पुराणं मानवो धर्मः पुरुष एवेदं सर्वं 33 पुव्वाणुपुव्वि हेट्ठा तास पुचि बुद्धीए पेहिता प्रकृतिः करोति पुरुष उपभुङ्क्ते प्रकृतेर्महान् महतोऽहङ्कार ० प्रतिकर्तुमशक्तिष्ठा प्रमाणपदकविज्ञा 12 बंधट्ठई कसायवसा 20 26 17 प्राणिनां बाधकं चैतत् प्राणी प्राणज्ञानं ० प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण 33 बद्धा मुक्ताश्च कथ्यन्ते बायालीसेसर संकमि बाबई व सुरक्षा बारसविहे कसाए० वृद्धियो ब्रह्मा लूनशिरा हरि० ब्रुवाणोऽपि न्याय्यं भक्खेसु य भद्दयपावएसु 383 P. 266 36 130 179 253 46 119 112 64 26 9 72 94 69 69 82 132 144 50 71 170 209 69 79 69 104 71 85 7 73 113 66 70 210 64 166 256 For Private & Personal Use Only L. उद्धृतः पाठः भक्षणीयं भवेन्यांसं 8 33 29 22 26 33 29 35 29 33 5 11 13 26 27 19 37 मारगुरवेलजाई 7 23 17 36 38 30 16 29 22 33 24 15 11 भवकोटीभिरसुलभं [प्रशमरतौ ] भुक्तभोगो पुरा जोऽवि भूतस्य भाविनो वा भावस्य भूतिया किया संव भूतेषु जङ्गमत्वं भोगे अवयक्वंता पडंति मज्जं विसयकसाया मरगुणं भोक्तुं भोच्या मतिविभव ! नमस्ते ममाहमिति चैत्र यावदभिमान मया परिजनस्यार्थे 21 महिला य रत्तमेत्ता ० महिला दिन करेज्ज० महुरा य सूरसेगा ० " मातापितरौ हत्वा बुद्धशरीरे. मातापितृसहस्राणि मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा मातृवत्परदाराणि मायाशीलः पुरुषः [प्रशमरतौ ] मारे जियंत पि मासैरष्टभिराच मा विसं ता मा होहि रे विसन्नो जीव० मितमहररिभिजे पुनहि मुक्ककरूंदकडाडुनरुत मूडनइयं यं कालिये मुण्डं शिरो वदनमेतदनिष्टगन्धं 8 मुष्टिनाssच्छादयेल्लक्ष्यं 19 मुलं चैतदधर्मस्य 1 मूलं दुम्बरियानं हवइ उ 34 29 34 25 मैत्रीप्रमोदकारुण्य माध्यस्थ्यानि मूलमेयमहम्मस्स मृद्वी शय्या प्रातरुत्थाय पेया " 31 www.jainelibrary.org

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