Book Title: Acharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas
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21 22 न देवमिति संचिन्त्य
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न नरः सिंहरूपत्वान्न०
173 25 ननु पुनरिदमतिदुर्लभ०
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उद्धृतः पाठः
तह सव्वे रायवाया
तहेव कारणं कारणत्ति
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तावद् गजः प्रस्त्र तदानगण्ड:
26 तिक्खकुसमाकडियकंटय
16 तित्थयरो चउनाणी
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12 दाराः परिभवकारा
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दीयते प्रियमाणस्य
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तेएरण कम्मएण
सो कण्हस्स पिउच्छा
योवाहारो चोरभणियो
दग्बन्धनः पुनरुपति
दग्घे बीजे यथाऽत्यन्तं
बहू तो जराणी
ददाति प्रार्थिनः प्राणान्
ददाति शौचपानीय
दव्वस्स चलरण पप्फंदरगा
दशहस्तान्तरं व्योम्नि
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दानेन महाभोगाश्च
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"
दुःखात्मकेषु विषयेषु सुखाभिमानः
दुःखं दुष्कृतसंज्ञयाय
दुंदुभिसमारोहे भेए
दुर्ग्राह्यं हृदयं यथैव वदनं
दुविलयनयोस वोक्स
देशे कुलं प्रधानं
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37 दोषावरणयोर्हानिः
12 दंडकलियं करिन्ता
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द्रव्यास्तिकरथारूढः
7 द्वेषस्यायतनं घृतेरपचयः
8 धर्मार्थ पुत्रकामस्य
2 घण्णा ते वरपुरिसा
न तस्य किञ्चिद्भवति
20 नत्थि य सि कोइ
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L. उद्धृतः पाठः
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ननु पुनरिदमतिदुर्लभ०
न मांसभक्षणे दोषो ०
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न य लोणं सोरिज्ज
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न याति न च तत्रासीदस्ति
नवि सीधो नवि उन्हो
नहि कालादीहिंतो
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नहि भवति निर्विगोपक
नारणस्स होई भागी
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नान्वयः स हि भेदत्वान्न
नान्वयः स हि भेदत्वान्न०
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नालं ते तब तालाए [साचारा]
नासतो जायते भावो०
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2 नित्यं सत्त्वमसत्त्वं [ प्रमाणवातिके ]
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28 निर्वाणादिसुखप्रदे
2 नेत्रैर्निरीक्ष्य बिलकण्टक
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10 नोदकविनगा हि
38 पञ्चविंशतितत्त्वज्ञो ०
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15 पञ्चेन्द्रियाणि विविध बच
नैनं छिन्दन्ति ०
नैवास्ति राजराजस्य [प्रशमरती ]
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12 पढमं नाणं तम्रो दया०
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पण्णवणिज्जा भावा
14 परकृतकर्मरिण यस्मान्न
परं लोकाधिकं धाम
परिकम्म रज्जुरासी
पलिमंथमहं वियाणिया
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22 पायक्कंतोरत्थलमुह
पावा य चंडदंडा
"
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